चीन में भारत का सॉफ्ट पॉवर (Soft power of india in china)

 

Indian soft power in China

Ø भारत ने हमेशा से चीनी आमजनों को आकर्षित किया है. चाहे बात धर्म-संस्कृति की हो या भाषा विविधता की. रबींद्रनाथ टैगोर से लगभग हर चीनी अवगत है, वहीं गांधी सिर्फ इतिहास की पाठ्य पुस्तकों तक हैं.

Ø राजकपूर की फिल्म आवाराकी यादें अब भी पुरानी पीढ़ियों के साथ जीवित हैं. वहीं आमिर खान की लोकप्रियता चीनी युवाओं के बीच है. इन कलाकारों ने चीन में भारत की एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत की है. बॉलीवुड की धुनें आपको वरिष्ठ नागरिकों, खासकर महिलाओं द्वारा की जानेवाली सार्वजनिक चौक नृत्य’(कुआंग छांगवू) और नृत्य कक्षा में अक्सर सुनी जा सकती हैं

Ø योग शहरी चीनी के बीच काफी लोकप्रिय है. चीनी अकादमी ऑफ सोशल साइंसेज (सीएएसएस) और अन्य ने योग ब्लू बुक: चीन योग उद्योग विकास रिपोर्टमें कहा है कि योग चीन के स्वास्थ्य उद्योग में सबसे तेजी से बढ़ते श्रेणियों में एक है.

Ø आंकड़ों के अनुसार 14,146 योग केंद्र चीन के 31 प्रांतों के 132 शहरों में फैले हुए हैं. हालांकि, चीन में योग का चलन एक व्यायाम के रूप में है, न कि ध्यान विधा के रूप में. चीन में तेजी से हो रहे शहरीकरण और भागमभाग की जिंदगी के कारण, योग का चलन नजदीक भविष्य में और ज्यादा बढ़ेगा.

Ø कुछ समय पहले आमिर खान की दंगल ने चीन के बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड 2,000 करोड़ युआन कमाये. चीन के तऊबान’, जो आईएमडीबी का समतुल्य है, पर दंगल को 9.1 / 10 स्कोर मिला. जब आमिर खान शंघाई विवि में आये, तो वह ली ताखांग’, जो लोकप्रिय चीनी भ्रष्टाचार विरोधी टीवी धारावाहिक इन द नेम ऑफ पीपलका एक चरित्र है, से मुलाकात की.

Ø इस तरह की मुलाकात भारतीय अभिनेता को चीन के सुदूर गांवों तक लोकप्रिय बनाता है. कुछ वैसा ही, जैसा कपिल शर्मा के टीवी शो में कुंग-फू योग को बढ़ावा देने के लिए चीनी अभिनेता जैकी चैन आते हैं.

Tourism between the two country

भारत का सॉफ्ट पावर चीनी पर्यटकों को भी आकर्षित करता है. पिछले साल चीनी लोगों ने दुनियाभर में भ्रमण पर 2,611 अरब डॉलर खर्च कर डाले, और उम्मीद है कि इनका ये खर्च आनेवाले दिनों में और बढ़ेगा. हालांकि, 2016 में सिर्फ 2.54 लाख चीनी लोगों ने भारत की यात्रा की, जबकि 6.76 लाख भारतीयों ने चीन का दौरा किया. भारत की सांस्कृतिक आकर्षण शक्ति पर दोनों पक्षों का झगड़ालू मीडिया भारी पड़ रहा है.

Is India China Relation Captive of Media

कहना उचित होगा कि समकालीन भारत-चीन संबंध हमारी मीडिया का कैदी बनकर रह गया है. सौभाग्यवश नीति-निर्माता इन मीडिया ट्रायलके बहकावे में नहीं आते, जैसा कि पिछले साल 72 दिन के बाद डोकलाम तनाव का शांतिपूर्वक निवारण दर्शाता है.

सिर्फ चीन की अंग्रेजी मीडिया ही नहीं है, जो भारत विरोधी रिपोर्टिंग करता है, बल्कि भारतीय मीडिया भी चीन को टारगेट करता है, ताकि चीन नियंत्रण में रहे. चीन पर अंकुश’, ‘चीन को सबक’, ‘चीन की हालत खराब’, ‘पूरा चीन अग्नि मिसाइल के दायरे मेंकुछ इस तरह की सुर्खियां हमेशा भारतीय मीडिया में दिखती हैं. ऐसा नहीं है कि भारत के हितों की रक्षा के लिए मीडिया सतर्क न रहे, पर अटकलें नहीं लगाना चाहिए. इस सबसे हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर विपरीत असर पड़ता है.

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भारतीय मीडिया भूल जाता है कि सनसनी भरी इनकी सुर्खियों को चीनी मीडिया अपने फायदे में इस्तेमाल करता है. मसलन, चीनी मीडिया इन्हीं सुर्खियों के हवाले से कहता है कि भारत चीन से द्वेषभाव रखता है और क्षेत्रीय सुरक्षा को बदलना चाहता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इन चीनी अनुवादित खबर को चीन में बड़े चाव से पढ़ा जाता है, जो भारत के बारे में चीनी लोगों की धारणाओं को बदल सकता है.

इस तरह की सनसनी रिपोर्टिंग से कभी भी वांछित सामरिक लाभ नहीं मिल पाता, बल्कि पासा उलटा पड़ सकता है. भारतीय मीडिया को भारत-चीन प्रतिस्पर्धा और भारत-पाक शत्रुता के बीच का अंतर समझकर रिपोर्टिंग करनी चाहिए, न कि भड़काने के लिए. दूसरी ओर, चीनी मीडिया को भी एहसास होना चाहिए कि भारत एक तेजी से उभरती शक्ति है, उनकी सनसनी सुर्खियों से भारत पीछे नहीं हटनेवाला है. बहरहाल, इस तरह की अंधराष्ट्रीयता से दोनों देशों के राष्ट्रीय हित तो नहीं सध रहे, नफरत जरूर बढ़ रही है.

आमिर खान अभिनीत फिल्म सिक्रेट सुपरस्टारने चीन में तीन दिनों के भीतर 175 करोड़ रुपये की कमाई की, जो यह साबित करता है कि चीनी आम लोगों, खासकर चीनी युवाओं में अब भी कोई घृणा नहीं पनपा है, अगर डोकलाम तनाव के परिपेक्ष्य में देखें तो.

Watch Explanation of 500+ PT Question here

जब मिसाइल रक्षा प्रणाली (टीएचएएडी) को दक्षिण कोरिया में तैनात किया गया, तो कई कोरियाई पॉप गायक और कोरियाई टीवी प्रसारण पर चीन में रोक लगा दिया गया था.

दिलचस्प बात है कि डोकलाम विवाद के दौरान भारत को लेकर ऐसी कोई रोक-टोक नहीं लगी और न ही विरोध में कोई सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ. चीनी जनता अब भी भारत के प्रति द्वेष का भाव नहीं रखती है, पर भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता.

 

दोनों देशों के मीडिया को अपने सुर और ताल में मिठास लाना होगा, तभी भारत-चीन का संबंध प्रगाढ़ और मजबूत बनेगा. मीडिया को चाहिए कि नकारात्मक तेवर से दोनों देशों के बीच रिश्तों की गर्मी, विश्वास और आत्मविश्वास पर वह चोट ना करे.

#Prabhat_Khabar

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