पाक की आर्थिक नाकेबंदी पर भी हो विचार

 

#Dainik_Tribune

कुछ दिन पहले तक अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान का आका हुआ करता था। अब वही राष्ट्रपति मसखरा दिखने लगा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में जो कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, उसका मखौल पाकिस्तान के अखबार ‘द न्यूज़’ ने उड़ाया और कठोर टिप्पणी की है। 27 सितंबर 2018 को ‘द न्यूज़’ ने अपने संपादकीय में लिखा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा को ट्रंप ने एक राजनीतिक रैली समझ लिया था। लगे बघारने कि हमारे शासन ने जितनी उपलब्धि हासिल की है, अमेरिका के इतिहास में किसी ने नहीं की। ट्रंप ने इसकी भी भविष्यवाणी की कि जर्मनी बहुत जल्द रूस के तेल और गैस पर आश्रित हो जाएगा। अखबार ने यूरोपीय देशों से अपील की है कि ईरान और वेनेजुएला के समर्थन में आगे आयें और इस अहंकारी ट्रंप को सबक सिखायें, जो पूरी दुनिया को अपने तरीक़े से हांकना चाहता है। ट्रंप की मज़म्मत डॉन ने भी की और उनका मज़ाक लंदन से प्रकाशित ‘द टेलीग्राफ‘ से लेकर दुनिया के कई सारे अखबारों ने उड़ाया है।

पाकिस्तान इतना तपा हुआ क्यों है? इसकी वजह दुनिया से छिपी नहीं है। हैरानी उसकी हिमाकत पर है। और उससे भी अधिक हैरानी उसकी हिमाकत पर चुप रह जाने वाले नेताओं पर होती है। जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान ख़ान के ट्वीट पर चुप्पी ही साध ली। ट्रंप भी शायद ऐसा ही करें। संयुक्त राष्ट्र महासभा का यह 73वां सत्र था। नौ कार्य दिवसों तक चले इस सत्र से जो कुछ हासिल हुआ, उसकी एक झलक पाकिस्तानी अख़बार ने प्रस्तुत कर दी है। मगर, उसके देश के नेता यूएन में जाकर किस तरह की गंदगी फैलाते रहे हैं, कूटनीति को कश्मीर के बहाने किस तरह से पटरी से उतारते हैं, उस पर शायद ही पाकिस्तान का मीडिया चर्चा करता है।

  • यूएन जनरल असेंबली की बैठक के साथ-साथ ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉरपोरेशन) के कॉन्टेक्ट ग्रुप की बैठक चल रही थी। इस बैठक में पाकिस्तान कश्मीर का राग अलाप रहा था। ओआईसी के सदस्य पहली बार भारत के आंतरिक मामले में दखल नहीं दे रहे थे। मुश्किल यह है कि भारत सिर्फ़ विरोध व्यक्त कर रह जाता है।
  • पाकिस्तान को इसका अहसास हो चुका है कि अमेरिका से धीरे-धीरे खैरात मिलनी बंद हो सकती है, विकल्प उसने तलाशने आरंभ कर दिये हैं। इस समय प्रधानमंत्री इमरान ख़ान मदीना की यात्रा पर हैं। वज़ीरे आज़म बनने के बाद इमरान ने पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब से शुरू की है। इस दो दिवसीय यात्रा के दौरान सऊदी अरब, सीपीईसी (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर) में निवेश की हामी भर दी है। बलूचिस्तान के छगाई ज़िले में ‘रोको डिग कॉपर व गोल्ड माइंस’ में सऊदी अरब पैसा लगाने को तैयार है। ‘रोको डिग’ पाकिस्तान की सबसे बड़ी सोने और तांबे की खान है। सऊदी अरब, ग्वादर की रिफाइनरी में निवेश के अलावा रेल में भी पैसा शायद लगाये। लेकिन क्या पाकिस्तान इस वास्ते बलूचिस्तान सीमा से लगे ईरान से दूरी बनाएगा?
  • पाकिस्तान की आर्थिक सेहत इतनी ख़राब है कि प्रधानमंत्री निवास की कारें और भैसों तक को नीलाम करना पड़ा है। आईएमएफ का उस पर 12 अरब डॉलर का क़र्ज़ है। डिफाल्टर होने से बचने के वास्ते पाकिस्तान को तत्काल तीन अरब डॉलर की आवश्यकता है। पिछले 40 वर्षों में बेल आउट पैकेज के ज़रिये उसे क़र्ज़ माफी मिलती रही है। मगर काठ की हांडी कितनी बार चढ़ाओगे? यह सवाल पाकिस्तान का सरपरस्त अमेरिका पूछने लगा है। जून 2018 में पाकिस्तान का फॉरेन करेंसी एक्सचेंज रिज़र्व मात्र 10.9 अरब डॉलर रह गया है। आर्थिक रूप से जर्जर हो चुके पाकिस्तान को नये निज़ाम ने रोज़गार मुहैया कराने और उद्योग-धंधे में हरियाली लाने के सपने दिखाए हैं।
  • पाकिस्तान की नई लीडरशिप चाहती तो इस सपने को भारत की मदद से पूरा कर सकती थी। कुछ ऐसा ही इशारा इस सोमवार को जारी वर्ल्ड बैंक की ताज़ा रिपोर्ट में है। वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि इस समय भारत-पाकिस्तान का उभयपक्षीय व्यापार दो अरब डॉलर का है। ये दोनों देश चाहते तो यह बढ़कर 37 अरब डॉलर तक पहुंच सकता था। वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट का शीर्षक है-‘ अ ग्लास हाफ फुल, द प्रोमिस ऑफ रिजनल ट्रेड इन साउथ एशिया।’ इस रिपोर्ट में उभयपक्षीय व्यापार में जिन वस्तुओं के आयात-निर्यात की अनुमति है, उसकी सारी सूची दी गई है। पाकिस्तान की लिस्ट में 936 आइटम हैं और भारत की लिस्ट में 25 आइटम, जिसमें अल्कोहल, फायर आम‍्र्स भी हैं। साउथ एशिया फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (साफ्टा) में दक्षेस के जो आठों देश आते हैं, उसका 17.9 प्रतिशत ‘टैरिफ लाइन’ पाकिस्तान कवर करता है और भारत 0.5 फीसदी।
  • सवाल यह है कि वर्ल्ड बैंक को अचानक भारत-पाक व्यापार की चिंता क्यों होने लगी? आतंकवाद और पाकिस्तान में अस्थिर लीडरशिप की वजह से उभयपक्षीय व्यापार की हालत सबसे अधिक ख़स्ता हुई है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में दोनों देशों की एंट्री के बाद, 1996 में भारत ने पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा दे दिया था। मगर, पाकिस्तान की लीडरशिप भारत को यह दर्जा देने के मामले में चुप्पी साध गयी। भारत से जो सामान पाकिस्तान को आयात करना था, उस तरह के 1209 आइटम को उसने नेगेटिव लिस्ट में डाल रखा है। लेकिन दिलचस्प यह है कि ये सारे भारतीय सामान पाकिस्तान थर्ड कंट्री के माध्यम से मंगाता रहा है। उन तीसरे देशों में संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख रूप से है।

वाघा-अटारी बॉर्डर से पाकिस्तान ने 138 भारतीय आइटमों को मंगाने के वास्ते मंजूरी दे रखी है। इन्हें ढोने वाले ट्रक सीमा पर ही अनलोड किये जाते हैं। इससे समय और संसाधन की बर्बादी को भी विश्व बैंक ने रेखांकित किया है। वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट से इतना तो साफ है कि आतंकवाद के साथ-साथ पाकिस्तान से व्यापार भी चल रहा है। दोनों तरफ के व्यापारिक शिष्टमंडल बिना एक-दूसरे से राब्ता किये व्यापार कैसे कर सकते हैं? सज्जन ज़िंदल जैसे लोग क्या सिर्फ़ पर्दे के पीछे से संबंध सुधारने के वास्ते पाकिस्तान जाते रहे या फ़िर व्यापार भी उनका मकसद रहा है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर एक सिर के बदले सौ सिर काटकर लाने की घोषणा करने वाली लीडरशिप को देना चाहिए। थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि पिछली सरकारें, पाकिस्तान के प्रति नरम रही हैं, चार साल में यदि उन्होंने भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा नहीं दिया तो आप उसे दिये ‘एमएफएन’ के विशेषाधिकार को रद्द क्यों नहीं करते? सर्जिकल स्ट्राइक की बातें तो ख़ूब की हैं, कभी पाकिस्तान की आर्थिक नाकेबंदी को भी मुद्दा बनाया है?

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