What lesson can be learnt from kasganj
#Dainik_Tribune
बरेली के जिला मजिस्ट्रेट के यह उद्गार किसी नक्कारखाने में तूती की आवाज सरीखे नहीं माने जा सकते कि राज्य के हर हिस्से में ऐसे झुंड सक्रिय नजर आ रहे हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के मोहल्लों में घुसकर उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर उकसाने वाली हरकतें करते हैं। इसी पश्चिमी यूपी स्थित सहारनपुर जिले के पुलिस प्रमुख ने भाजपा सांसद पर भीड़ को उकसाने वाले आरोप लगाये थे। दोनों नौकरशाहों को अपना मुंह बंद रखने की हिदायत मिली। बरेली के डीएम को अपनी फेसबुक पोस्ट से वह सब साफ़ करने के लिए मजबूर किया गया, जबकि कासगंज के एसएसपी का ट्रांसफर कर दिया गया। किंतु इनके सेवानिवृत्त वरिष्ठ सहयोगियों ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्रों में इस रवैये के बाबत चिंता जरूर प्रकट कर दी। उनके आक्षेपों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकारों को लेकर आसन्न खतरों को लेकर व्यापक चिंता जताई है जैसे कि निजता की सीमाएं तोड़ती निगहबानी, विश्वविद्यालयों में कार्रवाई, सुनियोजित ट्रॉलिंग, अति राष्ट्रवाद और बहुसंख्यकवाद के आवेग में कानून और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने के सभी मामलों में यही लगता है कि अराजक भीड़ को किसी सजा का खौफ नहीं था।
देश, अब तक किसी विपत्ति की स्थिति से बचा रहा है, लेकिन समाज को संभालने और जोड़े रखने वाले लिखित-अलिखित मानदंड बारंबार टूट रहे हैं।
विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को पहचान के संकट से जूझना पड़ रहा है। अस्वीकार्य परंपरा के बारे में बरेली के डीएम की प्रश्नवाचक चिंता का जवाब ढूंढना मुश्किल नहीं है।
उग्र हिंदुत्ववादी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों को उठाने और पाकिस्तान विरोधी नारे लगाने वाले टकरावपूर्ण दृष्टिकोण की मानसिकता से बाहर नहीं निकले हैं।
अगर लोगों को किसी भीड़तंत्र की अराजकतापूर्ण हरकतों से बचाना है तो देश को कायाकल्प की स्थिति से गुजरना होगा। स्थिरता के लिए सख्त कदमों की जरूरत है। यह मुद्दा ब्यूरोक्रेसी की सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति तक सीमित रखे जाने का विचार ही न समझा जाये, समस्या की गंभीरता और चिंता को गहराई से समझें।
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