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इस वर्ष अप्रैल और मई यानी केवल दो महीनों में देश के 16 राज्यों में 50 से अधिक तूफान आए, जिनमें 500 से अधिक लोगों की जान गई और कई एकड़ की फसल बरबाद हुई। यह सामान्य तो कतई नहीं लगता है। या फिर तूफान इतने आम हो गए हैं?
ये तूफान हमें चेतावनी दे रहे हैं कि हमारी दुनिया में कुछ गलत हो रहा है। पहली बात, तूफान जमीन और पानी के कुप्रबंधन का नतीजा हैं। इसके चलते जमीन रेतीली हो रही है और हवा के साथ धूल भरी आंधियों का सिलसिला चल रहा है। इसका संबंध मौसम का पूर्वानुमान लगाने की हमारी कमजोरी से भी है और उस नव सामान्य हालात से भी जहां जलवायु परिवर्तन के चलते नैसर्गिक मौसम का बदलाव मौसम के वैश्विक बदलाव से मिल रहा है।
एक बात तो स्पष्ट है कि तूफानों को रोका नहीं जा सकता है लेकिन लोगों की जान बचाई जा सकती है। डॉपलर रडार की मदद से 2 मई को आए भीषण विनाशकारी तूफान की अग्रिम जानकारी जारी की जा सकती थी। डॉपलर रडार सतह पर धूल के स्तर और हवा की तीव्रता आसानी से माप सकता है। परंतु जयपुर में स्थित यह रडार काम ही नहीं कर रहा।
जाहिर है हम ऐसी चूक बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं। सच तो यह है कि वर्ष 2018 के तूफान हमारे भविष्य का चित्रण कर रहे हैं। सबसे पहले बात करते हैं धूल की। धूल क्यों उत्पन्न हो रही है यह अलग कैसे है? उन टु अर्थ में मेरे सहयोगियों ने बदलते मौसम विज्ञान के बारे में जानकारी एकत्रित की। पहली बात तो यह कि पश्चिमी विक्षोभ का चरित्र बदल रहा है। ये वे हवाएं हैं जो भूमध्यसागर से आती हैं और पूरे पश्चिम एशिया का सफर कर भारत में प्रवेश करती हैं। यहां हिमालय उनकी राह रोकता है। यह बारिश और बर्फबारी की वजह बनती है। हमेशा से ऐसा होता आया है लेकिन अब दो या तीन पश्चिमी विक्षोभों के बजाय हमारा सामना 10 या उससे अधिक विक्षोभों से हो रहा है। इससे भी अलग बात यह है कि पश्चिमी विक्षोभ अब अपेक्षाकृत देरी से आ रहे हैं।
सामान्य स्थिति में पश्चिम विक्षोभ जाड़े के दिनों में आता है और उसके चलते बर्फबारी होती है। इन दिनों वह अप्रैल और मई में आ रहा है। बल्कि इन दिनों भी भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति है। यह नई और असामान्य बात है। ऐसा क्यों हो रहा है? इस विषय में विज्ञान अभी विकासोन्मुखी है लेकिन यह स्पष्टï है कि पश्चिमी विक्षोभ में बदलाव आ रहा है क्योंकि आर्कटिक सागर गर्म हो रहा है। आप पूछेंगे ऐसा क्यों हो रहा है? सच तो यह है कि आर्कटिक के गर्म होने के साथ ही दुनिया के ठंडे और भूमध्यरेखीय प्रदेशों के बीच तापमान का अंतर कम हो रहा है। इसकी वजह से आर्कटिक से भूमध्यरेखा की ओर चलने वाली हवाएं कमजोर पड़ रही हैं। यह बात पश्चिमी विक्षोभ की गति और उसके घटित होने के मौसम को प्रभावित कर रही है।
परंतु बात केवल इतनी ही नहीं है। सच तो यह है कि बंगाल की खाड़ी में तापमान बढ़ रहा है। सामान्य औसत से 1-2 डिग्री सेल्सियस तापवृद्घि दर्ज की जा चुकी है। यानी तूफानों और चक्रवातों को गतिशील बनाने के लिए आद्र्रता बढ़ रही है। यह चक्रवाती तंत्र अब शुष्क और ठंडे लेकिन देर से आ रहे पश्चिमी विक्षोभ से टकरा रहा है जिससे तूफान बढ़ रहे हैं। गर्मी और चौतरफा धूल माहौल को और खराब कर रहे हैं। इस वर्ष समूचे उपमहाद्वीप के समूचे उत्तरी भाग में तापमान बढ़ रहा है। राजस्थान में अप्रैल में ही तापमान 46 डिग्री सेल्सियस का स्तर पार कर गया था। पाकिस्तान में यह 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर था। गंगा के मैदानी इलाकों में तो तापमान में सामान्य से आठ डिग्री तक का इजाफा दर्ज किया गया।
यह असामान्य है लेकिन नव सामान्य होता जा रहा है। उच्च तापमान का अर्थ है जमीन पर आर्दता की कमी, धूल और रेतीले इलाकों में इजाफा। इससे 130 किलोमीटर प्रति घंटे तक की दर से धूल भरी आंधियां चल रही हैं और बहुत अधिक नुकसान हो रहा है। सन 1980 से 2003 के बीच देश में 9 बड़े तूफानों में 640 लोग मारे गए। अगले 14 वर्ष यानी 2003 से 2017 के बीच 22 तूफान दर्ज किए गए जिन्होंने 700 लोगों की जान ली। परंतु वर्ष 2018 में 50 से अधिक ऐसे तूफानों ने 500 से अधिक लोगों की जान ले ली है।
यानी यह नव सामान्य मनुष्यजनित कारकों से मिलकर तैयार हुआ है। इसके लिए जमीन का कुप्रबंधन, रेगिस्तान तैयार होना, कार्बन उत्सर्जन आदि तमाम वजहें जिम्मेदार हैं जिनके कारण सतह गर्म हो रही है और ये घटनाएं घट रही हैं।
वक्त आ गया है कि हम इस बदलाव को समझें। यह आसानी से खत्म होने वाला घटनाक्रम नहीं है। यह बदलाव आने वाले दिनों में रहेगा और ज्यादा घातक होता जाएगा। यह भी स्पष्टï है कि आज दुनिया के गरीब लोग ही इस मानव जनित त्रासदी से सबसे अधिक पीडि़त हैं। आखिर रेत के तूफान में अमीर नहीं मरते। न ही चक्रवाती तूफान से उनकी आजीविका प्रभावित होती है
तथ्य यह है कि यह खराब मौसम हमें भविष्य के दिनों की आहट दे रहा है। आगे क्या होगा इसका अनुमान लगाना आसान नहीं। जो भी घटेगा वह हमें चकित और स्तब्ध करेगा और हम उसके लिए तैयार नहीं होंगे। अंत में जलवायु परिवर्तन सब को समान रूप से प्रभावित करेगा। यह भी जाहिर है। सवाल केवल यह है कि हम हालात से निपटने के लिए क्या करेंगे? इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है