#Dainik_Tribune
राजनेताओं की अदूरदर्शिता और प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट के लिये वैज्ञानिक रिपोर्ट को किस तरह नजरअंदाज किया जाता है, उसका ज्वलंत उदाहरण धूल फांकती गाडगिल पैनल की रिपोर्ट है। जिसका खमियाजा किसी हद तक केरल में बाढ़ की तबाही है, जिसमें एक घटक मानवीय हस्तक्षेप भी है। दरअसल, देश की राजनीति खनन, बिल्डर और भू-माफिया से मिलने वाली कमाई पर पलती है। जिन्हें राजनेता संरक्षण देते हैं। यही कहानी केरल से लेकर उत्तराखंड तक दोहराई जा रही है। जो कालांतर मौसम के बिगड़ते मिजाज से प्राकृतिक आपदाओं की वजह बनती है।
- केरल के संवेदनशील पश्चिमी घाटों की कमोबेश यही स्थिति है, जो भारत में मानसून का प्रवेश द्वार कहा जाता है।
Gadgil Committee Report
- दरअसल, पर्यावरण व वन मंत्रालय ने पश्चिमी घाटों के पारिस्थितिकीय अध्ययन के लिये वर्ष 2010 में विशेष पैनल बनाया था, जिसकी अध्यक्षता वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने की थी। वर्ष 2011 में प्रस्तुत रिपोर्ट में गाडगिल पैनल ने केरल समेत छह राज्यों में पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील माना और इसे तीन स्तरों पर बांटा।
- रिपोर्ट में नयी औद्योगिक गतिविधियों और खनन पर रोक लगाने की बात कही गई। साथ ही ग्राम पंचायतों व स्थानीय समुदाय से विकास कार्यों के लिये कड़े नियम बनाने को कहा गया।
- छह राज्यों को रिपोर्ट दी गई तो उन्होंने इसको लागू करने से इनकार कर दिया।
- फिर पर्यावरण मंत्रालय ने राजनीतिक दबाव में अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक और पैनल गठित किया, जिसे गाडगिल पैनल की रिपोर्ट की जांच का जिम्मा सौंपा गया। जिसने 2013 में दी रिपोर्ट में पश्चिमी घाट के एक-तिहाई हिस्से को संवेदनशील बताया। पैनल ने 13108 वर्ग कि.मी. इलाके को संवेदनशील माना जहां खनन, बड़े उद्योग, थर्मल पावर व प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर रोक लगाने की बात कही गई थी। केरल सरकार ने इस दायरे पर आपत्ति जताते हुए 9993 वर्ग कि.मी. इलाके को चिन्हित किया।
वैज्ञानिक गाडगिल का कहना है कि यदि सरकार ने पैनल की रिपोर्ट को स्वीकार किया होता तो बाढ़ से तबाही कम होती। खनन व अवैध निर्माण से नदी की धारा दिशा बदल देती है जो बाढ़ व सूखे का कारण बनती है। मगर कानूनहीन समाज और बेहद खराब प्रशासन के चलते पर्यावरण संरक्षक कानूनों का पालन नहीं हो पाता। दरअसल, बांधों का निर्माण बिजली की जरूरतों के हिसाब से होता है, नदी की धारा के हिसाब से नहीं, जो कालांतर तबाही का कारण बनती है। वह चाहे केरल हो या उत्तराखंड