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केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि मैरिटल रेप (विवाह संबंध के अंतर्गत होने वाले बलात्कार) को अपराध नहीं घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि:
- ऐसा करने से विवाह संस्था की नींव हिल जाएगी।
- सरकार इससे पहले भी कह चुकी है कि भारत जैसे परंपरावादी विकासशील देश में मैरिटल रेप की अवधारणा को मान्यता देना इसकी सदियों पुरानी संस्कृति के खिलाफ जाएगा। बेशक विवाह संस्था हमारी ही नहीं, दुनिया की हर संस्कृति का अहम हिस्सा है लेकिन हजारों साल लंबी जीवन यात्रा में यह संस्था कई बड़े बदलावों से गुजरी है। यह कहना कि विवाह संबंधों में अपवाद स्वरूप आई किसी गड़बड़ी को दूर करने की कोशिश की गई तो विवाह संस्था ही खतरे में पड़ जाएगी, दरअसल इसकी शक्ति को अनदेखा करना है।
वैवाहिक संबंधों में हिंसा, बलात्कार आदि पर रोक लगाने से विवाह संस्था का आधार और मजबूत होता है। देश में हर साल जितनी शादियां होती हैं, उसमें अधिकांश बिना किसी अप्रिय घटना के एक नए परिवार का आधार बनती हैं। उंगलियों पर गिने जाने लायक शादियां ही बुरी खबरों के लिए जानी जाती हैं। सख्त कानून की जरूरत ऐसी शादियों के खलनायकों से निपटने के लिए ही पड़ती है। इनसे पीड़ित महिलाओं की संख्या चाहे जितनी भी कम हो, पर शायद ही कोई सार्वजनिक रूप से यह कहने को राजी हो कि इन्हें देश के कानून का संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। यह डर भी अवास्तविक है कि जैसे ही वैवाहिक संबंधों में बलात्कार को संभव माना जाएगा, तमाम पत्नियां अपनी अच्छी-भली चल रही शादियां तोड़ने पर आमादा हो जाएंगी या अपने परिवार की चिंता छोड़कर पति के खिलाफ रेप की झूठी शिकायतें दर्ज कराने लगेंगी। हां, ऐसा कोई कानून बनाते वक्त इसके दुरुपयोग की आशंका पर भी विचार किया ही जाना चाहिए। दहेज और घरेलू हिंसा विरोधी कानूनों के कुछ दुरुपयोग सिद्ध हो चुके हैं, लिहाजा मैरिटल रेप विरोधी कानून बनाते वक्त ऐसी आशंकाओं से निपटने के इंतजाम पहले ही कर लिए जाने चाहिए लेकिन कानून के दुरुपयोग का हौआ खड़ा करके महिलाओं को विकृत यौनाचारी पतियों के रहम पर छोड़ देने का तो कोई औचित्य नहीं है।
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