हवा में बढ़ता जहर

#Hindustan

पर्यावरण परState of global air 2017’ के आंकड़े खतरनाक हद तक चौंकाने वाले हैं। भारत विश्व में अस्वाभाविक या समय से पहले होने वाली मौतों के मामले में कई रिकॉर्ड तोड़ता दिखा है।

The Lancent Report

  • लैन्सेट में प्रकाशित अध्ययन भी बता रहा है कि भारत इस मामले में चीन से आगे निकल गया है और जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, वह दिनोंदिन इतनी जहरीली होती जा रही है कि हर दिन कम से कम दो मौतें महज वायु प्रदूषण से हो रही हैं।
  • इस संख्या के बढ़ने का अंदेशा है। पर्यावरण मंत्री भले ही इन आंकड़ों से संतुष्ट दिखें, औरदेश को अपने ही आंकड़ों पर भरोसा करना चाहिएवाले भाव से बताएं कि मंत्रालय जल्द ही अपनी रिपोर्ट जारी करेगा, लेकिन यह सच्चाई से मुंह चुराने जैसा है। अपने आकलन सच्चाई के करीब हो सकते हैं, पर इन संस्थाओं के निष्कर्ष भी सिरे से खारिज नहीं किए जा सकते। तब तो और भी नहीं, जब शेष विश्व इनकी बातों को सिर्फ गंभीरता से लेता हो, बल्कि इस पर उचित फोरम में बहस कर समाधान की राह भी तलाशता हो
  • रिपोर्ट बताती है कि भारतीय पर्यावरण का प्रदूषण सौ साल में पहली बार चीन से आगे गया है और यही सही समय है, जब हमें चेत जाना चाहिए।
  • ग्रीनपीस की रिपोर्ट कहती है कि चीन ने अपने यहां इंतजाम कर अपनी आबो-हवा को थोड़ा सुधार लिया, लेकिन भारत का प्रदूषण स्तर तमाम बहसों, सेमिनारों, अध्ययनों और चेतावनियों के बावजूद बीते एक दशक में खतरनाक दिशा में बढ़ता गया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी कहती है कि दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 20 शहरों में से 13 भारत में हैं और ग्रीनपीस की राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक रैंकिंग रिपोर्ट में भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक वाले17 शहरों का प्रदूषण स्तर भारतीय मानकों से भी कहीं ज्यादा है। ग्रीनपीस ही नहीं, विभिन्न स्तरों से समय-समय पर भारत को जो सुझाव मिले हैं, यदि उन पर तार्किक दृष्टिकोण अपनाया गया होता, तो शायद आज इतने बुरे हालात होते।

ये आंकड़े कहीं कहीं हमारे सिस्टम की विसंगतियों की ओर भी इशारा करते हैं। सच है कि हमारे यहां प्रदूषण का स्तर संभालने से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक पर उतना वैज्ञानिक तरीके से काम नहीं हुआ, जैसा कि होना चाहिए था। यह समय अपने औजारों का फिर से परीक्षण करने का है, क्योंकि ऐसे अध्ययन और रिपोर्टों में पिछड़ा दिखना हमारे विकास की परिभाषाओं पर भी सवाल उठाता है। ऐसे में, जरूरी है कि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक हासिल करने के लिए एक समय-सीमा तय की जाए और दीर्घ अवधि के साथ-साथ कुछ अंतरिम उपाय अपनाए जाएं। इसके लिए नियमों में सख्ती के साथ ही पालन की प्रक्रिया को भी सख्त बनाने की जरूरत है। ऑड-ईवन नीति, कार फ्री डे या थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन पर सख्त मानक एक विकल्प हो सकते हैं, लेकिन अंतिम विकल्प नहीं।

अगर अध्ययन कहता है कि वायु प्रदूषण से उत्पन्न हालात किसी युद्ध की विभीषिका, तूफान के असर या भुखमरी या एड्स के असर से ज्यादा भयावह हैं, तो हमें इन या ऐसे आंकड़ों को कमतर आंकने के आत्मघाती कुचक्र में पड़ने की बजाय इनके पीछे के सच, कारकों की पहचान करने और उनसे निजात पाने की कोशिशों में लगना होगा। वायु प्रदूषण का कोई एक कारण हमारे पास नहीं मौजूद है। घर के धुएं से लेकर खेतों में जलता फसल का अवशेष, उद्योग से लेकर परिवहन के साधन तक जब इसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हों, तो हमें समाधान के पश्चिमी पैरामीटर से अलग जाकर अपने देश-काल के अनुरूप ही कुछ समाधान तलाशने होंगे

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download