दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रमों पर रोक के मायने

 

#Dainik_Tribune

उच्चतम न्यायालय के हाल ही के एक फैसले ने देश में केन्द्र और राज्य सरकारों की उच्च शिक्षण संस्थाओं की पर्याप्त संख्या नहीं होने की वजह से जगह-जगह खुल रहे निजी शिक्षण संस्थाओं में बगैर अनिवार्य मंजूरी या अस्थाई मंजूरी के आधार पर चल रहे पाठ्यक्रमों के गोरखधंधे को एक बार फिर बेनकाब किया है।

Is this possible without support of government machinery?

  • इस फैसले से एक बात तो साफ समझ में आती है कि निजी शिक्षण संस्थानों के साथ विभिन्न विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर ऐसा करना संभव नहीं है।
  • निजी शिक्षण संस्थाओं और डीम्ड विश्वविद्यालयो की इस तरह की गतिविधियां हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं।

Judgement by Court

हालांकि, न्यायालय ने सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों को 2018-19 के शैक्षणिक सत्र से नियामक प्राधिकारियों से पूर्व अनुमति के बगैर पत्राचार के माध्यम से किसी भी पाठ्यक्रम की पेशकश करने से रोक दिया है और इन संस्थानों को छात्रों का पूरा पैसा लौटाने का भी आदेश दिया है। देश के चार डीम्ड विश्वविद्यालयों द्वारा विधिवत‍् मंजूरी के बगैर ही दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रदान की गयी इंजीनियरिंग की डिग्रियां रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले से हजारों छात्र और इन डिग्रियों के सहारे नौकरी प्राप्त करने वाले युवा हतप्रभ हैं। न्यायालय ने हालांकि दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम चलाने वाले चार शिक्षण संस्थानों के मामले में संबंधित अधिकारियों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाये हैं।

  • न्यायालय ने इस मामले में संबंधित अधिकारियों की भूमिका की जांच करने का आदेश केन्द्रीय जांच ब्यूरो को दिया है।
  • संबंधित अधिकारियों की भूमिका की जांच हो जायेगी लेकिन सवाल यह भी है कि क्या राजनीतिक आकाओं के वरदहस्त के बगैर ऐसा संभव हो सकता था?

सरकार की नीति के खिलाफ इतने साल तक बगैर मंजूरी के इंजीनियरिंग का पत्राचार पाठ्यक्रम चलाने और डीम्ड विश्वविद्यालयों द्वारा विश्वविद्यालय की डिग्रियां दिये जाने में मामले में छात्रों की क्या गलती है? न्यायालय ने चूंकि 2001 से 2005 के दौरान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बाद में चार ऐसे संस्थानों को मंजूरी प्रदान की थी, इसलिए इन संस्थानों द्वारा दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रदान डिग्रियां रद्द की हैं।
हालांकि न्यायालय ने 2001-05 के पाठ्यक्रमों में शामिल होने वाले छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के नये टेस्ट में सम्मिलित होकर अपनी डिग्रियां बचाने का अवसर प्रदान किया है क्योंकि उन्होंने समझा था कि इन पाठ्यक्रमों को मंजूरी प्राप्त थी।

इस बैच के छात्रों को अपनी डिग्री बचाने के लिये परीक्षा में शामिल होने के दो अवसर मिलेंगे और उन्हें एक निश्चित अवधि में इन टेस्ट को पास करना होगा। यदि इनमें वे पास हो गये तो उनकी डिग्रियां वैध हो जायेंगीं, अन्य वे रद्द मानी जायेंगी। लेकिन इसके बाद के छात्रों को इस तरह के टेस्ट में शामिल होने की अनुमति नहीं है। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद तो नियोक्ता और विभिन्न विभाग इन युवकों को अपने यहां शायद ही नौकरी जारी रखने दें क्योंकि उनके पास अब वैध डिग्री नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे गोरखधंधे पर अपना चाबुक चलाकर साफ शब्दों में कहा है कि 2001-05 के शैक्षणिक सत्र के बाद संबंधित डीम्ड विश्वविद्यालयों द्वारा पत्राचार शिक्षा पद्धति के माध्यम से प्रदान की गयी इंजीनियरिंग की डिग्रियां वापस ली जायेंगी और उन्हें रद्द माना जायेगा। इसी परंतु जहां तक इन डिग्रियों के सहारे पदोन्नति या जीवन में आगे बढ़ने के लिये अभ्यर्थियों द्वारा किसी प्रकार का लाभ प्राप्त करने का संबंध है तो वह वापस लिया जायेगा लेकिन यदि ऐसी डिग्री के सहारे किसी प्रकार का आर्थिक लाभ मिला होगा तो संबंधित विभाग या नियोक्ता उसे नहीं वसूलेंगे।


न्यायालय के फैसले की चपेट में आने वाले डीम्ड विश्वविद्यालयों में इलाहाबाद कृषि विश्वविद्यालय, जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ, राजस्थान की ही इंस्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन और तमिलनाडु की विनायक मिशन रिसर्च फाउण्डेशन शामिल हैं।

न्यायालय ने 2001-05 के शैक्षणिक सत्र के बाद के सत्रों में प्रवेश लेने वाले ऐसे सभी छात्रों को उनकी पूरी फीस लौटाने का आदेश इन संस्थानों को दिया है। छात्रों को उनका पैसा तो वापस मिल जायेगा लेकिन इस दौरान उनका जो समय नष्ट हुआ, उसकी तो कोई भी भरपाई नहीं कर सकेगा।
यह सही है कि शिक्षा का व्यावसायीकरण होने के बाद से जहां देश में निजी शिक्षण संस्थाओं का धंधा खूब फल फूल रहा है वही शिक्षाा का स्तर भी गिरता जा रहा है। यही वजह है कि न्यायालय ने ऐसे संस्थानों को ‘विश्वविद्यालय‘ शब्द का प्रयोग करने से रोकने का आदेश विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को दिया है। आवश्यक है कि बगैर मंजूरी के ही इंजीनियरिंग के पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्रों के भविष्य से खिलावाड़ करने वाले ऐसे संस्थाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाये ताकि यह एक नजीर बने

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