- अमेरिका संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद से अलग हो गया है.
- उसने इस संस्था पर इजरायल के खिलाफ लंबे समय से भेदभाव रखने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को यह कदम उठाया.
- इजरायल के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन काफी समय से चेतावनी दे रहा था कि अगर मानवाधिकार परिषद में सुधार नहीं किए गए तो अमेरिका उसकी सदस्यता छोड़ सकता है. इन सुधारों में एक यह भी था कि मानवाधिकारों के मामले में खराब प्रदर्शन करने वाले देशों का परिषद से निष्कासन आसान बनाया जाए.
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने परिषद में बदलाव के उनके देश के प्रयासों को विफल करने वाले सदस्य देशों - रूस, चीन, क्यूबा और मिस्र - की कड़ी आलोचना की. उन्होंने उन देशों की भी आलोचना की जो परिषद में अमेरिका के बने रहने के पक्षधर थे लेकिन, यथास्थिति को गंभीरता से चुनौती देने की इच्छा नहीं दिखा रहे थे. वेनेजुएला, चीन, क्यूबा और लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो का उदाहरण हुए निकी हेली ने कहा, ‘परिषद की सदस्यता को देखिए. आपको इसमें मूल मानवाधिकारों के प्रति भयावह असम्मान दिखाई देगा.’ हेली ने कहा कि इजरायल के प्रति परिषद का अनुचित रवैया और कभी न खत्म होने वाला विद्वेष इस बात का साफ सबूत है कि परिषद राजनीतिक पक्षपात से प्रेरित है.
उधर, कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने अमेरिका के इस फैसले पर चिंता जताई है. उनके मुताबिक अमेरिका के अलग होने से परिषद कमजोर होगी और दुनियाभर में मानवाधिकार संबंधी प्राथमिकताओं पर अमल और पीड़ितों की मदद मुश्किल हो जाएगी. हालांकि यहूदी मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक समूह साइमन वीजेंथल सेंटर ने अमेरिका के इस कदम की प्रशंसा की है. उसने अन्य देशों से भी ऐसा ही करने की अपील की है.