केरल में टाइटेनियम स्पॉन्ज प्लांट चालू

केरल में टाइटेनियम स्पॉन्ज प्लांट चालू होने के बाद अब इसरो को रॉकेट बनाने के लिए जरूरी टाइटेनियम के लिए विदेशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.

=>परिप्रेक्ष्य :-
★ यह दिसंबर, 2010 की बात है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) क्रिसमस के दिन जीएसएलवी रॉकेट के जरिए जीसेट-5पी सेटेलाइट छोड़ने की तैयारी कर रहा था. जैसे-जैसे यह दिन नजदीक आ रहा था, परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. इसकी वजह भी थी. वे इसी साल अप्रैल में एक जीएसएलवी रॉकेट को लॉन्च होने के कुछ समय बाद ही आसमान में फटते हुए देख चुके थे.

† आखिरकार क्रिसमस आ गया. श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से इस रॉकेट ने उड़ान भरी. इसे 19 मिनट के भीतर सेटेलाइट को अपनी कक्षा में स्थापित करना था. लेकिन लॉन्च होने के एक मिनट बाद ही जीएसएलवी अपने रास्ते से भटकने लगा. कुछ ही सेकंड बाद एक धमाका हुआ और जीएसएलवी बंगाल की खाड़ी में समा गया.

★ इसरो के लिए 2010 की यह घटना सदमे की तरह थी. 2006 में भी जीएसएलवी रॉकेट की एक उड़ान इसी तरह असफल हुई थी. इन रॉकेटों में रूसी क्रायोजनिक इंजन लगा था और कहा गया कि इसरो इसका सफलतापूर्वक संचालन नहीं कर पाया. हालांकि 2014 में यह संस्था पहली बार देसी क्रायोजनिक इंजन के साथ जीएसएलवी रॉकेट अंतरिक्ष में भेजने में सफल रही, लेकिन 2010 के असफल परीक्षणों के समय यह चर्चा जोरों पर थी कि इन रॉकेटों के फ्यूल टैंक और अन्य जरूरी उपकरणों में हल्की गुणवत्ता की सामग्री इस्तेमाल हुई थी.

★ अगस्त, 2013 में भी जब जीएसएलवी रॉकेट उड़ान भरने वाला था उसके पहले एक फ्यूल टैंक में दरार का पता चला और उड़ान रद्द कर दी गई. इसके बाद इसरो के चेयरमैन राधाकृष्णन का बयान आया था कि इस घटना की जांच की जाएगी लेकिन अगली उड़ान के पहले और उच्च गुणवत्ता की सामग्री से प्यूल टैंक बनाए जाएंगे.

★1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद लगी पाबंदियों की वजह से इसरो को विदेशों से टाइटेनियम स्पॉन्ज मंगवाना मुश्किल होने लगा था और उसी समय पहली बार इसके लिए प्लांट लगाने के बारे में सोचा गया।

★जीएसएलवी की असफल उड़ानों का जिक्र यहां इसलिए किया गया क्योंकि उस समय इसरो रॉकेट निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री (मिश्र धातु) के लिए विदेशों पर निर्भर रहता था. मुख्यरूप से यह मिश्र धातु टाइटेनियम एलॉय (टाइटेनियम को कुछ अन्य धातुओं या रसायनों के साथ मिलाकर बनाया जाने वाला पदार्थ) होती है और इसका व्यावसायिक उत्पादन विश्व के सिर्फ छह देशों में ही होता है.

★लेकिन अब इसरो पहली बार अपने रॉकेटों में देश में ही बनने वाले टाइटेनियम और टाइटेनियम एलॉय का इस्तेमाल कर सकता है.

★दरअसल हाल ही में केरल के जावरा में एक प्लांट ने पूरी क्षमता के साथ टाइटेनियम स्पॉन्ज का उत्पादन शुरू किया है. इसरो की मदद से बने इस प्लांट के साथ ही भारत दुनिया का सातवां देश बन गया है जहां टाइटेनियम स्पॉन्ज का उत्पादन होता है. फिलहाल इस क्षेत्र में चीन सबसे आगे है और उसके बाद रूस और जापान का स्थान है.

=>भारत में टाइटेनियम अयस्क और इसका उपयोग :-
★चावरा स्थित प्लांट की स्थापना से जुड़ी हैरानी की बात है कि दुनिया में भारत तीसरा देश है जहां टाइटेनियम अयस्क के सबसे ज्यादा भंडार पाए जाते हैं लेकिन अभी तक हमारे यहां व्यावसायिक स्तर पर टाइटेनियम स्पॉन्ज (अयस्क से शुद्ध धातु प्राप्त करने के प्रक्रिया के दौरान प्रथम चरण में बनने वाला टाइटेनियम) के निर्माण की कोई इकाई नहीं थी.

★ जबकि टाइटेनियम एलॉय का इस्तेमाल रॉकेटों, हवाई जहाजों और रक्षा सामग्री में बड़े पैमाने पर किया जाता है. अपनी खूबियों की वजह से टाइटेनियम इन क्षेत्रों के लिए बेहद बुनियादी निर्माण सामग्री है. 
★टाइटेनियम स्टील के बराबर मजबूत होता है, लेकिन उसकी तुलना में तकरीबन 45 फीसदी हल्का होता है.
★ एल्युमिनियम से यह दोगुना मजबूत होता है. वजन के अनुपात में मजबूती इसे बाकी धातुओं से ज्यादा उपयोगी बनाती हैं. 
★साथ में टाइटेनियम का एक फायदा यह भी है कि विपरीत मौसम और उच्च तापमान में भी इसके क्षरण की दर काफी कम होती है.

Note:- इसरो की वेबसाइट के मुताबिक यह प्लांट दुनिया का अकेला ऐसा प्लांट है जहां टाइटेनियम अयस्क से टाइटेनियम स्पॉन्ज बनाने तक के सारे काम एक ही छत के नीचे होते हैं

★आज से चार-पांच दशक पहले इसरो इतने रॉकेट नहीं बनाता था कि इसके लिए जरूरी टाइटेनियम स्पॉन्ज देश में ही बनाया जाए. लेकिन 1990 के बाद से इसकी ज्यादा जरूरत पड़ने लगी. 
★संगठन के लिए टाइटेनियम स्पॉन्ज हासिल करने की सबसे बड़ी चुनौती 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद आई जब भारत पर तमाम तरह की पाबंदियां लग गईं और विदेशों से टाइटेनियम स्पॉन्ज मंगवाना मुश्किल होने लगा. उसी समय पहली बार टाइटेनियम स्पॉन्ज के लिए प्लांट लगाने के बारे में सोचा गया था, लेकिन इसका काम 2006 में शुरू हो पाया.

★फोर्ब्स इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में निर्मित यह प्लांट रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि भारत- कजाकिस्तान का संयुक्त टाइटेनियम स्पॉन्ज प्लांट भी प्रस्तावित है जो एशिया में भारत का रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है.

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