विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान आघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों ने उत्तर पश्चिमी घाटों के वनस्पतियों से जुड़े आंकड़े सामने रखे हैं, जिससे संकेत मिलते हैं कि उत्तर पूर्वी घाटों के संरक्षण के लिए वनों के अलावा पठारों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
यह पठार और खड़ी चट्टानें ही हैं जो ज्यादातर स्थानीय प्रजातियों का आश्रय स्थल हैं, इस प्रकार संरक्षण योजनाओं का महत्व बढ़ रहा है।
स्थानीय वनस्पतियों में से अधिकांश थेरोफाइट्स हैं, जो मॉनसून के दौरान एक अल्प अवधि में अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेती हैं
भारत के पश्चिमी घाट वनस्पतियों से युक्त दुनिया के प्रमुख जैव विविधता स्थलों में से एक है, जिन्हें पर्वतों की एक श्रृंखला का आश्रय मिला हुआ है। कोंकण के साथ ही इस जैव विविधता स्थल का उत्तरी भाग कम वर्षा और ज्यादा शुष्क मौसम के चलते इसके दक्षिणी और मध्य क्षेत्र से काफी अलग है।
उत्तर पश्चिमी घाटों की प्रमुख भौगोलिक विशेषता यहां उपस्थित पठार और चट्टानें हैं, जो वन की तुलना में अधिकतम स्थानीय वनस्पतियां हैं। उत्तर पश्चमिमी घाटों के वनों में ऐसी कई प्रजातियां हैं, जो स्थानीय नहीं हैं।