लू को प्राकृतिक आपदा नहीं मानती सरकार
#Down to Earth
भारत में लू (Heat Wave) तीसरी सबसे बड़ी आपदा है जो लोगों को मौत के मुंह में पहुंचा देती है। साल 2015 में लू से 2,040 लोगों की मौत हो गई थी लेकिन विडंबना यह है कि सरकार लू को प्राकृतिक आपदा ही नहीं मानती।
FACT SHEET:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1992 से 2016 के बीच 25,716 लोगों की मौत लू के कारण हुई है। राज्य सरकारों ने 2015 में 2,040 और 2016 में लू से 1,111 मौतों की जानकारी दी। सूर्य का ताप देशभर में वन्यजीवों, पक्षियों आदि के लिए प्राणघातक साबित हो रहा है।
क्लाइमेट मॉनिटरिंग एंड अनेलिसिस ग्रुप की ओर से जारी एनुअल क्लाइमेट समरी 2016 के अनुसार, अप्रैल और मई 2016 के बीच लू से अकेले तेलंगाना में 300 लोगों की मौत हो गई। इस अवधि में आंध्र प्रदेश में 100 लोग लू का शिकार हो गए। जबकि गुजरात में 87 और महाराष्ट्र में 43 लोग लू की भेंट चढ़ गए।
- Nationdl disaster management act, 2005 और आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति, 2009 में लू को प्राकृतिक आपदाओं की सूची में शामिल नहीं किया गया है। इस कारण इस आपदा से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को मदद पहुंचाने के लिए आर्थिक तंत्र विकसित नहीं हो पाया है।
सरकारी रिकॉर्ड में केवल हीट स्ट्रोक और हीट एक्सजॉस्चन (वह स्थिति जब गर्मी से शरीर में पानी कमी होने के बाद घबराहट और कमजोरी से मौत हो जाती है) से हुई मौतों को लू से होने वाली मौतों में शामिल किया जाता है। एनडीएमए के अनुसार, लू पर्यावरणीय तापमान की वह स्थिति है जो मानसिक रूप से थका देती है जिससे कई बार मौत भी हो जाती है।
लू को मृत्यु का कारण साबित करना आसान नहीं है और इस कारण आर्थिक मदद नहीं मिल पाती। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने पिछले साल लू से मरने वाले लोगों के परिजनों का एक लाख रुपए की आर्थिक मदद का ऐलान किया था। लेकिन ज्यादातर परिवारों को यह मदद नहीं मिल पाई क्योंकि लू को मौत का कारण साबित नहीं किया जा सका।