Recent Mumbai mishap has highlighted growing crisis of Indian urbnization.
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Mumbai Mishap
मुंबई के लोकल ट्रेन नेटवर्क में शामिल एलफिन्सटन रोड स्टेशन पर हुई भगदड़ ने एक बार फिर हमें याद दिलाया है कि देश की वित्तीय राजधानी अपने रहवासियों की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही है। मुंबई जैसे शहरों को विकास का वाहक होना चाहिए लेकिन अगर वहां रहने वाले लोग ऐसे हादसों के शिकार होते रहे तो यह शहर भला उम्मीदों पर खरा कैसे उतरेगा? पिछले दिनों एलफिन्सटन रोड स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ में 23 लोगों की जान चली गई। इससे भी बुरी बात यह है कि इस त्रासदी के जिम्मेदार लोग आसानी से बच जाएंगे क्योंकि देश के शहरों और उनके बुनियादी ढांचे को संभालने वालों की व्यवस्था भ्रम की शिकार है। इस बात को लेकर गंभीर बहस छिड़ी हुई है कि यह दुर्घटना भारतीय रेल के किस क्षेत्राधिकार में आती है। संचालन संबंधी विफलताएं अनिवार्य तौर पर जिम्मेदारी और जवाबदेही के स्पष्टï ढांचे के अभाव से उत्पन्न होती हैं।
Mumbai Infrastructure
मुंबई का बुनियादी ढांचा एक समय देश के अन्य हिस्सों के लिए ईष्र्या का सबब था। परंतु अब यह कई मोर्चों पर पीछे रह गया है। उसकी उपनगरीय रेल सेवा समय से कदमताल नहीं कर पाई और उसकी तुलना दिल्ली और कोलकाता की आधुनिक मेट्रो सेवा से नहीं की जा सकती। कमजोर संचार सेवा का अर्थ यह हुआ कि मुंबई के वित्तीय और कारोबारी इलाके आवासीय इलाकों से बहुत दूर हो गए। जबकि दुनिया के अन्य बड़े शहरों में ऐसा नहीं है।
Mumbai is not urbanized but Pseudo urbanized
इस व्यापारिक शहर से जहां दो दर्जन पुल, सुरंगें और रेल लाइन जुड़े हैं, वहीं दक्षिण मुंबई तक पहुंचने के लिए केवल दो राजमार्ग और दो रेल लाइन हैं। इस तटवर्ती शहर के छह में से पांच पुल उत्तरी इलाके में हैं। मुंबई में कई सुरंगें और पुल शहर के बीचोबीच स्थित कारोबारी इलाकों से जुड़े हैं। लगातार कमजोर पड़ते बुनियादी ढांचे की बेहतरी के लिए भी कुछ नहीं किया गया। इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत कम पूंजी निवेश किया गया। मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) का बजट वृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के कुल बजट का बमुश्किल 15 फीसदी है। बीएमसी देश के सबसे समृद्घ नगर निकायों में से एक है। इस बीच एमएमआरडीए ने अपना काफी वक्त महाराष्ट्र राज्य सरकार में समकक्षों के साथ विवादों में बिताया है। आश्चर्य नहीं कि प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के उभरते बाजार वाले शहरों में मुंबई को रहने के हिसाब से सबसे निचले पायदान वाले शहरों में शामिल किया गया है। शांघाई और जोहानीसबर्ग जैसे शहर जहां सर्वे में 80 तक अंक पाने में सफल रहे, वहीं मुंबई को महज 25 अंक मिले। इस विफलता के लिए बीएमसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि वह अतीत में अपनी ही विकास योजनाओं का बमुश्किल 20 फीसदी लागू कर सका है।
नवाचार और निवेश ऐसे शहरों में हुआ है जहां जीने की परिस्थितियां बेहतर हैं। जहां लोगों को बेहतर सार्वजनिक परिवहन मिल रहा है ताकि वे आसानी से और बिना किसी जोखिम के काम पर जा सकें। इस पैमाने पर मुंबई हर वैश्विक मानक से पीछे है। इसके लिए राजनीति को भी उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार सभी जगह एक ही दल का शासन है। ऐसे में एक संस्थागत सुधार की आवश्यकता है ताकि नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढ़ाई जा सके। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वादा किया था कि मुंबई को एक ‘सीईओ’ मिलेगा। उन्हें अपने वादे को पूरा करने पर काम करना चाहिए। कम से कम एक सीधे निर्वाचित और जवाबदेह मेयर को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह शहर के बुनियादी ढांचे पर खर्च करने के लिए राजस्व जुटा सके। ऐसा करके एलफिन्सटन रोड जैसे हादसों का दोहराव रोका जा सकेगा।