=>" टॉप 50 बैंकों में शामिल होने को तैयार भारतीय स्टेट बैंक, अब बनेगा महाबैंक"
★ भारतीय बैंकिंग जगत में एकीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी पांच बैंकों के विलय के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। अपने तरह के अकेले 'भारतीय महिला बैंक' (बीएमबी) का भी विलय एसबीआइ में हो जाएगा।
★ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी। अपने सहयोगी बैंकों और बीएमबी को मिलाने के बाद एसबीआइ की परिसंपत्तियां बढ़कर 37 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएंगी और यह दुनिया के 50 सबसे बड़े बैंकों की सूची में शुमार हो जाएगा।
★ एसबीआइ की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने इस विलय को एसबीआइ और उसके सहयोगी बैंकों के लिए फायदे का सौदा बताया है। उन्होंने कहा कि फिलहाल एक भी भारतीय बैंक दुनिया के टॉप 50 बैंकों में शामिल नहीं है। इस तरह विलय के बाद वैश्विक स्तर पर बैंक की धमक बढ़ेगी। इससे सहयोगी बैंकों के ग्राहकों को भी फायदा होगा।
★ वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही मौजूदा छोटे-छोटे सरकारी बैंकों को मिलाकर बड़े बैंक में तब्दील करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे चुके हैं। अन्य बैंकों के लिए आगे का रोडमैप बनाने का काम बैंक बोर्ड ब्यूरो कर रहा है।एसबीआइ ने पिछले महीने ही अपने पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक के विलय का प्रस्ताव दिया था।
★ एसबीआइ की इन पांचों सहयोगी कंपनियों की 6400 शाखाएं, 38000 कर्मचारी हैं। वहीं एसबीआइ के खुद अपनी 14000 शाखाएं और 2,22,033 कर्मचारी हैं। विलय के बाद एसबीआइ के 50 करोड़ से अधिक ग्राहक, 22,500 शाखाएं और 58,000 एटीएम हो जाएंगे।
★ इस तरह विलय के बाद एसबीआइ दुनिया में 45वां सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। फिलहाल एसबीआइ का स्थान 52वां है। तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2013 में 1000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ भारतीय महिला बैंक शुरू किया था।
★ इससे पहले एसबीआइ 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और 2010 में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय कर चुका है। इस बीच एसबीआइ और उसके सहयोगी बैंकों के विलय की खबर की भनक लगते ही शेयर बाजार में एसबीआइ के सहयोगी बैंकों के शेयरों में जबर्दस्त उछाल आया है।
विलय के पक्ष में तर्क (In favors):
- प्रस्तावित विलय से एसबीआई दुनिया के 50 बड़े बैंकों में शामिल हो जाएगा. फिलहाल बैंक 52 वें स्थान पर है. बैंक का बैलेंसशीट बढ़कर 37 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा, जो अभी 28 लाख करोड़ रुपये है.
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भारतीय बैंकिंग प्रणाली बहुत ज्यादा खंडित है और छोटे बैंक अर्थव्यवस्था के पैमाने पर लक्ष्य हासिल करने में विफल रहे हैं. एक बड़ी ईकाई के रूप में एसबीआई खर्चों में कटौती और मुनाफे में सुधार कर सकती है.
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आगे बढ़ रहे भारत को बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भारी धन की जरूरत है. इसके लिए अच्छे बैलैंसशीट वाले बैंक ही धन का इंतजाम कर सकते हैं. वास्तव में जिन छह बैंकों का विलय एसबीआई में प्रस्तावित हैं, उनके पास किसी बड़े बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए फंड नहीं है.
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अपने पैरेंट्स संगठन एसबीआई से जुड़ने से सहयोगी बैंक बेहतर बैंकिंग सुविधाओं के साथ अधिक ग्राहकों को लुभाने में सक्षम हो जाएगा.
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21वीं सदी में बैंकों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने के लिए नवीनतम टेक्नोलॉजी से लैस होना पड़ेगा. छोटे बैंकों को डिजिलट बैंकिंग की ओर बढ़ने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है.
=>विलय के विपक्ष में तर्क (In Against) :-
- विलय के बाद एसबीआई अपने 37 लाख करोड़ रुपये के बैलेंसशीट के साथ दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल हो जाएगा. विलय से एसबीआई भारत के दूसरे सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई से पांच गुणा बड़ा हो जाएगा. आईसीआईसीआई का बैलेंसशीट 7.11 करोड़ रुपये है.
- · निजी बैंकों के लिए विलय का रास्ता ज्यादा आसान है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में के लिए विलय मुश्किल होता है क्योंकि विलय के बाद बैंक के कर्मचारियों की संख्या बढ़ जाती है और उनकी छंटनी आसान नहीं होती. बैंक यूनियन पहले ही विलय के खिलाफ हड़ताल की घोषणा कर चुके हैं. एसबीआई को कर्मचारियों के विरोध का सामना करना पड़ेगा.
- · इसमें कोई संदेह नहीं है कि बड़े बैंक बड़ी परियोजनाओं के लिए धन जुटा सकते हैं. लेकिन इसका दूसरा पहलू है कि इससे एसबीआई जैसे बड़े बैंक का जोखिम भी उतना ही बढ़ेगा. हाल में ही आरबीआई के गर्वनर रघुराम राजन ने यह भरोसा जताया था कि बैंक अब सोच-समझकर ऋण देंगे.
- · ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ऋण देने के मामले में प्रोफाइल एक ही जैसा है. इसलिए एक ही तरह बैंकों का आपस में विलय व्यापार में सुधार की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी नहीं करता है. सार्वजनिक बैंक अपना ज्यादातर ऋण थोक बाजार में देते हैं और विलय के बाद उनके पोर्टफोलियो में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है.
- · नए टेक्नोलॉजी के साथ करने के लिए नई प्रतिभाओं की भर्ती की आवश्यकता होगी. विशेष रूप से नए कारोबार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बैंकों के लिए यह जरूरी होगा. लेकिन विलय के बाद भी एसबीआई में बड़ी संख्या में पुराने कर्मचारी होंगे जो एक ही तरह के प्रोफाइल में काम करते रहे हैं. इससे एसबीआई को नए कारोबार में दिक्कत पेश आ सकती है.