सुशासन का उपकरण है सिटिजन चार्टर
- सुशासन प्रत्येक राष्ट्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। सुशासन के लिए यह जरूरी है कि प्रशासन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही दोनों तत्व अनिवार्य रूप से विद्यमान हों। सिटिजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) एक ऐसा हथियार है, जो प्रशासन की जवाबदेहिता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है। जिसके चलते प्रशासन का व्यवहार आम जनता के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील रहता है। दूसरे अर्थो में प्रशासनिक तंत्र को अधिक जवाबदेह और जनकेंद्रित बनाने की दिशा में किए गए प्रयासों में सिटिजन चार्टर एक महत्वपूर्ण नवाचार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुशासन को महत्व देने का भरपूर प्रयास किया है, पर सफलता उनके मन माफिक नहीं मिली है। इसके पीछे सिटिजन चार्टर का सही तरीके से लागू न हो पाना एक कारण रहा है। जनता के वे कार्य जो समय सीमा के भीतर पूर्ण हो जाने चाहिए उसके प्रति दोहरा रवैया सुशासन की राह में बड़ी बाधा है।
- अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में देखें तो विश्व का नागरिक पत्र के संबंध में पहला अभिनव प्रयोग 1991 में ब्रिटेन में किया गया था जिसमें गुणवत्ता, विकल्प, मापदंड, मूल्य, जवाबदेही और पारदर्शिता मुख्य सिद्धांत निहित हैं। चूंकि सुशासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है ऐसे में शासन और प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि जनता की मजबूती के लिए हर संभव प्रयास करें। साथ ही व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह के साथ मूल्यपरक बनाए रखें। इसी तर्ज पर ऑस्ट्रेलिया में सेवा चार्टर 1997 में, बेल्जियम में 1992, कनाडा में 1995, जबकि भारत में 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में इसे मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया। पुर्तगाल, स्पेन समेत दुनिया के तमाम देशों ने नागरिक अधिकार पत्र को अपनाकर सुशासन की राह को समतल करने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री मोदी सुशासन के मामले में कहीं अधिक गंभीर दिखाई देते हैं, परंतु सर्विस फस्र्ट की नीति के आभाव में यह व्यवस्था बहुत फलदायी साबित नहीं रही है। वैसे सुशासन को निर्धारित करने वाले तत्वों में राजनीतिक उत्तरदायित्व सबसे प्रमुख कारक है। यही राजनीतिक उत्तरदायित्व सिटिजन चार्टर को भी नियम संगत लागू कराने के प्रति जिम्मेदार है। सुशासन के निर्धारक तत्व मसलन नौकरशाही की जवाबदेहिता, मानव अधिकारों का संरक्षण, सरकार और सिविल सेवा सोसायटी के मध्य सहयोग, कानून का शासन आदि तभी लागू हो पाएंगे जब प्रशासन और जनता के अंतरसंबंध पारदर्शी और संवेदनशील होंगे जिसमें सिटिजन चार्टर एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों को सरकरी दफ्तरों में बिना रिश्वत दिए अपना कामकाज निपटाने के लिए यदि सात दशक तक इंतजार करना पड़े तो यह गर्व का विषय तो नहीं होगा। जिस प्रकार सिटिजन चार्टर के मामले में राजनीतिक भ्रष्टाचार एवं प्रशासनिक संवेदनहीनता देखने को मिल रही है वह भी इसकी राह में बाधा रही है। सूचना का अधिकार कानून के साथ अगर सिटिजन चार्टर भी कानूनी शक्ल ले ले तो यह पारदर्शिता की दिशा में उठाया गया बेहतरीन कदम होगा और सुशासन की दृष्टि से एक सफल दृष्टिकोण करार दिया जाएगा। जिन राज्यों में पहले से सिटिजन चार्टर कानून अस्तित्व में है वहां कोई नए तरीके की अड़चन देखी जाती है। प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने नागरिक चार्टर के आंतरिक एवं बाहरी मूल्यांकन करने के लिए एक पेशेवर एजेंसी को दशकों पहले नियुक्त किया था। इस एजेंसी ने केंद्र सरकार के पांच संगठनों और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सरकारों के एक दर्जन से अधिक विभागों के चार्टरों का मूल्यांकन किया था। उसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि अधिकांश मामलों में चार्टर परामर्श प्रक्रिया के जरिये नहीं बनाए गए हैं। इनका पर्याप्त प्रचार-प्रसार भी नहीं किया गया है। नागरिक चार्टर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए किसी प्रकार की कोई धनराशि निर्धारित नहीं की गई है। उक्त मुख्य सिफारिशें यह परिलक्षित करती हैं कि सिटिजन चार्टर को लेकर लेकर जितनी बयानबाजी की गई, जमीन पर उतना किया नहीं गया। यद्यपि सिटिजन चार्टर प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है तथापि भारत में यह अधिक प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा। इसके कारण भी हतप्रभ करने वाले हैं। पहला यह कि इसका एक सर्वमान्य प्रारूप का निर्धारण नहीं हो पाया है। अभी भी कई सरकारी एजेंसियां इसका प्रयोग नहीं करती हैं। इसके साथ ही स्थानीय भाषा में इसे बढ़ावा नहीं दिया गया है। इस मामले में उचित प्रशिक्षण की भी कमी है तथा जिसके लिए सिटिजन चार्टर बना वही नागरिक समाज इसमें भागीदारी के मामले में वंचित रहा है।
- आज तक के अनुभव यही बताते हैं कि जिन देशों ने नागरिक चार्टर को एक सतत प्रक्रिया के तौर पर अपना लिया है वे सघन रूप से निरंतर परिवर्तन की राह पर हैं। जहां पर रणनीतिक और तकनीकी गलतियां हुई हैं वहां सुशासन भी डांवाडोल हुआ है। चूंकि सुशासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है ऐसे में लोक सशक्तीकरण ही इसका मूल है। सुशासन के भीतर और बाहर कई उपकरण हैं। सिटिजन चार्टर इसका मुख्य हथियार है। यह एक ऐसा माध्यम है जो जनता और सरकार के बीच विश्वास की स्थापना करने में अत्यंत सहायक है। लोकतंत्र नागरिकों से बनता है और सरकार नागरिकों पर शासन नहीं करती है, बल्कि नागरिकों के साथ शासन करती है। ऐसे में नागरिक अधिकार पत्र को कानूनी रूप देकर लोकतंत्र के साथ-साथ सुशासन को भी सशक्त बनाया जाना चाहिए। तभी जाकर बदले भारत और नए भारत का रूप निखर पाएगा।