भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध एवं उच्च खपत
- भारत में 64 फीसद एंटीबायोटिक दवाइयां बिना मंजूरी के धड़ल्ले से बिक रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, मल्टीनेशनल कंपनियां अनियमित रूप से एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन करती हैं और उनको धड़ल्ले से बेचती आ रही हैं। जिस कारण देश में रोग प्रतिरोध की समस्या बिगड़ती हैं और विश्व स्तर पर दवा के प्रतिरोध से लड़ने के प्रयासों को रोका जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया, लाखों एंटीबायोटिक दवाइयां भारत, ब्रिटेन या अमेरिका में बिना किसी नियम के बेची जा रही हैं। अनुसंधान क्लिनिकल औषध विज्ञान के ब्रिटिश जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया।
ब्रिटिश जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2007 और 2012 के बीच 118 एफडीसी [निश्चित खुराक संयोजन (एफडीसी)] एंटीबायोटिक दवाओं को भारत में बेचा गया। इनमें 64 फीसद दवाओं को केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) द्वारा मंजूरी नहीं दी गई। इन दवाओं को मंजूरी न मिलने के बावजूद ये भारत में अवैध तरीके से बेजी जा रही हैं। वहीं, यूएस या यूके में सिर्फ 4 फीसद एफडीसी को मंजूरी दी गई। जिसमें एक गोली में दो या दो से ज्यादा दवाओं से बना फार्म्युलेशन है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत पहले से ही विश्व स्तर पर एंटीबायोटिक खपत और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के उच्चतम दरों में से एक है। जिन एफडीसी को मंजूरी नहीं दी गई है, उसके इस्तेमाल से प्रतिरोध समस्याओं में बढ़ातरी होती है।
-इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि भारत में एफडीसी एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री करीब 3,300 ब्रांड नाम के तहत बेची गई, जो लगभग 500 दवा निर्माताओं द्वारा बनाई गई थी, जिनमें से 12 मल्टीनेशल कंपनियां हैं। 188 एफडीसी को 148 ब्रांड नाम के तहत 45 फीसद दवाइयों को एबॉट, एस्ट्रा जेनेका, बैक्सटर, बायर, एली लिली, ग्लेक्सोस्मिथ क्लाइन, मर्क/एमएसडी, नोवार्टिस, फाइजर, सोनोफी-एवेंटिस और वाइथ जैसी कंपनियां बना रही हैं।
इनमें से 62% (33) दवाइयों को मंजूरी मिली हैं, वहीं अमेरिका या ब्रिटेन में केवल 8% (चार) को मंजूरी मिली है। मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा निर्मित एफडीसी योगों की 38 फीसद दवाओं का सीडीएससीओ के अनुमोदन की लिस्ट में कोई रिकॉर्ड नहीं है। जिनमें 90 फीसद दवाएं एबॉट द्वारा निर्मित की गई हैं।
वर्ष 2001-12 में इन कंपनियों द्वारा बनाई गई एंटीबायोटिक दवाओं का एक तिहाई हिस्सा भारत में बेचा गया है। जिनमें से लगभग 35 फीसद दवाइयों को मंजूरी नहीं दी गई, यानी ये दवाएं नियमों को ताक पर रखकर बेची गई। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको स्वास्थ्य के साथ किस कदर खिलवाड़ किया जा रहा है।