TB के खिलाफ जंग में भारतीय वैज्ञानिकों की खोज रामबाण

 

वैज्ञानिकों ने तपेदिक यानी टीबी के खिलाफ जारी जंग में एक बड़ी सफलता हासिल की है. राष्ट्रीय यक्ष्मा अनुसंधान संस्थान (एनआइआरटी) के इन वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को दूर करने का एक ज्यादा असरदार और प्रभावकारी टीका बना लिया है.

  • इस टीके का नामवीपीएम 1002’ रखा गया है.
  • इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह तपेदिक के इलाज में प्रयोग हो रहे बीसीजी टीके पर आधारित है.
  •  बीसीजी टीका एक ऐसा टीका है जिसे टीबी के इलाज में सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता है लेकिन, इस टीके की सीमा यह है कि यह केवल बच्चों के उपचार में ही प्रयोग किया जा सकता है. युवाओं और वयस्कों पर यह असर नहीं करता. लेकिन, अब इस नयी खोज के बाद इसेवीपीएम 1002’ के रूप में युवाओं और वयस्कों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.

टीबी और उसके लक्षण

  • टीबी के संक्रमण के लक्षण थूक में खून के साथ पुरानी खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन घटना माने जाते हैं.
  • अगर शुरुआत में ही इसका अच्छे से इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा साबित होता है. विशेषज्ञों के अनुसार फेफड़ों से संबंधित यह रोग आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होता है.
  • यह संक्रमण फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों जैसे हड्डियों, हड्डियों के जोड़, आंत, त्वचा और मस्तिष्क के ऊपर की झिल्ली आदि में भी फैल सकता है.

यह रोग कैसे फैलता है

  • यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग और एमटीबी जैसे नामों से जाना जाने वाला यह रोग एक छूत की बीमारी है.
  • जानकारों के मुताबिक किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय उसके थूक की बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में बना रहता है. जब रोगी के आस-पास स्थित कोई अन्य व्यक्ति सांस लेता है यह उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है.

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