Waste is becoming a mounting problem for Indian economy and we have to take urgent steps to get rid of this problem.
#Amar_Ujala
इलेक्ट्रॉनिक, प्लास्टिक और अस्पतालों का कचरा पर्यावरण और वातावरण की सेहत के लिए समस्या बनता जा रहा है। कचरा प्रबंधन और उससे पर्यावरण संरक्षण के बारे में कार्यनीति की जरूरत मनुष्य के जीवन से जुड़ी है। सुविधाओं के लिए हमने कुछ ऐसे उत्पाद पैदा किए हैं, जिन्हें सड़ाया या गलाया नहीं जा सकता। इन्हें केवल वैज्ञानिक प्रबंधन से कम किया जा सकता है। सभी प्रकार के कचरों को पुनः उपयोग में लाना संभव नहीं है। बेहतर कचरा प्रबंधन से ही उनसे छुटकारा पाया जा सकता है।
Problem of Electronic waste:
आज हर हाथ में मोबाइल है। लैपटाप, सीडी, पेन ड्राइव, रेफ्रीजरेटर, टेलीविजन, फोटो कॉपियर्स, फैक्स मशीनों के नए मॉडल बाजार में आ रहे हैं।
खराब इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद ई-कचरे में तब्दील हो रहे हैं। घरों में प्रयुक्त होने वाले बल्व, ट्यूबलाइटें, प्लास्टिक या बैटरियों के कचरे वातावरण में हानिकारक पदार्थ छोड़ रहे हैं।
How does it waste nagetively affect
इन कचरों से क्लोरिनेटेड और ब्रोमिनेटेड गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनमें मरकरी, शीशा, क्रोमियम, बेरियम, बेरिलियम, कैडमियम जैसे तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। इन ई-कचरों के निस्तारण की वैज्ञानिक नीति का अभाव है।
स्थानीय निकाय कचरे को नदी, नालों या सड़कों के किनारे फेंक रहे हैं। इससे नदियों की सेहत खराब हो रही है, जिससे भूजल एवं मछलियों की सेहत खराब हो रही है और उनके सेवन से मनुष्य बीमार पड़ रहा है।
कचरों में आग लगाने से हवा विषैली होती है, तो जमीन पर बिखेरने से मिट्टी प्रदूषित होती है। कृषि संबंधी जैविक कचरा आसानी से सड़-गल जाता है।
गांवों में शादी-ब्याह में प्रयुक्त होने वाले मिट्टी के बरतन और पत्तलों की जगह प्लास्टिक के उत्पादों ने ले ली है। हर उत्पाद की पैकेजिंग में प्लास्टिक प्रयुक्त हो रहा है।
देश में रोज पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हो रहा है, जिनमें से मात्र नौ हजार टन ही पुनः उत्पाद के लिए चुना जाता है। विकसित देशों ने अपने यहां कचरा प्रबंधन के उपाय तो किए ही हैं, ई-कचरे को विकासशील देशों की ओर सरकाना भी शुरू कर दिया है।
Solution: Recycling
कचरे में से कुछ को ही रीसाइकिल किया जा सकता है। रीसाइकिल करने के लिए जरूरी है कि दिन-प्रतिदिन के कचरे से जैविक कचरे और रीसाइकिल कचरे को अलग किया जाए। इसके लिए समाज का शिक्षित और जागरूक होना जरूरी है। हमने कचरे को अलग-अलग निस्तारित करने की दिशा में समुचित कार्य नहीं किया है। कचरे से रीसाइकिल पदार्थों को चुनने वाले गरीबों के सहारे जो कुछ कचरा साफ हो रहा था, वह जीएसटी के कारण प्रभावित हुआ है।
चिकित्सा कचरे का निस्तारण सतर्कता और वैज्ञानिक प्रबंधन की मांग करता है। एक्स-रे प्लेटें, इस्तेमाल की गई सुइयां, पट्टियां, ग्लूकोज की बोतल आदि को कैसे जमा किया जाए, इसके लिए चिकित्सालयों को प्रशिक्षित करना होगा।
कचरा निस्तारण की दिशा में हमने थोड़े विलंब से सोचना शुरू किया है। इस संदर्भ में हमने कुछ जरूरी कानून भी बनाए हैं। इसके बावजूद कचरा प्रबंधन में कोई सुधार नहीं दिख रहा। समय की मांग है कि कचरों को उनके उत्पादन स्रोत पर ही न्यून और हानिरहित करने का प्रबंध किया जाए। रीसाइकिल युक्त पदार्थों के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जाए । कचरे को खुले में छोड़ने के बजाय उसे जमा करने की वैज्ञानिक नीति अपनाई जाए। जनता के स्वास्थ्य के लिए हमें बेहतर कचरा प्रबंधन करना ही होगा।
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