#Dainik_Tribune
- देश में मानसून की शुरुआती बारिश ने अभी से कहर बरपाना आरंभ कर दिया है। देश के पांच राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, असम और केरल के 93 जिले बाढ़ की भीषण चपेट में हैं।
- इन पांच राज्यों में बाढ़ से अभी तक कुल मिलाकर 500 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। इनके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र, तेलंगाना, ओडिसा और मध्यप्रदेश भी बाढ़ के कहर से अछूते नहीं हैं।
- यदि नेशनल इमरजेंसी रेस्पांस सेंटर की मानें तो अभी तक असम में साढ़े दस लाख, पश्चिम बंगाल में पौने दो लाख, केरल में डेढ़ लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं।
- अभी तक असम में दो लाख सत्रह हजार, गुजरात में पंद्रह हजार नौ सौ बारह से अधिक लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया जा चुका है।
- इसके अलावा उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल में नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। हालत यह है कि गंगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, यमुना, घाघरा, शारदा, नर्मदा अपने रौद्र रूप में हैं।
- पटना में बीते दो साल का बारिश का रिकार्ड टूट गया है।
- राजधानी दिल्ली में यमुना का जलस्तर पांच गुणा बढ़ने और खतरे के निशान से ऊपर बहने के कारण यमुना किनारे बसी बस्तियों के और यमुना के डूब क्षेत्र में झुग्गियां पानी में डूब चुकी हैं और उत्तरी पूर्वी दिल्ली के यमुना खादर में रहने वालों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।
बाढ़ ऐसी आपदा है, जिसमें हर साल करोड़ों का नुकसान ही नहीं होता बल्कि हजारों-लाखों घर, लहलहाती खेती बर्बाद होती है और अनगिनत मवेशियों के साथ हज़ारों इंसानी ज़िंदगियां पल भर में मौत के मुंह में चली जाती हैं। पिछले तीन दशक में देश में सवा चार अरब से भी ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। बाढ़ की समस्या वैसे तो सभी क्षेत्रों में है लेकिन मुख्य समस्या गंगा के उत्तरी किनारे वाले क्षेत्र में है। गंगा बेसिन के इलाके में गंगा के अलावा यमुना, घाघरा, गंडक, कोसी, सोन और महानंदा आदि प्रमुख नदियां हैं जो मुख्यतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार सहित मध्य एवं दक्षिणी बगांल में फैली हैं। इनके किनारे घनी आबादी वाले शहर बसे हैं। इस पूरे इलाके की आबादी 40 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। यहां आबादी का घनत्व 500 व्यक्ति प्रति किमी का आंकड़ा पार कर चुका है। परिणामस्वरूप नदियों के प्रवाह क्षेत्र पर दबाव बेतहाशा बढ़ रहा है। उसके ‘बाढ़ पथ’ पर रिहायशी कॉलोनियों का जाल बिछता जा रहा है।
दरअसल, हिमालय से निकलने वाली गंगा, सिंध, ब्रह्मपुत्र हो या कोई अन्य उसकी सहायक नदी हो, उनके उद्गम क्षेत्रों की पहाड़ी ढलानों की मिट्टी को बांधकर रखने वाले जंगल विकास के नाम पर जिस तेजी से काटे गए और वहां बहुमंजिली इमारतों, कारखानों और सड़कों का जाल बिछा दिया गया। नतीजतन ढलानों पर बरसने वाला पानी बारहमासी झरनों के माध्यम से जहां बारह महीनों इन नदियों में बहता था, अब वह ढलानों की मिट्टी और अन्य मलबे आदि को लेकर मिनटों में ही बह जाता है। इससे नदी घाटियों की ढलानें नंगी हो जाती हैं। दुष्परिणाम स्वरूप भूस्खलन, भूक्षरण, बाढ़ आती है और बांधों में साद का जमाव दिनोंदिन बढ़ता जाता है। इसके बाद ढलानों को काट-काट कर बस्तियों, सड़क निर्माण व खेती के लिए जमीन को समतल किया जाता है। इससे झरने सूखे, नदियों का प्रवाह घटा और बाढ़ का खतरा और उससे होने वाली तबाही का ग्राफ बढ़ता चला गया। यदि सरकारी आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पाते हैं कि सन् 1951 में देश में एक करोड़ हेक्टेयर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र था, जो बढ़कर आज तकरीबन सात करोड़ हेक्टेयर से भी अधिक है।
देश में विकास के नाम पर हुए जंगलों के कटान के कारण नदी घाटी क्षेत्र की ढलानों की बरसात को झेलने की क्षमता अब खत्म हो चुकी है। मिट्टी गाद के रूप में नदी की धारा में जमने लगती है। मैदानी इलाकों में यह गाद नदियों की गहराई को पाटकर उथला बनाती है। अब नदियों के किनारे न हरियाली बची, न पेड़-पौधे। इनके अभाव में पेड़ों की जड़ें मिट्टी कहां से बांधेंगी। नतीजतन बरसात के पानी का प्रवाह नदी की धारा में समा नहीं पाता और वह आसपास के इलाकों में फैलकर बाढ़ का रूप अख्तियार कर लेता है।
हमारे यहां वह बड़ा शहर हो या छोटा, उसके निर्माण के समय बनी योजना में नदी-नालों के पानी की निकासी के बारे में सोचा ही नहीं गया, उसकी व्यवस्था की बात तो दीगर है। शहरों के बीचो-बीच बहने वाली नदी हो या फिर वहां बने ताल-तलैयों के जल की निकासी के सवाल को अनसुलझा छोड़कर उस पर अंधाधुंध निर्माण किए जाते रहे। नतीजतन जरा-सी बारिश होने पर देश की राजधानी सहित अधिकांश शहरों में बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं।
जरूरी है मौसम के बदलाव के मद्देनजर नदियों की प्रकृति का सूक्ष्म रूप से विश्लेषण-अध्ययन कर नदी प्रबंधन की तात्कालिक व्यवस्था की जाये। यह ध्यान में रखते हुए कि बाढ़ महज प्राकृतिक प्रकोप नहीं है, वह मानवजनित कारणों से उपजी भीषण समस्या है।