भीषण गरमियां तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन फर्क यह आया है कि अब भीषण गरमी हमें परेशान ही नहीं करती, डराती भी है। धरती पर जैसे-जैसे कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, इसका औसत तापमान भी बढ़ रहा है और साथ ही यह आशंका भी बन रही है कि हर अगली गरमी पिछली से ज्यादा सताएगी। हो सकता है कि ऐसा न हो और प्रकृति खुद ही हमें इससे बचाने का कोई रास्ता निकाले। लेकिन फिलहाल तो ग्लोबल वार्मिंग को ही सबने अपना भविष्य मानना शुरू कर दिया है। खासकर वैज्ञानिकों ने।
- यह माना जा रहा है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग होती है, तो जल संकट बढे़गा, बीमारियां बढ़ेंगी, दुनिया के कई देश पानी में डूब जाएंगे और फसलों का उत्पादन कम हो जाएगा, वगैरह।
- लेकिन अब एक नया शोध हमें बता रहा है कि यदि कार्बन डाईऑक्साइड इसी तरह बढ़ती रही, तो जिन खाद्य पदार्थों से हमारा जीवन चलता है, उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व कम हो जाएंगे। यानी ये खाद्य पदार्थ सदियों से हमें जैसा पोषण देते रहे हैं, वैसा अब शायद हमें नहीं मिलेगा। उनका स्वाद बदलने का खतरा भी मंडरा रहा है।
Effect of Global warming on Nutrition level of food crops
अमेरिकी कृषि विभाग के एक वैज्ञानिक लुईस एस जिस्का ने चावल पर किए गए अपने शोध में पाया है कि यह बदलाव होने भी लगा है। उन्होंने पता लगाया है कि वातावरण में बढ़ती कार्बन डाईऑक्साइड की वजह से चावल के दानों की रासायनिक संरचना बदलने लग पड़ी है। इसके लिए उन्होंने चीन और जापान के उन हिस्सों में चावल की फसल पर शोध किया, जहां कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर बाकी जगहों के मुकाबले काफी ज्यादा है। ऐसी जगहों को यह मानकर चुना गया कि जिस तरह से यह समस्या पूरी दुनिया में बढ़ रही है, एक दिन बाकी जगहों का हाल भी तकरीबन ऐसा ही होगा। वैज्ञानिकों की टीम ने इन इलाकों में होने वाली धान की 18 किस्मों का विस्तार से अध्ययन किया और पाया कि इन किस्मों में प्रोटीन ही नहीं, बल्कि आयरन और जिंक जैसे तत्व भी कम हो गए हैं। इतना ही नहीं, उनमें पाए जाने वाले बी1, बी2, बी5 और बी9 विटामिनों की मात्रा में भी खासी कमी आई है। लेकिन एक दिलचस्प बात यह भी थी कि इन सबमें विटामिन ई की मात्रा बढ़ गई है। धान पर किया गया यह शोध इसलिए महत्वपूर्ण है कि दुनिया की दो अरब आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। यानी बदलाव हुआ, तो इसका असर बहुत बड़े पैमाने पर पड़ेगा। हो सकता है कि कुछ ऐसे जैव-रसायन भी कम हो जाएं, जो हमें अभी तक तरह-तरह की बीमारियों से बचाते रहे हैं। चावल के अलावा हमारी बाकी फसलों पर इसका क्या असर होगा, यह अभी ठीक से नहीं पता, लेकिन खाद्य संबंधी हमारी परेशानियों का दायरा बड़ा होने वाला है।
खाद्य सुरक्षा पर ग्लोबल वार्मिंग के पड़ने वाले असर को मापने के लिए किया गया यह शोध हमें एक और बात बताता है कि फसलें बदलते मौसम के हिसाब से अपने आप को ढालने की कोशिश कर रही हैं। जाहिर है कि अगर पेड़-पौधे खुद को बदल रहे हैं, तो हमें भी अपने आप को बदलना होगा। हमारी पूरी सभ्यता बदलती स्थितियों के हिसाब से अपने आप को ढालने की प्रक्रिया में ही विकसित हुई है। इसलिए बेहतर यही होगा कि इसे बडे़ खतरे या गहरी आशंका की बजाय मानव सभ्यता की एक चुनौती के रूप में देखा जाए।