यूएस पप्रेसिडेंट ट्रम्प ने 1626 करोड़ रुपए की पाकिस्तान को मदद रोक दी। उन्होंने कहा कि 15 साल से पाकिस्तान अमेरिका को बेवकूफ बना रहा है और 2.14 लाख करोड़ रुपए ले चुका है। यूएस ने किन वजहों से अचानक यह फैसला लिया, इस मामले में चीन का कनेक्शन क्या है और पाकिस्तान के फेल होने की वजहें क्या हैं? पढ़ें एनालिसिस और विदेश मामलों के एक्सपर्ट डॉ. रहीस सिंह का एक्सपर्ट ओपिनियन
ट्रम्प ने क्यों रोक दी पाकिस्तान को दी जा रही मदद?
1) यूएस से मिली मदद से आतंकियों को सपोर्ट कर रहा था पाक
- "हाफिज सईद भारत के खिलाफ क्या करता है और उसने कैसे मुंबई हमलों की साजिश रची, यह अमेरिका को अच्छी तरह पता था। इसके बावजूद उसने बहुत देरी से इन आतंकियों के खिलाफ कड़ा स्टैंड लिया। नतीजा यह रहा कि तब तक ये आतंकी पाकिस्तानी सरकार और फौज से आर्थिक मदद लेते रहे।"
2) चीन से ज्यादा नजदीकी का पाकिस्तान को हुआ नुकसान
- "पाकिस्तान आज पूरी तरह से चीन के पाले में है। डेवलपमेंट के नाम पर मदद की वजह से वह चीन के कर्ज में डूबा है। चीन से उसकी बॉर्डर सटी है। भारत के खिलाफ ताकत बढ़ाने में भी चीन उसकी मदद करता है। लिहाजा, पाकिस्तान चीन से दूरी नहीं बढ़ा सकता।"
- "पहले ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन और अब ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन का यह मानना था कि बड़ा दिल दिखाकर पाकिस्तान को चीन से दूर कर अपनी तरफ खींचा जा सकता है। लेकिन चीन ने ऐसा नहीं होने दिया। ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन की नाराजगी की यह एक बड़ी वजह है।"
3) रूस का पाक-चीन की मदद करना अमेरिका को पसंद नहीं आया
"पाकिस्तान ने चीन के साथ-साथ रूस से भी आर्थिक रिश्ते बेहतर किए हैं। ऐसा नहीं है कि रूस सीधे तौर पर भारत के खिलाफ हो गया है, लेकिन अब रूस को पाकिस्तान के अंदर चीन के साथ मिलकर डेवलपमेंट करने में अपना आर्थिक फायदा ज्यादा नजर आ रहा है। अमेरिका की चिंता का यह एक और कारण है।"
4 वजहों से फेल हुआ पाकिस्तान
1) जिन आतंकियों को भारत के खिलाफ उकसाया, वे ही फैला रहे कट्टरपंथ
- हाफिज सईद जैसे आतंकी पाकिस्तान के लिए ‘स्ट्रैटजिक असेट्स’ हैं, लेकिन सईद के जमात उद दावा जैसे संगठन पाकिस्तान के अंदर चरमंपथ फैला रहे हैं।
- जमात उद दावा के सेमिनार से ही लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी तैयार हो रहे हैं। कश्मीर की आजादी के नाम पर लड़ रहे ये आतंकी समूह अब पाकिस्तान की सियासत पर हावी हो रहे हैं। हाफिज सईद की पार्टी पाकिस्तान में अगला इलेक्शन लड़ने वाली है।
2) फौज, आईएसआई और मौलवियों के आगे बेबस
पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में चार बार सेना का तख्तापलट हुआ। अयूब खान (1958-1969), याह्या खान (1969-1971), जिया उल हक (1977-1988) और परवेज मुशर्रफ (1999-2008) ने फौज की हुकूमत चलाई। फौज आईएसआई को मजबूत करती रही। मौलवियों को भी बढ़ावा देती रही। नतीजतन, पाकिस्तान की अवाम को कभी मजबूत इरादों वाली सरकार ही नहीं मिली।
3) पाक ने कभी मुजाहिदीनों को नहीं रोका
- 1978 में अफगानिस्तान में रूस का दखल बढ़ा। मुकाबले के लिए एक लाख मुजाहिदीन खड़े हुए। पाकिस्तान ने उन्हें पनाह दी। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसमें मदद की। नतीजा यह रहा कि पाकिस्तान में मुजाहिदीनों का पाकिस्तान में दखल बढ़ता गया। वह इसे रोक पाने में विफल रहा। मुजाहिदीनों को एके-47 राइफलें मुहैया कराईं। तभी से वे हथियारबंद होते चले गए।
- 1992 में मुजाहिदीनों ने काबुल पर कब्जा कर लिया। तालिबान बना। अल कायदा मजबूत हुआ। 2001 तक हुकूमत भी चलाई। पाकिस्तान ने उसे समर्थन दिया। तालिबान ने अपने आतंकियों को राजदूत का ओहदा दिया, पाकिस्तान ने उन्हें मान्यता दी।
- 2001 में पाकिस्तान ने तालिबान को मजबूत होने दिया। बाद में आर्मी इसी तालिबान के खिलाफ लड़ने लगी। इससे भड़के बैतुल्लाह मेहसूद ने 2007 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान बनाया। इसी तहरीक-ए-तालिबान ने पेशावर के स्कूल में हमला किया था।
- तालिबान और टीटीपी मिलकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अब तक 2700 से ज्यादा हमले कर चुके हैं।
4) अमेरिका से पैसे लेता रहा पाकिस्तान
- पाकिस्तान ने बीते 15 साल में आतंकवाद से निपटने और आर्थिक जरूरतों के नाम पर अमेरिका से 33 अरब डाॅलर यानी 2.14 लाख करोड़ रुपए झटक लिए। लेकिन ज्यादातर मदद का भारत के खिलाफ ताकत बढ़ाने में और सरकारी खर्चे निकालने में इस्तेमाल किया।
- 2014 में इसका उदाहरण सामने आया था, जब पाकिस्तान ने अमेरिका से मिले 50 करोड़ रुपए सरकारी बिलों के पेमेंट और विदेशी मेहमानों को तोहफे देने में खर्च कर दिए।
- यह भी आरोप लगता रहा है कि तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए अमेरिका से मिले पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने में भी करता है।
पहले भी 15 साल के लिए अमेरिका ने रोक दी थी पाक को मदद
- इससे पहले 1965 से 1980 के बीच अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद रोक दी थी। 1981 के आसपास अफगानिस्तान में जब सोवियत रूस ने अपना मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया तो अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मिलिट्री मदद शुरू की।
- इसके बाद 1990 के बाद अमेरिका को शक हुआ कि पाकिस्तान न्यूक्लियर पावर बढ़ाने की कोशिश में है। लिहाजा, 1993 से मदद फिर रोक दी गई।
- 1998 में भारत ने पोकरण में न्यूक्लियर टेस्ट किया। जवाब में पाकिस्तान ने भी टेस्ट किया। नतीजतन, अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सभी तरह की मदद पर रोक लगा दी।
2004 में आया अहम मोड़
- पाक को यूएस से मिलने वाली मदद में अहम मोड़ तब आया, जब अमेरिका में 9/11 आतंकी हमला हुआ। इसके बाद 2004 तक अमेरिकी मदद का आंकड़ा बढ़कर 1 अरब डॉलर हो गया।
- 2009 में अमेरिका-पाकिस्तान के बीच केरी-लुगर-बर्मन एक्ट करार हुआ। इसके तहत 2010 से 2014 तक पाकिस्तान को अमेरिकी मदद तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ाकर 7.5 अरब डॉलर कर दी गई।
- अमेरिका से पाकिस्तान को जो भी मदद मिली, उसका 70% हिस्सा मिलिट्री या सिक्युरिटी से जुड़े मसलों के लिए था।