WHITE REVOLUTION: दूध उत्पादन

GoI Steps for Farming

देश के लाखों किसानों को सरकार ने एक बड़ी राहत दी है।

  • सरकार ने धान समेत 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करने के साथ तीन लाख रुपये तक के शॉर्ट टर्म लोन चुकाने की अवधि बढ़ा दी है।
  • इसके अलावा सरकार ने एक देश एक बाजार नीति को भी मंजूरी दे दी है।
  • इससे किसान देश में कहीं भी अपनी फसल को बेच सकेंगे।
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  • पहले किसानों को अपनी फसल केवल एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केट कमेटी की मंडियों में ही बेचने की बाध्यता थी, लेकिन अब यह बाध्यता खत्म हो जाएगी। सरकार का दावा है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी
  • कृषि मंडी के बाहर किसान की उपज की खरीद-बिक्री पर किसी भी सरकार का कोई टैक्स नहीं होगा। ओपन मार्केट होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। जिस व्यक्ति के पास पैन कार्ड होगा, वह किसान के उत्पाद खरीद सकता है

How Previous Set up was counter productive for Farmers

कई तरह के प्रतिबंधों के कारण किसानों को अपने उत्पाद बेचने में काफी दिक्कत आती है। कृषि उत्पाद विपणन समिति वाले बाजार क्षेत्र के बाहर किसानों द्वारा उत्पाद बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। उन्हें अपने उत्पाद सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदारों को ही बेचने की मंजूरी है। इसके अतिरिक्त ऐसे उत्पादों के सुगम व्यापार के रास्ते में भी कई तरह की बाधाएं हैं। लेकिन संबंधित अध्यादेश के लागू हो जाने से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी। इससे किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे।

सरकार ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना किया जा सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के विकास के लिए नए प्रयास कर रही है। इस बीच खेती की लागत निरंतर बढ़ती जा रही है, लेकिन उस अनुपात में किसानों को मिलने वाले फसलों के दाम बहुत ही कम बढ़े हैं। इसका परिणाम किसान पर कभी नहीं खत्म होने वाले बढ़ते कर्ज के रूप में सामने आता है। चूंकि किसानों की उपज की बिक्री बिचौलियों और व्यापारियों के हाथों ज्यादा होती है, लिहाजा वे किसी न किसी तरह से उनके चंगुल में फंस ही जाते हैं। बिचौलिये का काम ही होता है किसान से अनाज सस्ते दाम में खरीद कर महंगे दाम में बेचना। इस पूरी प्रक्रिया में ज्यादातर असली मुनाफा बिचौलिए खा जाते हैं और किसान एवं उपभोक्ता दोनों ठगे रह जाते हैं। किसी फसल उत्पाद के लिए उपभोक्ता जो मूल्य देता है, उसका बहुत ही कम हिस्सा किसान को मिल पाता है। बाजार मूल्य का कभी-कभी तो 20 से 30 फीसद तक का हिस्सा ही किसान तक पहुंचता है। ऐसे में किसान खुशहाल कैसे रह सकता है। लेकिन एक देश एक बाजार नीति लागू होने के बाद बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा।आखिर क्या कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों किसान खेती से विमुख होते जा रहे हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में फिलहाल कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसद तक है, जबकि इस पर देश की करीब 53 फीसद आबादी निर्भर है। इतना तो स्पष्ट है कि खेती का कुल क्षेत्रफल सिमटा है और किसानों की संख्या तेजी से कम हो रही है। आज नहीं तो कल इस प्रवृत्ति का प्रतिकूल असर खाद्यान्न उत्पादन पर भी पड़ेगा। इसलिए सरकार को समय रहते इस ओर पर्याप्त ध्यान देना होगा, वरना अन्न के उत्पादन में हमारी आत्मनिर्भरता प्रभावित हो सकती है जो भविष्य के लिहाज से कहीं से भी बेहतर नहीं है। इसलिए सबसे पहले सरकार को किसी भी तरह से किसानों की आमदनी बढ़ाने के तमाम व्यावहारिक उपायों को अमल में लाने पर जोर देना होगा।

Solution is in White Revolution

FACTS: वर्ष 2018 में देश में दूध का उत्पादन 6.3 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि अंतरराष्ट्रीय वृद्धि दर 2.2 फीसद रही है।

दुनिया में दूध उत्पादन में अव्वल होने के साथ भारत दूध की सबसे ज्यादा खपत में भी अव्वल है। बावजूद इन पशुपालकों की गिनती देश की आíथकी में नहीं की जाती है। इन्हें सामान्य किसानों में ही शामिल किया जाता है।  सरकार द्वारा घोषित किए गए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में इनकी भी सुध ली गई है। दो लाख करोड़ रुपये के कर्ज इन्हीं पशुपालकों को दिए जाएंगे। इससे पशुपालन का ढांचागत विकास होगा। हालांकि इन मवेशियों और इनके पालकों का वास्तव में संरक्षण करना है तो वन संरक्षण अधिनियम में सुधार कर पशुओं को आरक्षित वनों आदि में घास चरने की अनुमति देनी होगी। इन मवेशियों के जंगली घास और पत्तियां खाने से दूध का उत्पादन तो बढ़ेगा ही, लोगों को पौष्टिक आहार भी मिलेगा जिससे बीमारियां कम होंगी।

 

MILK MARKET in INDIA:

बिना किसी सरकारी मदद के बूते देश में दूध का 70 फीसद कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है। इस कारोबार में ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं। लेकिन पारंपरिक ज्ञान से न केवल वे बड़ी मात्र में दुग्ध उत्पादन में सफल हैं, बल्कि इसके सह-उत्पाद बनाने में भी मर्मज्ञ हैं। दूध का 30 फीसद कारोबार संगठित ढांचा, मसलन डेयरियों के माध्यम से होता है। देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हैं। 14 राज्यों की अपनी दूध सहकारी संस्थाएं हैं। देश में कुल कृषि खाद्य उत्पादों एवं दूध से जुड़ी प्रसंस्करण सुविधाएं महज दो फीसद हैं, किंतु वह दूध ही है जिसका सबसे ज्यादा प्रसंस्करण करके दही, घी, मक्खन, पनीर आदि बनाए जाते हैं। इस कारोबार की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे सात करोड़ से भी ज्यादा परिवारों की आजीविका जुड़ी है। रोजाना दो लाख से भी अधिक गांवों से दूध एकत्रित करके डेयरियों में पहुंचाया जाता है। बड़े पैमाने पर ग्रामीण सीधे शहरी एवं कस्बाई ग्राहकों तक भी दूध बेचने का काम करते हैं।

COMPETITION IN THIS SECTOR:

  • इस व्यवसाय पर अमेरिका समेत अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निगाहें टिकी हैं। अमेरिका की इस मंशा को समझने के लिए भारत और अमेरिका के बीच होने वाले आयात-निर्यात को समझना होगा।
  • वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच 143 अरब डॉलर यानी 10 लाख करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था। इसमें अमेरिका को 25 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है। इसकी भरपाई वह दुग्ध और पोल्ट्री उत्पादों का भारत में निर्यात करके करना चाहता है। इस नाते उसकी कोशिश है कि इन वस्तुओं एवं अन्य कृषि उत्पादों पर भारत आयात शुल्क घटाने के साथ उन दुग्ध उत्पादों को बेचने की छूट भी दे, जो पशुओं को मांस खिलाकर तैयार किए जाते हैं। दरअसल अमेरिका में इस समय दुग्ध-उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन उस अनुपात में कीमतें नहीं बढ़ रही हैं। दूसरे अमेरिकी लोगों में दूध की जगह अन्य तरल पेय पीने का चलन बढ़ने से दूध की खपत घट गई है। इस कारण किसान आíथक बदहाली के शिकार हो रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब अमेरिका अपने किसानों को प्रति किसान 60,600 डॉलर यानी करीब 43 लाख रुपये की वार्षकि सब्सिडी देता है। इसके उलट भारत में सब मदों में मिलाकर किसान को बमुश्किल 16,000 रुपये की प्रतिवर्ष सब्सिडी दी जाती है। ऐसे में यदि अमेरिकी हितों को ध्यान में रखते हुए डेयरी उत्पादों के निर्यात की छूट दे दी गई तो भारतीय डेयरी उत्पादक अमेरिकी किसानों से किसी भी स्थिति में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। नतीजन आत्मनिर्भरता का पर्याय बना डेयरी उद्योग चौपट हो जाएगा।

आज देश के महानगरों से लाखों की संख्या में श्रमिक गांव-देहात पहुंचे हैं और उनके समक्ष रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में यदि सरकार उन्हें पशुपालन और दूध उत्पादन के लिए पर्याप्त मदद करे तो एक साथ दो समस्याओं का समाधान हो सकता है। जहां एक ओर मजदूरों को रोजगार मिलेगा वहीं दूध खरीदारों को शुद्ध दूध उपलब्ध हो सकेगा।

देश में प्रतिदिन 45 करोड़ टन दूध की खपत हो रही है, जबकि शुद्ध दूध का उत्पादन करीब 18.6 करोड़ टन ही है। यानी दूध की कमी की पूर्ति सिंथेटिक दूध बनाकर की जाती है। ऐसे में एक बात कही जा सकती है कि दूध आधारित कारोबार में बढ़ोतरी की फिलहाल बहुत अधिक संभावना है। किसानों के लिए यह अतिरिक्त आय का बेहतर साधन है। सरकार ने इस संबंध में मदद की योजना भी बनाई है जिसके जरिये मूलत: गांव आधारित इस कारोबार से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सकता है

REFERENCE: .jagran.com

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