This article discuss recent signing of FTA with China by Maldives and implication
#Amar_Ujala
Recent visit of Maldives President to China
मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम की हालिया चीनी यात्रा की महत्वपूर्ण घटना यह थी कि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर हुआ। हालांकि इससे निकट भविष्य में चीन को कोई विशेष रणनीतिक फायदा नहीं होने वाला, लेकिन यह इस धारणा को मजबूती देता है कि मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के लिए एक रणनीतिक संपत्ति बनता जा रहा है, जहां चीन अपनी उपस्थिति को तेज करने के लिए दृढ़ता से कोशिश कर रहा है। मालदीव जैसा एक छोटा-सा देश, जिसकी अर्थव्यवस्था छोटी है, क्यों किसी ऐसे देश को इस तरह का अनुचित फायदा दे रहा है, जो आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है?
Maldives Economy
अनुमानित रूप से मालदीव की अर्थव्यवस्था मात्र 3.6 अरब डॉलर की है। जबकि उसकी जनसंख्या करीब चार लाख है। सीमित संसाधनों के कारण उसे निरंतर व्यापार घाटा होता है। मालदीव का सबसे प्रमुख निर्यात मछली है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पांच फीसदी का योगदान करती है। वहां की अर्थव्यवस्था में मछली निर्यात का स्थान पर्यटन के बाद दूसरा है। मालदीव असल में सभी चीजों का आयात करता है और इसका आयात बिल पिछले वर्ष 2.12 अरब डॉलर था। वर्ष 2016 में चीन से मालदीव के आयात का अनुमान 32 करोड़ डॉलर था।
मालदीव का कहना है कि चीन के साथ उसका एफटीए पूरी तरह से व्यावसायिक है और इसमें कोई राजनीतिक तत्व नहीं है। उसका दावा है कि श्रीलंका (जिसने तमिल उग्रवाद से लड़ने के लिए हथियार खरीदने के लिए चीन से कर्ज लिया है) के विपरीत उसने राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए जरूरी आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के लिए कर्ज लिया। उसे उम्मीद है कि इन कर्जों के जरिये वह पुल, हवाई अड्डे, आवास और सड़क जैसी परियोजना का विकास करेगा और कर्ज चुकाने की मुल्क की क्षमता का विकास करेगा। सैद्धांतिक रूप से मालदीव सरकार का आशावाद सही हो सकता है, पर व्यावहारिक रूप से इसका नतीजा अलग हो सकता है। जब श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह और हवाई अड्डे बनाने के लिए कर्ज लिया था, तो वह भी सोचता था कि इससे देश में आर्थिक समृद्धि आएगी। पर ऐसा नहीं हुआ और वह कर्ज-जाल में फंस गया।
Argument by Maldives for signing of FTA with China
चीन के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर करने के पक्ष में कुछ और भी स्पष्टीकरण दिए गए हैं। मालदीव के मत्स्य पालन एवं कृषि मंत्री ने बताया कि मालदीव को इसलिए चीन के आगे हाथ फैलाना पड़ा, क्योंकि मालदीव के मध्यम आय वर्ग वाले देशों की श्रेणी में आ जाने के कारण यूरोपीय संघ ने अपनी जीएसपी और रियायती शुल्क सुविधा देना बंद कर दिया। उसकी प्रति व्यक्ति आय अनुमानित रूप से 11,544 डॉलर है, जो दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है। हालांकि यूरोपीय संघ के राजनयिकों का कहना है कि यह सुविधा मालदीव के मत्स्य निर्यात के लिए नहीं बढ़ाई गई थी, क्योंकि वह धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुपालन में विफल रहा है। संकेत मिलता है कि मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते का फैसला उसके प्रति भारत की नीति में बदलाव के बाद लिया है, यानी मालदीव के विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के साथ भारत के खुलेआम समर्थन शुरू करने के बाद। ये स्पष्टीकरण सही नहीं हैं, क्योंकि मालदीव ने अपनी विदेश नीति यामीन के शासन के तहत बहुत जल्दी बदल डाली। यामीन जानते हैं कि वह मालदीव में एक अवैध सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, क्योंकि उनके गठबंधन के साथी अब उनके साथ नहीं हैं और उनके साथ मालदीव के लोगों के बहुमत का समर्थन नहीं है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक सहयोग के लिए वह चीन और सऊदी अरब के पक्ष में झुक गया है।
वहां के विपक्षी दलों ने भी सरकार के तर्क को मानने से इन्कार कर दिया है और उनका मानना है कि समझौते पर हस्ताक्षर बिना संसदीय जांच के जल्दबाजी में किया गया है। उन्हें आशंका है कि इससे देश चीन के कर्ज के जाल में फंस जाएगा और हिंद महासागर क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद का कहना है कि मालदीव के विदेशी ऋण में सत्तर फीसदी हिस्सा चीन का है और मालदीव के बजट का बीस फीसदी उस कर्ज का ब्याज चुकाने में चला जाता है। इससे मालदीव में चीन को भारी बढ़त मिलेगी और मालदीव की संप्रभुता और आजादी कमजोर होगी।
भले ही यामीन दावा करते हों कि उनकी नीति में भारत प्रथम है, लेकिन उनका कामकाज ठीक इसके विपरीत है। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने पहला काम जो किया, वह यह कि माले हवाई अड्डे का जीएमआर अनुबंध रद्द कर दिया। वह अनुबंध बाद में एक चीनी कंपनी को मिला। उनके द्वारा लिए गए सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में मालदीव के कुछ निर्जन द्वीपों को बेचना था। जब विरोधी दलों ने इस फैसले की आलोचना की, तो उन्होंने दावा किया कि यह देश के आर्थिक विकास के लिए किया गया है। लेकिन इस फैसले से जुड़ी शर्तों ने स्पष्ट कर दिया कि यह चीन के हित में उठाया गया कदम था।
चीन और मालदीव के बीच एफटीए रातोंरात नहीं हुआ। वास्तव में मालदीव इसके लिए तभी राजी हो गया था, जब 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस देश का दौरा किया था। वह चीनी राष्ट्रपति की उस देश में पहली यात्रा थी और उसका उद्देश्य चीन की 21वीं सदी की समुद्री सिल्क रोड के लिए मालदीव का समर्थन हासिल करना था। शी जिनपिंग की वह यात्रा पूरी तरह सफल रही और मालदीव ने न केवल समुद्री सिल्क रोड को अपनाया, बल्कि उसने घोषणा की कि वह चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है। अब मालदीव ने एफटीए पर हस्ताक्षर करके अपना वायदा पूरा किया है, इस आशंका के बावजूद कि वह श्रीलंका की तरह कर्ज के जाल में फंस जाएगा