वैज्ञानिकों ने चावल की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर-रोधी गुणों का पता लगाया है.
चावल की इन किस्मों के नाम गठवन, महाराजी और लाइचा हैं, जो छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा उगाई जाती हैं.
चावल की इन तीनों प्रजातियों में ऐसे औषधीय गुण हैं, जो कैंसर से लड़ने की क्षमता रखते हैं.
चावल की इन तीनों किस्मों में शरीर की अन्य कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना लंग (फेफड़े) और स्तन कैंसर का इलाज करने की क्षमता है. शोध के दौरान लंग कैंसर के मामले में गठवन धान ने 70 प्रतिशत, महाराजी धान ने 70 प्रतिशत और लाइचा धान ने 100 फीसदी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया. जबकि, स्तन कैंसर की कोशिकाओं को गठवन ने 10 प्रतिशत, महाराजी ने 35 प्रतिशत और लाइचा धान ने सर्वाधिक 65 फीसदी तक नष्ट कर दिया.
बस्तर और उसके आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में लम्बे समय से लोग इन चावलों का उपयोग औषधि की तरह करते आ रहे हैं. ये लोग मुख्य रूप से गठवान धान का उपयोग गठिया और लाइचा धान से त्वचा संबंधी बीमारियों का इलाज करते हैं.
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