समानता का नेट (Net Neutrality)

 

What is Net Neutrality

सिद्धांत रूप में यह माना जाता है कि समूची इंटरनेट सेवा एक खुले यातायात की तरह है, और किसी भी उपयोगकर्ता को बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के इसकी उपलब्धता होनी चाहिए।

 भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई ने मंगलवार को नेट-न्यूट्रलिटी यानी नेट-निरपेक्षता के पक्ष में कई तरह की सिफारिशें की हैं, जिनके लागू होने से उपभोक्ताओं को काफी लाभ होने की उम्मीद जगी है। ट्राई ने लंबी जद्दोजहद और तमाम कंपनियों से विचार-विमर्श के बाद कहा है कि:

  • इंटरनेट सर्विस प्रदाता कंपनियों के लाइसेंस-करार में संशोधन करने की जरूरत है।
  •  नियामक संस्था ने कहा है कि कोई भी सामग्री, वेबसाइट, प्लेटफार्म, एप्लीकेशन, अटैचमेंट या संचार साधन का उपयोग करने के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाता अलग-अलग शुल्क नहीं तय कर सकते और न ही धनउगाही के लिए नेट को धीमा, तेज या बंद किया जा सकता है।

 कि ट्राई की ये सिफारिशें ऐसे वक्त आई हैं, जब दुनिया भर में नेट-निरपेक्षता को लेकर अभियान चल रहा है। अभियान के समर्थकों का कहना है कि अमेरिका, ब्राजील, नीदरलैंड जैसे कई देश हैं, जहां नेट-निरपेक्षता का पालन हो रहा है तो फिर भारत समेत दूसरे देशों में इसे लागू क्यों नहीं किया जा सकता! ट्राई की सिफारिशें स्वागत-योग्य हैं, ये लागू हों इंटरनेट सेवाओं तक सबकी समान रूप से पहुंच हो पाएगी।

Background:

एअरटेल ने 2014 में इंटरनेट के जरिए फोन कॉल करने पर अलग से शुल्क वसूलने का फैसला किया था, जिसे बाद में ट्राई और उपभोक्ताओं के विरोध के कारण टाल दिया गया। इसी तरह कुछ दूसरी कंपनियों ने वाट्सएप, ट्वीटर आदि के लिए अलग से शुल्क लेने की तैयारी कर ली थी। जाहिर है, ऐसी कोई भी योजना उपभोक्ता अधिकारों के उलट है। शुल्क वसूलने में समानता और पारदर्शिता पहली शर्त है। लेकिन नेट सेवा प्रदाता कंपनियों की इस स्वेच्छाचारिता के खिलाफ जब ट्राई ने आम लोगों से राय जाननी चाही तो उसके सामने तकरीबन चौबीस लाख लोगों ने इंटरनेट की आजादी यानी न्यूट्रलिटी के पक्ष में अपनी राय जाहिर की। तब से देश भर में नेट-निरपेक्षता के लिए समर्थन बढ़ता ही गया है।

Significance of this

आज के दौर में इंटरनेट सेवा एक बहु-उपयोगी जरूरत बन गई है। तमाम कामकाज इस पर निर्भर होते गए हैं। सरकार खुद डिजिटलीकरण के पक्ष में है। ऐसे में अगर नेट सेवा सर्वसुलभ और सस्ती नहीं की जाएगी तो आम उपभोक्ता को ही इसका खमियाजा भुगतना होगा। विचित्र है कि एक तरफ पूरी दुनिया में भूमंडलीकरण का जोर है और इंटरनेट इसका बड़ा उपयोगी उपकरण है, जो सभी को एक साथ जोड़े रख सकता है, लेकिन दूसरी तरफ उसे महंगा और भेदभावकारी बना दिया गया है। कुछ कंपनियां गरीबों के लिए भी इंटरनेट के इस्तेमाल की योजनाएं ला रही थीं, लेकिन इसमें भी एक धोखा छिपा था। जरूरत है कि फेसबुक जैसी सोशल साइट हो या कोई और, सब पर समानता का नियम लागू हो। ट्राई की सिफारिशें तत्परता से लागू हों, वे महज शोभा की वस्तु होकर न रह जाएं, तभी उपभोक्ताओं का कुछ भला हो सकता है।

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