वित्तीय आपातकाल में क्या होता है? 

वित्तीय आपातकाल में क्या होता है? 

भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान है।

अनुच्छेद 352 के तहत अगर सरकार को लगता है कि युद्ध, बाहरी हमले या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश या उसके किसी भूभाग की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है तो वह राष्ट्रीय आपातकाल लगा सकती है। इस तरह के आपातकाल में केंद्र सरकार सभी तरह की कार्यकारी, विधायी और वित्तीय शक्तियां अपने हाथ में ले लेती है और राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकती है।

इस दौरान अनुच्छेद 20 (अपराधों की सजा के खिलाफ संरक्षण का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) को छोड़कर सभी मौलिक अधिकार निलंबित रहते हैं। देश में अब तक तीन बार इस तरह का आपातकाल लागू किया गया है। 1962 में चीन के साथ युद्ध, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और 1975 में आंतरिक गड़बड़ी का हवाला देकर राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था।

दूसरी तरह का आपातकाल अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में लागू किया जा सकता है। इसके तहत अगर किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी नाकाम हो जाती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। पिछले कई वर्षों के दौरान कई राज्यों में इसका इस्तेमाल किया गया है। राज्य में निर्वाचित सरकार के गठन के साथ ही इसे हटा दिया जाता है।

अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश की आर्थिक स्थिरता को खतरा है तो वह अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल लगा सकता है। इस तरह के फैसले को संसद को दोनों सदनों के समक्ष रखा जाना चाहिए और उन्हें दो महीने के भीतर एक प्रस्ताव पारित इसे मंजूरी देनी होगी। इसके प्रावधानों के तहत केंद्र खुद पर और सभी राज्य सरकारों पर वित्तीय स्वामित्व के मानक लागू कर सकता है। इसके लिए राज्यों के बजट भी केंद्र को ही पारित करने होंगे। अब तक किसी भी सरकार ने देश में वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया है।

ARTICLE 360

अनुच्छेद 360 के तहत सबसे अहम अधिकार यह है कि केंद्र अपने और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कमी कर सकता है। इनमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी शामिल हैं। यह ऐसा प्रावधान है जो जरूरत पडऩे पर केंद्र को वित्तीय मोर्चे पर भारी राहत दे सकता है। सभी राज्यों का कुल व्यय में वेतन और भत्तों का हिस्सा करीब 25 फीसदी है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए यह राशि 9 लाख करोड़ रुपये होगी। केंद्र के असैन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्तों का खर्च करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये है।

इस तरह वित्तीय आपातकाल से केंद्र को अपने और राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन में कटौती की छूट मिलेगी जो कुल मिलाकर करीब 11.5 लाख करोड़ रुपये है। उनके वेतन में 10 फीसदी कटौती से केंद्र को करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी।

लेकिन यह एक मुश्किल फैसला होगा जिससे सरकार की लोकप्रियता बुरी तरह प्रभावित होगी। कोई भी सरकारी कर्मचारी वेतन में कटौती नहीं चाहेगा और हर कोई इस दर्द को लंबे समय तक याद रखेगा। लेकिन ऐसे समय, जब कई निजी कंपनियां अपने कर्मचारियों को छोड़ रही है, अपने कारोबार को बंद कर रहीं हैं जिससे लोग बेरोजगार हो रहे हैं और यहां तक कि वेतन में भी कटौती की जा रही है, वित्तीय आपातकाल में वेतन कटौती का प्रावधान एक विकल्प है जिस पर सरकार विचार कर सकती है।

देश को सीएएससी द्वारा दायर जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय की प्रतिक्रिया का भी बेसब्री से इंतजार रहेगा जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने की मांग की गई है।

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