भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग को चुनौतियाँ

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भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग के लॉबी समूह नैसकॉम ने भले ही कहा हो कि देश का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग हर वर्ष 1.50 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है लेकिन कुछ हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि इस क्षेत्र की कंपनियां अपनी कारोबारी संभावनाओं पर पुनर्विचार कर रही हैं और वे शुरुआती और मझोले स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी की तैयारी में हैं।

हाल ही खबरों में

 सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की लगभग सभी कंपनियों ने इस वर्ष कड़े प्रदर्शन मानक अपनाने की बात कही है। इन्फोसिस ने तो वेतन वृद्घि भी तीन महीनों के लिए टाल दी है। इस बीच इस क्षेत्र में वृद्घि की संभावनाएं भी सीमित रहने की बात कही जा रही है। इस विषय में अमेरिका के नए प्रशासन को दोष देना एक आसान बचाव है।

Ø  अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एच1बी अस्थायी वीजा कार्यक्रम को सख्त बनाने की इच्छा बहुत पहले जता दी है। इस बीच इन्फोसिस ने 10,000 और अमेरिकियों को रोजगार देने की इच्छा जताई है। ऐसा संभवत: बदली हुई नीतिगत परिस्थितियों को देखकर किया गया है। 

Ø  परंतु यह मामला यहीं सीमित नहीं है। इसके अलावा स्वचालन भी एक बड़ी चुनौती है। इन्फोसिस के मुख्य कार्याधिकारी विशाल सिक्का भारतीय आई टी कंपनियों के कारोबारी मॉडल को स्वचालन से पहुंचने वाले संभावित खतरे को लेकर खासे मुखर रहे हैं। उन्होंने अनुमान जताया है कि इंजीनियरों के आधे से लेकर तीन चौथाई तक रोजगार अगले एक दशक में समाप्त हो जाएंगे। ये काम कृत्रिम बुद्घिमता के हवाले हो जाएंगे। 

चुनौती स्वचालन और कृत्रिम बुद्घिमता की

 उस तरह देखा जाए तो भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा शुरू की गई छंटनी बस एक शुरुआत है। यह मानने की कोई वजह नहीं है कि भारतीय आईटी उद्योग पर जोखिम मंडरा रहा है। यह चुनौती स्वचालन और कृत्रिम बुद्घिमता की ओर से आ रही है। इन बड़े तकनीकी बदलावों में संरक्षणवाद के नए वैश्विक रुझान को शामिल कर लिया जाए तो हालात और खराब नजर आते हैं। अमेरिका का एच1 बी वीजा संबंधी कदम इसकी एक बानगी भर है। शायद दुनिया भर में मझोले दर्जे का कौशल अपने अंत की ओर बढ़ रहा है। संरक्षणवाद के बढऩे के साथ ही बाजार छोटे होते जाएंगे और प्रौद्योगिकी का विकास होता चला जाएगा। शारीरिक श्रम करने वालों की जगह रोबोट के लेने की संभावना बहुत तेजी से बढ़ रही है। उनके नियोक्ताओं को विश्व बाजार में पहुंच बनाने में कड़ी मशक्कत करनी होगी। वहीं बौद्घिक श्रम करने वाले भी बचे नहीं रहेंगे क्योंकि उनके काम का एक बड़ा हिस्सा कृत्रिम बौद्घिकता के हिस्से में जा सकता है। 

 क्या किया जाना चाहिए

इन रुझानों को देखते हुए कौशल, उत्पादकता और रोजगार और अधिक महत्त्वपूर्ण होते जाएंगे। भारत सरकार ने बहुत लंबे समय से इन पर कोई ध्यान नहीं दिया है। रोजगार में इजाफा करने के लिए व्यापार और निवेश पर जोर देना समझ में आता है लेकिन अब वक्त आ गया है कि कौशल विकास और उत्पादकता में बढ़ोतरी को लेकर युद्घ स्तर पर काम किया जाए। आने वाले दिनों में स्वचालन और संरक्षणवाद के चलते नए भारत की नई पीढ़ी के कई लोग रोजगार पाने से वंचित रह जाएंगे। इससे बचने के लिए जरूरी है कि उनको उन्नत कौशल का प्रशिक्षण दिया जाए जो उन्हें समकालीन रोजगारों के लिए दक्ष बना सके। भविष्य में रोजगार तो रहेंगे ही बस उनकी प्रकृति बदल जाएगी। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि देश में ऐसी श्रम शक्ति तैयार की जाए जिसे इस सिलसिले में जरूरी प्रशिक्षण हासिल हो। इस सरकार के कार्यकाल के बचे हुए वक्त में उसे मानव पूंजी, कौशल विकास और उत्पादक वृद्घि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र से उठी चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। 

 

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