केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मध्यास्थलता और सुलह (संशोधन) विधयेक ( Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill), 2018 को लोकसभा में पेश करने की स्वी्कृति दे दी है। यह विवादों के समाधान के लिए संस्थातगत मध्यस्थता को प्रोत्सारहित करने के सरकार के प्रयास का हिस्साद है और यह भारत को मजबूत वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) व्यवस्थापक का केंद्र बनाता है।
लाभ:
1996 के अधिनियम में संशोधन से मानक तय करने, मध्यधस्थ(ता प्रक्रिया को पक्षकार सहज बनाने और मामले को समय से निष्पानदित करने के लिए एक स्वेतंत्र संस्थाम स्थाआपित करके संस्थाकगत मध्य स्थकता में सुधार का लक्ष्य प्राप्तक करने में सहायता मिलेगी।
मध्यस्थता (Arbitration ) को सुधारने में आने वाली दिक्कते
प्रमुख विशेषताएं:
- यह उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट मध्यस्थता संस्थानों के माध्यम से मध्यस्थों की तेजी से नियुक्ति में सहायक है, इस संबंध में न्यायालय से संपर्क की आवश्यकता के बिना। Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill में यह व्यवस्था है कि संबंधित पक्ष अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थताके लिए और संबंधित उच्च न्यायालयों के अन्य मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट मध्यस्थता संस्थानों से सीधा संपर्क कर सकते है्ं।
- इस संशोधन में एक स्वतंत्र संस्था भारत की मध्यस्थता परिषद (एसीआई) बनाने का प्रावधान है। यह संस्था मध्यस्थता करने वालों संस्थानों को ग्रेड देगी और नियम तय करके मध्यस्थता करने वालों को मान्यता प्रदान करेगी और वैसे सभी कदम उठाएगी जो मध्यस्थता, सुलह तथा अन्य वैकिल्पक समाधान व्यवस्था को बढ़ावा देंगे और संस्था इस उद्देश्य के लिए मध्यस्थतातथा वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था से जुड़े सभी मामलों में पेशेवर मानकों को बनाने के लिए नीति और दिशा निर्देश तय करेगी। यह परिषद सभी मध्यस्थता वाले निर्णयों का इलेक्ट्रोनिक डिपोजिटरी रखेगी।
- एसीआई निकाय निगम होगी। एसीआई के अध्यक्ष वह व्यक्ति होगा जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश रहा हो। अन्य सदस्यों में सरकारी नामित लोगों के अतिरिक्त जाने-माने शिक्षाविद आदि शामिल किए जाएंगे।
- विधेयक समय-सीमा से अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थताको अलग करके तथा अन्य मध्यस्थताओं में निर्णय के लिए समय-सीमा विभिन्न पक्षों की दलीलें पूरी होने के 12 महीनों के अंदर करके सेक्शन 29ए के उप-सेक्शन (1) में संशोधन का प्रस्ताव है।
- इसमें नया सेक्शन 42ए जोड़ने का प्रस्ताव है ताकि मध्यस्थता करने वाला व्यक्ति या मध्यस्थता संस्थान निर्णय के सिवाय मध्यस्थतासे जुड़ी कार्यवाहियों की गोपनीयता बनाए रखेंगें। नया सेक्शन 42बी मध्यस्थता करने वाले को मध्यस्थता सुनवाई के दौरान उसके किसी कदम या भूल को लेकर मुकदमा या कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करता है।
- एक नया सेक्शन 87 जोड़ने का प्रस्ताव है जो स्पष्ट करेगा कि जब तक विभिन्न पक्ष सहमत नहीं होते संशोधन अधिनियम 2015 में - (ए) 2015 के संशोधन अधिनियम प्रारंभ होने से पहले शुरू हुई मध्यस्थता की कार्यवाही के मामले में (बी) संशोधन अधिनियम 2015 के प्रारंभ होने के पहले या ऐसी अदालती कार्यवाही शुरू होने के बावजूद मध्यस्थता प्रक्रिया के संबंध में चालू होने वाली अदालती कार्यवाहियों में लागू नहीं होगा तथा यह सेक्शन संशोधन अधिनियम 2015 के प्रारंभ होने या बाद की मध्यस्थता कार्यवाहियों में लागू होगा और ऐसी मध्यस्थता कार्यवाहियों से उपजी अदालती कार्यवाहियों के मामले में लागू होगा।
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पृष्ठभूमि:
मध्यस्थता प्रक्रिया को सहज बनाने, लागत सक्षम बनाने और मामले के शीघ्र निष्पादन और मध्यस्थता करने वाले की तटस्थता सुनिश्चित करने के लिए मध्यस्थताऔर सुलह अधिनियम, 1996 में मध्यस्थताऔर सुलह (संशोधन)अधिनियम, 2015 द्वारा संशोधन किया गया। लेकिन तदर्थ मध्यस्थता के स्थान पर संस्थागत मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने और मध्यस्थता तथा सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 को लागू करने में आ रही कुछ व्यावहारिक कठिनाईयों को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भारत के उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी.एच. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) बनाई गई। एचएलसी को निम्नलिखित कार्य दिए गए
• भारत में मध्यगस्थ संस्थाएनों के कामकाज और उनके कार्य प्रदर्शन का अध्यियन करके वर्तमान मध्यभस्थयता व्यिवस्थाए केप्रभाव की जांच करना।
• भारत में संस्था गतमध्यस्थथताव्य्वस्थाच को प्रोत्सा हित करने के लिए रौडमैप तैयार करना।
• वाणिज्यिक विवाद समाधान के लिए कारगर और सक्षम मध्यतस्थयताप्रणाली विकसित करना और कानून में सुझाए गए सुधारों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
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