Skip to main content

प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी : पृथ्वी से परे जीवन की सबसे अधिक संभावना

सन्दर्भ :- सौरमंडल के बाहर अब तक मिले ग्रहों में प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी न सिर्फ पृथ्वी के सबसे करीब है बल्कि उससे सबसे ज्यादा मिलता-जुलता भी है.

- 'प्रॉक्सीमा सेंटाउरी’, जिसे अल्फ़ा सेंटाउरी के नाम से भी जाना जाता है, हमारे सौरमंडल का न केवल सबसे नजदीकी पड़ोसी तारा है, हमारे सूर्य की तरह ही उसका भी अपना एक ग्रहमंडल है.

- पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से दिखाई पड़ने वाला यह तारा हमारे सूर्य से लगभग सवा चार प्रकाश वर्ष दूर है (1 प्रकाश वर्ष = 94 खरब 60 अरब 73 करोड़ किलोमीटर से कुछ अधिक). यूरोप और अमेरिका से वह दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए उसकी खोज 1915 में हो पायी थी.

- उसकी खोज के लगभग 100 वर्ष बाद अब पता चला है कि उसके ग्रहमंडल में एक ऐसा भी ग्रह है, जो हमारे सौरमंडल के बाहर अब तक खोजे गए सभी बाहरी ग्रहों की अपेक्षा हमारी पृथ्वी से सबसे अधिक मिलता-जुलता होना चाहिये – इतना अधिक कि वहां कई-कई किलोमीटर गहरा महासागर भी हो सकता है, और जीवन भी!

 ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ का अभी तक कोई सीधा फ़ोटो नहीं लिया जा सका है. बल्कि, एक अति उच्चकोटि के वर्णक्रमलेखी (स्पेक्ट्रोगाफ़) की सहायता से उसके सूर्य वाले प्रकाश के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में होने वाले विचलन (शिफ़्ट) के अध्ययन से उसकी विशेषताओं को जानने का प्रयास किया गया है.

=>हमारी धरती के साथ समानताएं

- ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ हमारी पृथ्वी की अपेक्षा 1.3 गुना भारी है. खगोलविदों का कहना है कि उसका अर्धव्यास (त्रिज्या/रेडियस) हमारी पृथ्वी के 0.94 से लेकर 1.4 गुना के बराबर (5990 से 8920 किलोमीटर) तक हो सकता है. पृथ्वी का अर्धव्यास 6371 किलोमीटर है. ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ का अर्धव्यास यदि इन दोनों में से न्यूनतम अनुपात, यानी 0.94 के बराबर हुआ, तब तो वह पृथ्वी से भी कहीं ठोस एक ऐसा ग्रह होना चाहिये, जिस के दो-तिहाई भार वाला क्रोड़ (केंद्रक) धातु का और उसके ऊपर का आवरण ठोस चट्टानों का बना होगा.

- उस पर यदि पानी हुआ, तो इस अवस्था में उसके पानी का अनुपात उसके कुल द्रव्यमान (भार) के 0.05 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता. हमारी पृथ्वी पर यह अनुपात 0.02 प्रतिशत के बराबर है.

=>जीवन पर संदेह

- वैज्ञानिकों की गणनाएं कहती हैं कि ऊपर लिखी दोनों अवस्थाओं में ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ पर जीवन पनपने लायक एक झीना वायुमंडल भी हो सकता है. लेकिन, कुछ दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी और वायुमंडल होने पर भी यह ज़रूरी नहीं है कि वहां जीवन भी हो. उसका सू्र्य, यानी ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी’ तारा, हमारे सूर्य से कई गुना छोटा एक ऐसा ‘लाल बौना’ (रेड ड्वार्फ़) है, जो ज़ोरदार अल्ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी) और एक्स रे (क्ष-किरणों) के रूप में अपनी ऊर्जा के फ़व्वारे उछाल कर ठंडा हो रहा है. इन वैज्ञानिकों का मत है कि ग्रह का यदि अपना कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं हुआ, जो इस विकिरण से बचाव कर सके, तो उसकी बौछार से वहां कोई जीवन पनप ही नहीं सकता. ‘लाल बौना’ ऐसे तारों को कहा जाता है जिनकी द्रव्यराशि हमारे सूर्य की द्रव्यराशि के 40 से 60 वें हिस्से के बराबर ही है और जो इस तरह ठंडे पड़ रहे हैं कि उनका प्रकाश अवरक्त यानी इन्फ्रारेड किरणों के रूप में हमारे पास पहुंचता है.

=>ग्रहों की खोज का संक्रमण सिद्धांत

अब तक खोजे गए अधिकांश वाह्य ग्रह इसी संक्रमण (ट्रांज़िशन) सिद्धांत के आधार पर खोजे और जांचे-परखे गए हैं. अपने सूर्य के सामने से जब कोई ग्रह गुज़रता है, तो उसके इस संक्रमण से उसके सूर्य से आ रहे प्रकाश के वर्णक्रम में कुछ समय के लिए जो परिवर्तन आते हैं, वे उस ग्रह की उसके सूर्य से दूरी, ग्रह के आकार-प्रकार, उसकी द्रव्यराशि, तापमान, उस पर वायुमंडल होने न होने और वायुमंडल की संरचना जैसी अनेक चीज़ों के बारे में इतनी सारी जानकारियां दे जाते हैं कि कहा जा सके कि वह ग्रह जीवन-धारण के योग्य है या नहीं. ‘नासा’ का भावी अंतरिक्ष दूरदर्शी ‘जेम्स वेब’ भी इसी संक्रमण सिद्धांत के आधार पर काम करेगा. वह इस समय के हबल टेलिस्कोप की जगह लेगा, पर 2018 से पहले नहीं. हो सकता है कि ‘जेम्स वेब’ ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ के वायुमंडल और वहां के बादलों के बारे में कुछ ऐसे रहस्योद्घाटन करे, जिनकी वैज्ञानिक इस समय कल्पना भी नहीं कर रहे हैं.

इन सरकारी प्रयासों से इतर, ‘ब्रेकथ्रू प्राइज़ फ़ाउन्डेशन’ के संस्थापक यूरी मिल्नर हमारे सौरमंडल से बाहर की दुनिया का पता लगाने के लिए, निजी तौर पर, 10 करोड़ डॉलर की दो परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रहे हैं. एक का नाम है ‘ब्रेकथ्रू लिसन’ जिसका मकसद तीन दूरदर्शियों की सहायता से अंतरिक्ष से आ रही रेडियो तरंगों और प्रकाशीय संकेतों की टोह लेना है. दूसरी का नाम है ‘ब्रेकथ्रू स्टारशॉट’, जो नैनोमीटर आकार (1 मिलीमीटर = 10 लाख नैनोमीटर) के अतिसूक्ष्म उपकरणों को लेज़र किरणों की सहायता से ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी’ की ग्रहप्रणाली तक पहुंचाने और उसे जांचने-परखने का एक अपूर्व प्रयोग होगा.

लेज़र किरणों की सहायता से ‘स्टारशॉट’ प्रयोग

पृथ्वी से सारी ‘निकटता’ के बावजूद ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी बी’ तक की सवा चार प्रकाश वर्ष, यानी 400 खरब किलोमीटर से भी अधिक की दूरी एक अकल्पनीय दूरी है. ‘ब्रेकथ्रू स्टारशॉट’ प्रयोग के अनुसार, लेज़र किरणें ‘स्टारशॉट’ के नैनो उपकरणों को 60 हज़ार किलोमीटर प्रतिसेकंड (प्रकाश की गति के पांचवें भाग के बराबर) की गति प्रदान करेंगी. तब भी उन्हें ‘प्रॉक्सीमा सेंटाउरी’ तक पहुंचने में 20 वर्ष लग जायेंगे. इस समय ऐसा कोई रॉकेट या ऐसी कोई दूसरी तकनीक उलब्ध नहीं है, जो किसी प्रक्षेप्य को इसके 10वें-20वें हिस्से के बराबर भी गति प्रदान कर सके. सुनने में आया है कि फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग और गूगल के सह-संस्थापक रूसी मूल के सेर्गेई ब्रिन भी इस अभियान में यूरी मिल्नर का हाथ बंटायेंगे.

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download

Contact Us

103 B5/6, Second Floor Himalika Commercial Complex, Dr. Mukherjee Nagar, Delhi -110009;

Email : gshindiedutech [at] gmail [dot] com

 

Android App link