भारत वायु प्रदूषण के एक मोर्चे पर लड़कर कैसे कई मोर्चों की अपनी लड़ाई आसान बना सकता है?

Recent WHO report

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी रिपोर्ट ने इस बात पर मोहर लगा दी है कि हमारे शहर वायु प्रदूषण के मामले में अव्वल हैं. हालांकि कुछ आलोचक इस रिपोर्ट पर यह कहते हुए सवाल उठा सकते हैं कि डब्लूएचओ ने 2016 के बाद के आंकड़े अपने अध्ययन में शामिल नहीं किए. फिर भी इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बीते दो सालों में भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की स्थिति चाहे जितनी सुधरी हो, अभी-भी वह खतरनाक स्तर से ऊपर ही है.

Some facts

  • एक अनुमान के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया में करीब 65 लाख लोगों की वायु प्रदूषण के चलते अकाल मौत होती है.
  • वहीं डब्लूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि 2016 के दौरान भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में करीब 13 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार था.

Ripple effects of Pollution

खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव झेलते हैं. प्रदूषित हवा मुख्य रूप से सांस की बीमारियों, तरह-तरह के संक्रमण और हृदयरोगों की वजह बनती है. लेकिन इसका बुरा असर सिर्फ सेहत तक ही नहीं देखा जा सकता. बीमारियों का मतलब है स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च. जाहिर है कि इससे गरीब तबका सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. कुल मिलाकर यह स्थिति गरीबों के जीवनस्तर में सुधार लाने और गरीबी दूर करने के प्रयासों के लिए झटका साबित होती है.

इससे मानव संसाधन की उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. साथ ही बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित होता है और इस तरह पूरी अर्थव्यवस्था को वायु प्रदूषण के बुरे नतीजे झेलने होते हैं. एक अनुमान के मुताबिक इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत के नुकसान में चल रही है. भारत के लिए भी वायु प्रदूषण जनस्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण, तीनों के लिहाज से एक गंभीर समस्या है.

स्वच्छ ईंधन (गैस) और किसानों को फसल जलाने से रोकने के प्रस्तावों को देखते हुए यह लग रहा है कि सरकार भी वायु प्रदूषण की गंभीरता को नीतिगत स्तर पर पहचान रही है. पिछले महीने ही पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का प्रारंभिक मसौदा जारी किया है. बेशक इसमें कई कमियां हैं, इसके बावजूद इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए.

कुल मिलाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में हर गंभीर कोशिश को इससे जुड़े आंकड़ों के परे जाकर देखने-समझने की जरूरत है. इसके लिए सरकार जो भी खर्च करती है, वह अप्रत्यक्षरूप से जनस्वास्थ्य के लिए किया गया खर्च ही होता है. आज देश में जनस्वास्थ्य के लिए बहुत कम खर्च किया जाता है कि लेकिन अब प्रदूषण नियंत्रण की मद में किया गया खर्च भी इसमें जोड़ने को जायज ठहराया जा सकता है.

#Satyagriha

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