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इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर दसवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अटलांटिक गठबंधन को हिलाकर रख दिया है, जो उसके वैश्विक वर्चस्व का प्रमुख आधार रहा है। ऐसा तब हुआ, जब ट्रंप ने अपने प्रशासन की अवहेलना करते हुए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका-चीन के मध्य गहराते व्यापार युद्ध को अमेरिका चौतरफा युद्ध में बदल रहा है, ताकि मेड इन चाइना 2025 की रणनीति के सहारे चीन के प्रमुख औद्योगिक शक्ति बनने के प्रयासों को विफल किया जा सके।
ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए यह जरूरी है कि वे खुले अवसरों का लाभ उठाएं और यह सुनिश्चित करें कि दो बड़ी शक्तियों के संघर्ष में उन्हें कोई नुकसान न हो। नई दिल्ली ने अब तक बेहतर कूटनीति का परिचय दिया है-इसने वुहान में चीन से बातचीत की और डोकलाम संकट के दौरान बढ़े अनावश्यक तनाव को कम कर दिया। इसने सोची शिखर सम्मेलन के माध्यम से रूस के साथ अपने खराब होते संबंधों को दुरुस्त किया है और इसकी मजबूत प्रतिबद्धता है कि अमेरिका की धमकी में वह मास्को के साथ वक्त की कसौटी पर परखे हुए हथियार हस्तांतरण संधि को खत्म नहीं करेगा। इसने यह भी सुनिश्चित किया है कि अमेरिका के साथ भी वह अपने रिश्ते को बरकरार रखेगा, जिसका संकेत आगामी सितंबर में होने वाली “2+2” वार्ता से मिलता है। इसलिए इस शिखर सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू जोहान्सबर्ग घोषणा या वहां दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण नहीं है, बल्कि चीन के नेता शी जिनपिंग और रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता है।
10th Summit of BRICS
यह ब्रिक्स का दसवां शिखर सम्मेलन था, पहला शिखर सम्मेलन 2009 में रूस के येकार्टेरिनबर्ग में हुआ था। कई मायनों में ब्रिक्स एक कृत्रिम संगठन है और आज भी यह एक समान देशों का संगठन नहीं है। उनमें से दो-चीन और भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं। ये दोनों देश दुनिया की कुल आबादी का 40 फीसदी और विश्व के कुल क्षेत्रफल का 30 फीसदी हिस्सा घेरते हैं। इन दोनों देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद अमेरिका और यूरोप के सकल घरेलू उत्पाद को टक्कर देता है। चीन और भारत, दोनों तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं, लेकिन ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और रूस की अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष कर रही हैं और यहां तक कि नकारात्मक विकास की दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
वर्षों से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि के रूप में ब्रिक्स की महत्ता बढ़ी ही है।
- वर्ष 2014 में उभरते देश के विकास एजेंडे को बढ़ावा देने में इसकी गंभीरता के संकेत मिलते हैं, ब्रिक्स ने विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे विकास बैंकों की तर्ज पर एक नया ब्रिक्स बैंक बनाया।
- 2015 में इन देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तर्ज पर आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था बनाई।
- ब्रिक्स का इरादा विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को चुनौती देना नहीं है, बल्कि ब्रिक्स ने यह संकेत दिया है कि वह इन अमेरिकी और जापानी वर्चस्व वाले निकायों के तौर-तरीके से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है और इसलिए उसका पूरक तैयार कर रहा है। इस अर्थ में एक नई विश्व व्यवस्था का आह्वान करने का उसका इरादा नहीं है, बल्कि मौजूदा में से सर्वोत्तम शर्तों का दोहन करना है।
रूस जैसे देश के लिए, जिसके अमेरिका के साथ रिश्ते बेहतर नहीं हैं और जो क्रीमिया और यूक्रेन के कारण यूरोपीय देशों से प्रतिबंधित है, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेना एक बड़ी बात है, जो यूरोप और मध्य पूर्व में अपने दांव-पेच से अटलांटिक गठबंधन पर दबाव बनाता है।
प्रधानमंत्री ने, जो अगले वर्ष लोकसभा चुनाव का सामना करने वाले हैं, पूरे भारत को एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिन्हें अमेरिका, चीन और रूस के बीच चल रहे भूराजनीतिक संघर्ष में सुखद परिणाम का भरोसा है। जोहान्सबर्ग के शिखर सम्मेलन में मोदी की भागीदारी सम्मेलन के विषय के संदर्भ में हुई, जो अफ्रीका से संबंधित है। भारत और चीन, दोनों देश अफ्रीकी देशों को लुभा रहे हैं और मोदी ने जहां युगांडा और रवांडा का दौरा किया, वहीं शी जिनपिंग ने सेनेगल, रवांडा और मॉरिशस का दौरा किया। चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और इन देशों के साथ अपने संबंधों को और आगे बढ़ाने के लिए जोर डाल रहा है।
संभवतः शिखर सम्मेलन में चर्चा का सबसे महत्वपूर्ण विषय अमेरिकी व्यापार युद्ध और उसकी संरक्षणवादी नीति होगी। हालांकि भारत ने हाल ही में सतह से हवा में मार करने वाली रूसी एस-400 मिसाइल हासिल करने पर अमेरिकी दबाव को कम करने में सफलता पाई है। फिर भी वह वैश्विक व्यापार युद्ध के व्यापार असर से बचने में सक्षम नहीं होगा, खासकर तब, जब उसे अपने निर्यात को काफी हद तक बढ़ाने की जरूरत है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, 2020 तक व्यापार युद्ध से दुनिया को दसियों खरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।
ब्रिक्स का जोहान्सबर्ग घोषणापत्र मानक नीति पर आधारित था। चीन अमेरिका के खिलाफ एक मजबूत बयान चाहता था, लेकिन अभी इसने अपना रुख नरम रखा। भारत ब्रिक्स घोषणापत्र को शियामेन घोषणापत्र के अनुरूप बनाना चाहता, जहां पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए मोहम्मद और लश्कर-ए तैयबा का नाम संयुक्त घोषणापत्र में शामिल किया गया था। लेकिन इस बार उनका नाम नहीं था, हालांकि आतंकवाद के खिलाफ काफी मजबूत बयान उसमें है। ईरान के परमाणु मुद्दे से निपटने के लिए ब्रिक्स ने संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (जेसीपीओए) पर समर्थन बढ़ाया है और इस मामले में अमेरिका के बजाय ईरान का समर्थन किया, अमेरिका ने इस समझौते से हाथ खींच लिया है। इसी तरह, इसने विश्व व्यापार संगठन के साथ वैश्विक व्यापार व्यवस्था के महत्व को दोहराया है।