We need to address problem of brain drain and solution lies in reforming higher institutions
#Patrika
No institution in world ranking
बढ़ती साक्षरता और उच्च शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावों के बीच यह बहुत ही चिंताजनक है कि भारतीय विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष दो सौ विश्वविद्यालयों में भी नहीं गिने जाते। विश्व पटल पर देश के शैक्षणिक स्तर के लिए यह स्थिति काफी गंभीर है। एक ओर जहां हम अपने आपको विकसित और नई शक्ति के रूप में निखारने को प्रयासरत हैं, वहीं हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों का वैश्विक पटल पर पिछडऩा राष्ट्र के लिए शर्मनाक है। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, देश की किसी भी यूनिवर्सिटी का वैश्विक स्तर का ना होना न केवल ब्रेन ड्रेन का कारण है बल्कि देखा जाए तो कैश ड्रेन का भी।
Result: Talented people prefer foreign institution for higher learning
उच्च शिक्षा के लिए छात्र विश्व रैंकिंग में शामिल संस्थान से डिग्री लेने को प्राथमिकता देते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2016-17 में भारतीय छात्रों ने विदेशों में पढ़ाई पर 10 अरब डॉलर खर्च किए। इसी अवधि में हमारी केंद्र सरकार ने देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए जो बजट तय किया वह मात्र 29,703 करोड़ रुपए था। हर साल बड़ी तादाद में भारतीय छात्र केवल इसीलिए विदेशों का रुख करते हैं क्योंकि हमारे विश्वविद्यालय वल्र्ड रैंकिंग पर कहीं नहीं हैं।
इस बीच सरकार ने हाल ही एक अच्छी पहल की है-देश के प्रख्यात शिक्षण संस्थानों (आईओई) की अलग ही श्रेणी बनाना।
सरकार का यह कदम उच्च शिक्षा के परिदृश्य को पूर्णत: बदल सकता है। पिछले दिनों यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने आईओई श्रेणी में शामिल करने के लिए सार्वजनिक व निजी दोनों ही प्रकार के शिक्षण संस्थानों से आवेदन आमंत्रित किए थे। विशेषज्ञों की समिति द्वारा आवेदनों की जांच परख के बाद दस सार्वजनिक व दस निजी संस्थानों का चयन कर उन्हें आईओई का दर्जा दिया जाएगा। आईओई संस्थान अप्रत्याशित रूप से प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता लिये हुए होंगे। सरकार द्वारा उन्हें कई मामलों में स्वायत्त रूप से कार्य करने की छूट होगी और ये यूजीसी के मानकों को ना मानने के लिए पूर्णत: स्वतंत्र होंगे।
शोध व अनुसंधान के लिए सरकार प्रत्येक सरकारी आईओई संस्थान को 1000 करोड़ रुपए प्रदान करेगी जबकि निजी संस्थान सार्वजनिक कोष का इस्तेमाल कर सकेंगे। माना जा रहा है कि आईओई समूह में शामिल यूनिवर्सिटी अगले 10-15 सालों में विश्व की शीर्ष पांच सौ यूनिवर्सिटी में तो स्थान पा ही लेंगी और धीरे-धीरे शीर्ष १०० में। अभी जो भारतीय संस्थान वल्र्ड टॉप 500 में हैं वे हैं- द इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), द इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पवई (आईआईटी-बी) और द इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली (आईआईटी-डी)। उम्मीद की जा रही है शीघ्र ही ये विश्व की शीर्ष 100 यूनिवर्सिटी में स्थान बना पाने में कामयाब होंगी।
इनके अलावा बिट्स पिलानी, मनिपाल यूनिवर्सिटी व अमिटी यूनिवर्सिटी समेत दस निजी संस्थानों के चयन की भी संभावना है जो कि समय के साथ अपनी रैंकिंग में सुधार कर लेंगे। आईओई दर्जा हासिल करने के बाद कम से कम देश की २० यूनिवर्सिटी वल्र्ड रैंकिंग की दौड़ में शामिल हो जाएंगी। फिलहाल उनके समक्ष अपनी रैंकिंग सुधारना ही सबसे बड़ी चुनौती है। इन चुनौतियों को तीन रूप में देखा जा सकता है। पहला, चूंकि आईओई कैडर के संस्थान से अपेक्षाएं बढ़ जाएंगी, इसलिए इन्हें अपने पिछले रिकॉर्ड को काफी हद तक सुधारना होगा। खासतौर पर शैक्षिक गुणवत्ता और अध्यापक स्टाफ के संदर्भ में।
उन्हें इस बात का भी खयाल रखना होगा कि जो अध्यापक उनके संस्थान में काम कर रहे हैं, वे लंबे समय तक उनके ही संस्थान में कार्य करें ताकि आईओई समूह के अन्य संस्थान भी अपने स्टाफ में कुशल कर्मचारियों को ही शामिल करें। वर्तमान में यह सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि:
आजकल कॉलेज अध्यापक देश-विदेश में बेहतर रोजगार संभावनाओं की तलाश में रहते हैं।
दूसरा, एक और बड़ी चुनौती यह है कि मौजूदा शैक्षिक संस्कृति को किस प्रकार बदला जाए।
यह एक प्रकार से पहली चुनौती से ही जुड़ी हुई है। इसके तहत मौजूदा शैक्षणिक वातावरण में कॉलेज प्रशासन, छात्रों और अध्यापकों के बीच नए सुझावों, अन्वेषण, मान्यताओं और सिद्धान्तों में परिवर्तन लाना होगा।
तीसरा, तकनीकी शिक्षण संस्थानों को आईओई के लिए आवेदन की छूट देना। इन छोटे संस्थानों को इसके लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। हो सकता है कि विशेषज्ञों की समिति (ईईसी) इन संस्थानों को दस निजी संस्थानों की सूची से बाहर ही कर दे।
भारत में विश्व रैंकिंग वाली यूनिवर्सिटी भी देश के उच्च शिक्षा जगत का भविष्य संवारने में पूर्णत: सक्षम नहीं होंगी क्योंकि यह शिक्षा जगत के नकारात्मक पहलुओं को दुरुस्त करने में खरी उतरेंगी इसमें तो संशय ही है। इसलिए यह आशंका बराबर बनी हुई है कि देसी यूनिवर्सिटी के विश्व रैंकिंग में जगह बना लेने के बावजूद भारतीय युवा अपनी महत्वाकांक्षाओं का पीछा करते हुए पढ़ाई के लिए यूं ही विदेश जाते रहेंगे। ऐसे में कैश ड्रेन रोक पाना भी संभव नहीं होगा। हालांकि यह जरूर संभव है कि हमारी यूनिवर्सिटी के विश्व रैंकिंग में आने के बाद हम अपना सिर गर्व से ऊंचा कर सकें। एक और उम्मीद यह की जा सकती है कि भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र को प्रगति के पंख लग जाएं।