Ø Draft National Forest Policy 2018 Analysisनीति पिछली नीति के 30 वर्ष बाद प्रस्तुत की गई है और इसमें वनों के विकास से संबंधित नीतियों का आधुनिकीकरण करने की चाह नजर आती है।
Ø इसमें जलवायु परिवर्तन को कम करने और जैव विविधता के संरक्षण को लेकर नीतियां शामिल हैं।
Ø महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस लक्ष्य को स्थानीय वनवासी और वनाश्रित समुदायों की भागीदारी के साथ हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया है। ये वे समुदाय हैं जो अपनी आजीविका के लिए काफी हद तक वनों पर निर्भर रहते हैं। इसलिए वन संरक्षण और संसाधन उनके लिए अहम हैं।
Ø नई नीति में मानवों और वन्य जीवों के बीच बढ़ते संघर्ष को भी रेखांकित किया गया है और इनसे बचने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों का जिक्र है।
Ø अहम बात यह है कि नई मसौदा नीति में गहरे ढलानों, नदियों के जल भराव क्षेत्र और अन्य जलीय संसाधनों तथा भौगोलिक और पर्यावास के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण के लिए उनके गैर वन कार्यों में इस्तेमाल रोकने जैसे कदम उठाने की बात कही गई है
Ø सड़कों के किनारे और बेकार पड़ी जमीन पर पौधरोपण तथा कृषि वानिकी पर जोर देने जैसे सभी कदम काबिले तारीफ हैं। परंतु इसमें कई कमियां भी हैं। ]हालांकि नई नीति का लक्ष्य देश के एक तिहाई भौगोलिक क्षेत्र को वनों के दायरे में लाने का है लेकिन भौगोलिक बाधाओं के चलते ही इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल कर पाना खासा मुश्किल है।
Ø New Institutions: इसके अलावा राष्ट्रीय सामुदायिक वन प्रबंधन मिशन और राष्ट्रीय वन्य बोर्ड के रूप में दो राष्ट्रीय संस्थाओं के गठन की सलाह भी सही नहीं प्रतीत होती। अगर ऐसा हुआ तो प्राधिकार का दोहराव होगा और वनों से जुड़ी नौकरशाही का विस्तार होगा। यह इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के लिए अच्छी बात नहीं होगी। जिस बात ने पर्यावरणविदों को सबसे अधिक निराश किया है वह है वन क्षेत्र के बाहर की जमीन पर दोबारा वन लगाने के काम में निजी क्षेत्र की मदद लेने का सुझाव। इसके पीछे विचार है वाणिज्यिक महत्त्व की लकड़ी का उत्पादन करना जो अभी आयात की जाती है। पर्यावरण कार्यकर्ता इस कदम को वन भूमि को औद्योगिक घरानों को सौंपे जाने के रूप में देखते हैं। यद्यपि वन्य विशेषज्ञों का एक हिस्सा इसे वनों का लाभ लेने की समझदारी भी मानता है
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