कृषि क्षेत्र के सुधार के लिए कदम

AGRICULTURE COBWEB

पॉल सैम्यूलसन कृषि को लेकर एक दंतकथा कहते थे जिसका नाम था कॉबवेब मॉडल। अच्छी फसल के बाद कीमतों में गिरावट आती है और फिर बुआई का रकबा कम होता है, इससे कीमतों में उछाल आती है और पुन: बुआई बढ़ती है। यह कष्टकारी चक्र चलता रहता है। हम बार-बार तेजी और गिरावट के इस दुष्चक्र के साक्षी बनते रहे हैं।

बाजार अर्थव्यवस्था इन समस्याओं को कैसे हल करती है? यहां निजी व्यक्तियों के तीन बड़े निर्णयों पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है: कौन सी फसल की बुआई की जाए, कच्चे माल में कितना निवेश किया जाए और क्या भंडारण किया जाए? जब ये निर्णय सही ढंग से लिए जाते हैं तो खाद्य बाजार बेहतर काम करता है। सवाल यह है कि वह कौन सा माहौल है जिसके तहत निजी व्यक्ति ऐसे निर्णय आसानी से ले सकें? इसके लिए चार तत्त्वों की आवश्यकता है।

 

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बाजार आधारित भंडारण तंत्र की आवश्यकता है:  ताकि मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और केंद्रीय भंडारण से निजात पाई जा सके। निजी स्तर पर लोग भविष्य पर नजर रखेंगे, भविष्य की कमियों का अनुमान लगाएंगे और प्रतिक्रिया स्वरूप भंडारण करेंगे। 

निजी स्तर पर लोग भविष्य में होने वाली कमी का अनुमान कैसे लगाएंगे? किसान आखिर कैसे तय करेगा कि कितनी जमीन में बुआई की जाए और कौन सी फसल लगाई जाए?

  • इस मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण है वायदा बाजार। वायदा बाजार निजी व्यक्तियों को खाद्य अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करता है और भविष्य की कीमतों का पूर्वानुमान लगाता है।
  • एक व्यवस्थित वायदा बाजार के साथ निजी व्यक्ति भविष्य की कीमतों के बारे में अनुमान से लाभान्वित हो सकता है।
  • वह अपनी बुआई और भंडारण को लेकर भी इसी आधार पर निर्णय ले सकता है। यह ऐसा क्षेत्र है जहां वायदा कारोबार पर भारी प्रतिबंध हटाने की आवश्यकता है।
  • भारतीय बाजार को वैश्विक वायदा बाजार से जोडऩे की जरूरत है और भारत को व्यवस्थित वित्तीय बाजारों से जोडऩे की भी।

INTERNATIONAL MARKET &INTEGRATION

  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्थिरता का अच्छा माध्यम है। जब देश में किसी तरह का गतिरोध उत्पन्न होता है और कीमतों में गिरावट आती है निर्यात करना देश के हित में होता है। जब देश में कमी होती है और कीमत में उछाल आती है तो आयात करना देश के हित में होता है। यहां भी निजी स्तर पर लोगों के कदम यह निर्धारित करने का काम करते हैं कि आयात करना है या निर्यात। ऐसे में यह अहम है कि वैश्विक बाजार के साथ एकीकरण के क्रम में निजी फर्म की संगठनात्मक क्षमता में भी इजाफा हो। जब एक सरकार लोगों को प्रतिबंध लगाने या हटाने जैसे कदमों में उलझाती है तो संगठनात्मक क्षमता का विकास नहीं होता है।

चौथा घटक है देश के भीतर व्यापार यानी आंतरिक व्यापार का। भारत एक बड़ा और विविधतापूर्ण देश है। काफी हद तक यह यूरोपीय संघ जैसा है। देश के भीतर व्यापार भी स्थिरता का एक बड़ा जरिया है। इसके लिए तमाम तरह के सरकारी हस्तक्षेप समाप्त करने की आवश्यकता है। खरीदारों और विक्रेताओं को कहीं भी सफर करने और व्यापार करने की पूरी छूट होनी चाहिए। भारत को श्रम आधारित और उच्च मूल्य वाले कृषि निर्यात में शामिल होने की पर्याप्त वजह मौजूद है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि गेहूं और चावल जैसी पूंजी आधारित खेती कम की जाए।

अगर ये चारों तत्त्व व्यवस्थित हों यानी भंडारण, वायदा कारोबार, घरेलू व्यापार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार सुचारु हों तो निजी क्षेत्र के लिए निर्णय लेने को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इससे भारतीय कृषि में तेजी और गिरावट की निरंतरता का दुष्चक्र और निरंतर कम आय का संकट दूर करने में भी मदद मिलेगी।

Role of recent Announcement in 2020

हाल में की गई घोषणाएं भंडारण और राष्ट्रीय बाजार से संबंधित हैं। ये बिल्कुल सही दिशा में की गई हैं। तेज और तकनीकी रूप से मजबूत क्रियान्वयन समय की मांग है। मौजूदा हस्तक्षेप की बात की जाए तो यह काफी जटिल है। इसमें संसद द्वारा बनाए गए कानून और राज्य सरकारों के कानूनों की बदौलत स्वायत्तता को कई तरह से सीमित किया गया है। इनका सावधानीपूर्वक वैधानिक विश्लेषण करने की आवश्यकता है। इसके आधार पर ही एक नया कानून तैयार करने की वैधानिक नीति तैयार की जा सकेगी। एक ऐसा कानून जो भंडारण और राष्ट्रीय बाजार में स्वायत्तता प्रदान करे।

  • एक अहम विचार यह भी है कि संविधान के अनुच्छेद 301 का समुचित इस्तेमाल किया जाएग। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि देश भर में व्यापार और वाणिज्य नि:शुल्क होना चाहिए। इससे केंद्र सरकार के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार तैयार करने की संभावनाएं उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा संस्थागत व्यवस्था तैयार करके प्रशासनिक बाधाओं को समय-समय पर न केवल चिह्नित किया जा सकता है बल्कि खाद्य बाजार के व्यापार में आने वाली ऐसी बाधाओं की समीक्षा भी की जा सकती है। अनिरुद्ध बर्मन, इला पटनायक, शुभ रॉय और मैंने जो एक पर्चा लिखकर यह वैधानिक विश्लेषण किया है।
  • खाद्य बाजार में ऐसे तमाम प्रतिबंध हैं जो निजी स्तर पर लोगों के तीन बड़े निर्णयों को प्रभावित करते हैं। अल्पावधि में न केवल पूरी तरह बाजार आधारित व्यवस्था लागू हो जाएगी बल्कि कई तरह के सुधारात्मक कदमों की भी आवश्यकता होगी। अल्पावधि में कई नीतिगत पहल ऐसी होंगी जो आंशिक तौर पर ऐसे प्रभाव उत्पन्न करें जो शायद सुखद न हों। इसके अलावा बाजार आधारित खाद्य व्यवस्था में पूरी तरह शामिल होने और पूर्ण लाभ हासिल करने के लिए भी काफी काम करने होंगे।

खाद्य बाजार इस बात का परिचायक है कि कैसे भारत की पारंपरिक विकास संबंधी सोच नाकाम रही। नीतिगत विफलता की बात करें तो विकास आधारित राज्य, केंद्रीय नियोजन, मानव स्वतंत्रता का दमन आदि ने मिलकर खराब नतीजे ही दिए। हर कदम पर हमारे गड़बड़ बौद्धिक ढांचे ने ऐसे नीतिगत कदमों की जगह बनाई जिनके अनचाहे परिणाम सामने आए। देश में व्यापक गरीबी समाप्त करने की राह खाद्य एवं अन्य क्षेत्रों की इन्हीं बुनियादों पर सवाल उठाने से जुड़ी है।

REFERENCE:business-standard.com

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