पानी का प्रमाण (Proof of water on moon)

चंद्रमा पर पानी के पहले निशान देखने का सौभाग्य भारत के हिस्से आ चुका है। वर्ष 2008 में भारत ने अपना पहला चंद्रयान वहां भेजा था, जो सौ किलोमीटर की दूरी से चांद के तकरीबन हर हिस्से के ऊपर से गुजरा। इसी दौरान पता चला कि चांद के ध्रुवीय इलाकों में पानी की भारी मात्रा बर्फ की शक्ल में मौजूद हो सकती है। लेकिन यह वाकई पानी ही है, इसकी पुष्टि तब हुई जब चंद्रयान-1 के साथ भेजे गए अमेरिका के मून मिनरॉलजी मैपर (एम-3) ने वहां से एकत्रित डाटा का विस्तृत अध्ययन किया। नासा का यह अध्ययन पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जो चांद की ऊपरी पतली परत में हाइड्रोजन और ऑक्सिजन की मौजूदगी तथा उनके रासायनिक संबंध पर केंद्रित है।
एम-3 द्वारा चंद्रमा पर पानी के अस्तित्व की पुष्टि इसी अध्ययन का परिणाम है। इससे पहले चांद से धरती पर लाए गए नमूनों की जांच करने वाले शोधकर्ता लगभग चालीस वर्षों में इतना ही कह पाए थे कि चांद पर कभी कुछ पानी जरूर रहा होगा। लेकिन इसे साबित करने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। वर्ष 2009 में अमेरिका ने भी चांद पर लूनर रिकॉनेसां ऑर्बिटर (एलआरओ) भेजा था, जिसने चांद पर मौजूद चट्टानों की संधियों में पानी खोजा था। एलआरओ ने ही चांद के उत्तरी ध्रुव पर बर्फ की मौजूदगी भी बताई थी। अभी जिन इलाकों में पानी की बात पुख्ता हुई है, वहां इसे धूल से अलगाया जा सकता है या नहीं, इस पर नासा मौन है। लेकिन इतना तय है कि इस पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सिजन परमाणुओं के बीच का बंधन कमोबेश धरती के पानी जैसा ही है।

इस खोज के बाद वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में और गहराई तक जाने और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के लिए चांद को दूसरा प्रक्षेपण बेस बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया है, जहां से मंगल और अन्य ग्रहों तक पहुंचने के लिए ईंधन का इंतजाम किया जा सके। इस तरह तकनीक ने एक अहम पड़ाव पार करा दिया है। वैज्ञानिकों के सामने चुनौती इस बात की है कि वे अपनी यात्रा को अगले मुकाम तक कैसे ले जाएं। चंद्रमा पर पानी की पुष्टि भारत की एक अभूतपूर्व उपलब्धि मानी जाएगी और जिस तरह गणित के शून्य पर होने वाली कोई भी बातचीत भारत के जिक्र के बिना पूरी नहीं हो सकती, वैसे ही चांद पर कोई भी वैज्ञानिक चर्चा भारत के बिना अधूरी रहेगी

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