दूरसंचार में दूरंदेशी

नई दूरसंचार नीति का मसविदा सरकार के बड़े इरादों की झलक पेश करता है और इस सेक्टर में नई जान फूंकने की उसकी संभावित कोशिशों का खाका मुहैया कराता है।

What is there in Draft

  • इस ड्राफ्ट में साल 2022 तक डिजिटल कम्यूनिकेशन सेक्टर में नियामक सुधारों के जरिए 10 हजार करोड़ डॉलर का निवेश आकृष्ट करने की बात है।
  • अगले चार वर्षों में सभी नागरिकों के लिए 50 एमबीपीएस स्पीड के साथ ब्रॉडबैंड सेवा सुनिश्चित करने, 5जी सेवाएं देने और टेलिकॉम सेक्टर में 40 लाख नई नौकरियां सृजित करने की बात मसविदा पूरी गंभीरता से कहता है।
  • 2017 के 6 फीसदी से बढ़ाकर 8 फीसदी किया जाएगा।
  • नई नीति के तहत सरकार चाहती है कि कम से कम 50 फीसदी घरों में फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचाई जाए और हर ग्राम पंचायत को 2020 तक 1 जीबीपीएस कनेक्टिविटी और 2022 तक 10 जीबीपीएस कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई जा सके। बहरहाल, आगे जो भी हो, अभी तो सरकार जानती है कि इस सेक्टर की हालत फिलहाल खस्ता सी ही है।इसमें यह भी कहा गया है कि इस सेक्टर के जीडीपी में योगदान को

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करीब 7.8 लाख करोड़ रुपये कर्ज के बोझ से लड़खड़ाते टेलिकॉम सेक्टर के लिए स्पेक्ट्रम की ऊंची दरें चिंता का कारण बनी हुई हैं। उसकी चिंता दूर करने के लिए ड्राफ्ट पॉलिसी में स्पेक्ट्रम दर, लाइसेंस फी आदि की फिर से समीक्षा करने की बात कही गई है। नीति का मसविदा निवेश को बाधित करने वाले रेग्युलेटरी अवरोध दूर करने और डिजिटल कम्यूनिकेशंस उपकरणों, सेवाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी टैक्सों को तर्कसंगत बनाने की बात भी करता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो नई दूरसंचार नीति का यह ड्राफ्ट इस सेक्टर की कठिनाइयों को दूर करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने की पेशकश कर रहा है। मगर असल सवाल इन्हें अमल में लाने का और इस दौरान कुछेक चुनिंदा उद्योगपतियों की मुंहदेखी न करने का है। उम्मीद करें कि इस काम में चुनावी राजनीति अब उस तरह आड़े नहीं आएगी कि सस्ते स्पेक्ट्रम की नीति को राजकोषीय घाटे के रूप में देखा जाने लगे।

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