रिजर्व बैंक ने उम्मीदों से उलट मौद्रिक नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। माना जा रहा था कि इस बार रेपो दर में कुछ कटौती की जाएगी। ब्याज दरें कम करने की मांग काफी समय से की जा रही है। मगर रिजर्व बैंक ने इसमें कोई बदलाव करने का जोखिम उठाने से परहेज किया
क्या होता अगर रेपो रेट में कटौती की जाती तो
- रेपो दर में कटौती की जाती तो लोगों को कर्ज पर मासिक किश्तों का बोझ कुछ कम पड़ता।
- उद्योगजगत को अपने विस्तार में मदद मिलती।
- रेपो दरों में कटौती का लाभ सबसे अधिक कर्ज पर नए मकान, वाहन, घरेलू उपकरण खरीदने वाले लोगों को होता है। मगर इसके उलट उन लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है, जो बैंकों में अपना पैसा इसलिए जमा कराते हैं कि उसके बदले उन्हें ब्याज मिल सकेगा।
क्या कारण था अक्तूबर में रेपो दर में कटौती करने का
रिजर्व बैंक अक्तूबर में रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती करने का साहस इसलिए कर सका कि महंगाई काबू में आती दिख रही थी। राजकोषीय घाटा नियंत्रण में आ रहा था। मानसून अच्छा रहने से जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान बेहतर होने का आकलन था
=>>क्या होती है रेपो रेट (Repo RATE):
★रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि।
=>>रिवर्स रेपो रेट:
★यह वह दर होती है जिसपर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।