#India China Relations राष्ट्रपति के रूप में प्रणब का पहला चीन दौरा : भारत-चीन की जनशक्ति बने वैश्विक ताकत

- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने चार दिवसीय चीन यात्रा पर कहा कि भारत-चीन संबंधों का मुख्य उद्देश्य आपसी मतभेदों को दूर कर समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार करना है।

- ‘दोनों देशों के तनाव से अहम यह है कि ये दोनों विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या हैं। दोनों देशों की जनशक्ति आपस में मिलकर विश्व की एक बड़ी शक्ति बन सकती है। हम कभी भी मतभेदों को बढ़ाने में शामिल नहीं हैं, बल्कि हमने मतभेदों को कम किया है और समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार किया है। यह भारतीय कूटनीति का मुख्य सिद्धांत है’।

  • भारतीय राष्ट्रपति प्रणब ने कहा कि संयुक्त राष्टसंघ, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बैंक और ब्रिक्स जैसे संगठनों के जरिए भारत और चीन लंबे समय से एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं।
  •  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस साल चीन में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर मुलाकात करेंगे।

 

- प्रणब ने 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का हवाला देते हुए कहा कि भारत और चीन ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर करने में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक संबंध की वकालत करते हुए कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था बीते एक दशक में स्थिरता के साथ बढ़ी है और अब यह 7.6 फीसद की दर से बढ़ रही है। अगर दोनों देशों के 2.5 अरब लोग साथ मिलकर काम करें और अपनी गतिविधियों में सहयोग करते हैं तो हमारे पास क्षमता है।

- साल 2000 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.9 अरब डॉलर था और अब यह बढ़कर 71 अरब डॉलर हो गया है। हमारा मानना है कि अगर दोनों देशों के बीच निवेश और सहयोग का विस्तार होता है तो बहुत अधिक संभावना है’।

  • राष्ट्रपति के रूप में प्रणब का यह पहला चीन का दौरा है। लेकिन इससे पहले वे विभिन्न भूमिकाओं में कई बार यहां आ चुके हैं। प्रणब के चीनी दौरे की शुरुआत कारोबारी शहर क्वांग चाओ से हुई है जो देश की जीडीपी में 12 फीसद योगदान करता है।

 

  • प्रणब के इस दौरे में शीर्ष चीनी नेतृत्व के साथ एनएसजी में भारत की सदस्यता का चीन द्वारा विरोध करने और जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट के वैश्विक आतंकवादी घोषित करने जैसे अहम मुद्दे पर बातचीत की उम्मीद भारतीय पक्ष कर रहा है। वहीं चीनी पक्ष के लिए सोमवार को भारत और ईरान के बीच हुआ चाबहार करार भी मुद्दा बन चुका है। माना जा रहा है कि चाबहार बंदरगाह समझौते के जरिए भारत का पाकिस्तान और चीन पर दबाव बढ़ेगा।
  • इस समझौते के बाद भारत की पहुंच न अफगानिस्तान तक बल्कि मध्य एशिया के अन्य देशों तक हो जाएगी। सबसे अहम यह है कि अब अफगानिस्तान जाने के लिए भारत को पाकिस्तान की जरूरत नहीं रहेगी। सामरिक नजरिए से चाबहार भारत, चीन और पाकिस्तान तीनों देशों के लिए अहम है। और अब वहां तक भारत की सीधी पहुंच से चीन की भौहें तन सकती हैं क्योंकि यहां अरब देशों से तेल, गैस जैसे संसाधनों को बड़े पैमाने पर हासिल किया जा सकेगा तो मध्य एशिया के प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न देशों तक पहुंच हो जाएगी।
  • नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी ने भारत का दौरा किया था जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों की गर्माहट बढ़ी। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल चीन गए और कई क्षेत्रों में दोनों देशों में संबंध सुधार की पहल हुई।

- चीनी नेतृत्व के साथ राष्ट्रपति की मुलाकात में सीमा विवाद और समस्या के समाधान की मौजूदा प्रणाली जैसे आपसी हित के मुद्दे आएंगे। प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर चीन का विरोध और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर प्रतिबंधित करने के संयुक्त राष्ट्र के कदम को बाधित करने की चीन की कार्रवाई तो अहम मुद्दा है ही।

- वहीं दक्षिण कोरिया में अगले महीने होने वाली 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की बैठक के संदर्भ में परमाणु के मुद्दे पर भारत के रुख को अहम माना जा रहा है। इस बैठक में भारत एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की पूरी कोशिश कर सकता है।

- भारतीय अधिकारियों का कहना है कि भारत को एनएसजी में पाकिस्तान की सदस्यता पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन इस मुद्दे पर दोनों देशों को साथ रखने के चीन के रुख का विरोध करता है। भारत का मजबूती से यह कहना है कि परमाणु कार्यक्रम के लिए पाकिस्तान के प्रयासों में चीन उसके लिए अनुकूल रह सकता है। लेकिन उसे भारत को रोकने की कोशिश कर अनावश्यक तनाव नहीं पैदा करना चाहिए। भारत के मामले को पाकिस्तान से जोड़ने की कोशिश का विरोध किया जाएगा।

- वहीं, भारत एनएसजी की सदस्यता प्राप्त करने के लिए परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे, चीन के नए सिरे से इस बात पर जोर देने से भारत ने अपनी सहमति नहीं जताई है। एनएसजी का सदस्य बनने वाले फ्रांस ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, भारत के इस रुख को खारिज करने के चीन के रुख को भी भारत ने खारिज कर दिया। अधिकारियों ने कहा कि एनएसजी सहमति आधारित व्यवस्था है और संधि नहीं है। चीन के साथ बातचीत में भारत चीन को समझाने की कोशिश करेगा कि उसके साथ संबंधों के मुद्दों पर पाकिस्तान के तुष्टीकरण की नीति से परहेज किया जाए।

’दोनों देशों के तनाव से अहम यह है कि ये दोनों विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या हैं। दोनों देशों की जनशक्ति आपस में मिलकर विश्व की एक बड़ी शक्ति बन सकती है। हम कभी भी मतभेदों को बढ़ाने में शामिल नहीं हैं, बल्कि हमने मतभेदों को कम किया है और समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार किया है। यह भारतीय कूटनीति का मुख्य सिद्धांत है। ’2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के समय भारत और चीन ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर करने में बड़ा योगदान दिया।

 

- भारतीय अर्थव्यवस्था बीते एक दशक में स्थिरता के साथ बढ़ी है और अब यह 7.6 फीसद की दर से बढ़ रही है। अगर दोनों देशों के 2.5 अरब लोग साथ मिलकर काम करें और अपनी गतिविधियों में सहयोग करते हैं तो हमारे पास क्षमता है। साल 2000 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.9 अरब डॉलर था और अब यह बढ़कर 71 अरब डॉलर हो गया है। दोनों देशों के बीच निवेश और सहयोग का विस्तार होता है तो बहुत अधिक संभावना है।

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