जल पर संवेदनशील बने समाज

Water level is coming down and future war will be fought over it. All around effort should be geared towards checking misuse of water to avert any major crisis

Dainik_Jagran

Rising crisis of Water

  • दुनिया पानी को लेकर विकराल संकट से जूझ रही है तो भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालात यहां तक पहुंच गए कि संयुक्त राष्ट्र को 1993 में 22 मार्च को विश्व जल दिवस घोषित करना पड़ा। इसका प्रयोजन संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में सभी सरकारों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ मिलकर जल संकट समाधान के लिए मिलकर काम करने से है।
  • इसी अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा सहस्नाब्दि विकास लक्ष्यों यानी एमडीजी के बाद सितंबर, 2015 में जिस सतत विकास लक्ष्य यानी एसडीजी को चुना गया उसमें भी मानव अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी जल को लेकर विशेष ध्यान दिए जाने पर जोर दिया गया है। इन चुनौतियों का तोड़ निकालने के बीच अब विभिन्न मंचों पर जलवायु परिवर्तन की चिंता पर चर्चा भी आम हो गई है।

INDIA & Water crisis

  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ के अनुसार पेयजल के लिए भले ही रोजाना प्रति व्यक्ति 2 से 4 लीटर पानी की जरूरत पड़ती हो, लेकिन किसी व्यक्ति के लिए एक दिन का भोजन तैयार करने में 3,000 से 5,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।
  • FAO का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक जल संपदा पर 2.7 अरब की अतिरिक्त आबादी के भरण-पोषण का बोझ भी पड़ने वाला है। भारत में भी प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2010 में 1608 घन मीटर के मुकाबले 2050 तक घटकर 1139 घन मीटर रह जाएगी।
  • चूंकि विकास के मोर्चे पर भारत तेजी से छलांग लगा रहा है जिससे पानी की जरूरत भी बढ़ेगी, ऐसे में यहां जल का समुचित प्रबंधन उतना ही अधिक महत्वपूर्ण होगा। फिलहाल देश की आधी से अधिक कामकाजी आबादी खेती से जुड़ी है जिसमें सिंचाई की अहम भूमिका है।
  • भारत में जल संसाधनों का 85 फीसद सिंचाई में उपयोग होता है। मानसून की बिगड़ी चाल और वर्षा के असमान वितरण से जहां बुंदेलखंड, विदर्भ, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ इलाके सूखे की मार झेल रहे हैं तो असम, बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे देश के कई इलाके बाढ़ की विभीषिका से परेशान हैं। यह असंतुलन न केवल कृषि, बल्कि ग्र्रामीण विकास, पर्यावरण, विनिर्माण और कारोबारी सेवाओं को भी प्रभावित कर रहा है जिसका खामियाजा अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ रहा है।

What to be done?

  • आवश्यकता है कि इस दुर्लभ संसाधन के संरक्षण के लिए गंभीर और सतत प्रयास किए जाएं जिसमें राज्य सरकारों, पंचायती राज संस्थानों, सामुदायिक संस्थानों और पारिवारिक से लेकर वैयक्तिक स्तर पर भागीदारी जरूरी होगी। जल संसाधन प्रबंधन के लिए सरकार ने कुल 30 लिंक चिन्हित किए हैं जहां अधिशेष जलराशि वाले इलाकों से पानी किल्लत वाले क्षेत्रों में पहुंचाया जाएगा। इस योजना में 16 लिंक प्रायद्वीपीय भारत और 14 हिमालयी क्षेत्र में हैं। नदियों को जोड़ना मौजूदा सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है जिसमें अधिशेष वाले क्षेत्रों से 170 अरब घन मीटर पानी को किल्लत वाले क्षेत्रों में पहुंचाने का लक्ष्य है। इससे 3.5 करोड़ अतिरिक्त भूमि सिंचित होगी। बाढ़ से निजात के अलावा नौवहन, पेयजल सहित तमाम मोर्चों पर सहायता मिलेगी। देश में जल प्रबंधन को तार्किक और संतुलित बनाने के लिए हमें पानी की आपूर्ति और उसके वितरण की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी।
  • सड़क, रेल और कई अन्य माध्यमों में निवेश की तुलना में सिंचाई में हुआ निवेश कहीं ज्यादा जल्दी फलीभूत होता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का आगाज किया। पर ड्रॉप, मोर क्रॉप यानी कम सिंचाई में अधिक फसल को सरकार ने अपना मंत्र बनाया है। इसमें सूखा प्रभावित क्षेत्रों को तरजीह दी जा रही है। राज्य और जनपद स्तर की योजनाओं में सिंचाई की मद में किए जाने निवेश को साथ जोड़ते हुए इस योजना को सिरे चढ़ाया जा रहा है। पूरा ध्यान खेत में पानी के बेहतर उपयोग और सिंचाई क्षमता और उपयोगिता में खाई पाटने पर है। समग्र्र-एकीकृत दृष्टिकोण के साथ जल क्रांति अभियान जैसी योजना भी सभी पक्षों की भागीदारी के साथ लागू हो रही है जिसका मकसद जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाना है। सरकार ने नेशनल वॉटर इन्फोर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना की जो जल संसाधनों के राष्ट्रव्यापी आंकड़े तैयार करेगा।
  • नदियों की सफाई एक अनवरत प्रक्रिया है। इसमें नमामि गंगे परियोजना उम्दा उदाहरण है। इसके तहत विभिन्न तरह की गतिविधियों वाली 173 योजनाएं संचालित हो रही हैं जिसमें घाटों की सफाई से लेकर गांव-शहरों की स्वच्छता भी शामिल है। 173 में 41 परियोजनाएं तो पूरी भी हो चुकी हैं। गंगा में गंदगी फैलाने वाले उद्योगों पर सरकारी सख्ती का ही असर है कि गंगा में प्रवाहित होने वाले प्रदूषकों की तादाद में 35 प्रतिशत की कमी आई है।
  • देश भर में बांध सुरक्षा के लिए भी बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना यानी डीआरआइपी चलाई जा रही है।
  • Inter state river dispute: चूंकि पानी का मसला संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची में आता है, ऐसे में अंतर-राज्य जल विवाद और उनका उचित समाधान केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत विवादों को सुलझाने के लिए वर्तमान में 8 ट्रिब्यूनल हैं। सरकार संशोधित राष्ट्रीय जल नीति पर काम कर रही है जिसमें केंद्रीय स्तर पर एक स्थाई जल विवाद ट्रिब्यूनल बनाने के साथ ही विवाद समाधान समिति बनाने की योजना है जो राज्यों के जल संबंधी विवादों का समाधान निकालेगी। इसके लिए 1956 के कानून में संशोधन के मकसद से सरकार इस साल लोकसभा में नया विधेयक पेश भी कर चुकी है।

जल प्रबंधन के लिए सरकार के कई मंत्रालय और विभाग भी कंधे के कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। सीवेज पाइपलाइन से लेकर शौचालय निर्माण और प्लंबर का कौशल सिखाने के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय से करार भी किया है। पानी के पुन: इस्तेमाल को लेकर रेल मंत्रालय और इंडियन ऑयल के साथ भी योजना बनाई है। बिजली मंत्रालय ने तो संयंत्रों के लिए अनिवार्य किया है कि वे सीवेज संयंत्र के 50 किलोमीटर की परिधि में मौजूद हों तो बिजली बनाने के लिए उसके पानी का ही इस्तेमाल करें। पानी के पुन: उपयोग को लेकर विभिन्न मंत्रालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, राज्य सरकारों और अन्य संस्थाओं के साथ सहयोग की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। जाहिर है जल संसाधनों के सतत विकास के लिए मौजूदा सरकार ने तमाम प्रयास किए हैं और जब इन प्रयासों को सभी वर्गों का साथ मिलेगा तो भारत निश्चित रूप से जल को लेकर संवेदनशील समाज बन जाएगा।

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