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A brief about BRICS
- ब्रिक्स वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते देशों का एक मजबूत समूह है। यह दुनिया की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, जो विकास की दौड़ में बेशक पीछे रह गई थी, मगर अब वैश्विक विकास के अगुआ की भूमिका निभा रही है।
- इस संगठन के पांच सदस्य देश हैं- भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और रूस।
Brics & Influence over world
- ये सभी बडे़ व सक्रिय देश हैं और दुनिया भर की विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण दखल रखते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इन देशों ने काफी हद तक पुराने आर्थिक नेतृत्व को बेदखल कर दिया है।
- ये आर्थिक मोर्चों पर काफी सक्रिय व सफल भी हो रहे हैं।
- ब्रिक्स ने न सिर्फ दूसरे विश्व युद्ध के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली नियामक संस्थाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, बल्कि यह उनका विकल्प भी बनता जा रहा है।
- ब्रिक्स का गठन उन चंद प्रयासों में से एक है, जो अंतरराष्ट्रीय आथिक ढांचे को काफी नजदीक से समझने, उससे संतुलन साधने और बदलती जरूरतों के मुताबिक उसमें फेरबदल करने को लेकर किए गए हैं।
- करीब दस वर्ष पहले जब इसकी स्थापना की गई थी, तभी इसकी भूमिका एक आश्वस्तकारी संगठन की दिखी थी। इसमें शामिल होने वाले सदस्य देश विकास की तेज चाल चल रहे थे, जबकि दूसरे देश (जिनमें दुनिया भर की बड़ी व मजबूत अर्थव्यवस्थाएं शामिल थीं) सुस्त होते जा रहे थे। वैश्विक गति तय करने वाले देशों में से इन सदस्य देशों का चयन भविष्य की रूपरेखा बता रहा था। ये सदस्य देश पारंपरिक देशों से बिल्कुल अलग थे। यह लुभाने वाला नजरिया था। 21वीं सदी एशिया की सदी होने वाली थी, और वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से आकार देने के एक ऐसे महत्वपूर्ण मंच के रूप में ब्रिक्स को देखा जाने लगा था, जो भविष्य में वैश्विक मसलों में एक नया संतुलन बनाएगा।
How far BRICS grouping Successful
यह नजरिया बना रहा और ब्रिक्स इस दिशा में सक्रिय भी है। इसकी बैठकें लगातार होती रही हैं, जिनमें शासनाध्यक्ष शामिल होते हैं। मगर परिणाम हर बार अपेक्षित नहीं रहा है। इसकी वजह यह भी है कि :
- सभी देश समान गति से आगे बढ़ने में असमर्थ हैं। जैसे दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और रूस की गति भारत व चीन से बिल्कुल अलग रही है, और डर यही है कि लंबी अवधि में यह इस गुट की एकजुटता पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।
- इसी तरह, वैश्विक आर्थिक प्राथमिकताओं पर असर डालने वाला चीन का हालिया संकट और अप्रत्याशित मंदी के संकेत देते भारत के आर्थिक विकास के ताजा आंकड़े भी इसके सदस्य देशों पर व्यापक असर डाल सकते हैं। नतीजतन, ब्रिक्स की तस्वीर अनुमान से अधिक जटिल हो सकती है। फिर भी, उदार व खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था की पैरोकारी करने वाला यह मंच अपनी राह से भटका नहीं है। यानी यह वाशिंगटन के ‘अमेरिका फस्र्ट’ (अमेरिका प्रथम) के नजरिये से बिल्कुल उलट है।
INDIA China Shadow over BRICS
श्यामन शहर में हुई ब्रिक्स की बैठक से पहले भारत और चीन के संबंधों में तेज गिरावट आई थी, जिसके केंद्र में डोका ला विवाद था। भारत-चीन और भूटान की संयुक्त सीमा पर स्थित डोका ला को लेकर भारत और चीन के तेवर न सिर्फ सख्त हो गए थे, बल्कि वहां दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती भी हो गई थी। ऐसा ही कुछ करीब दो दशक पहले भी हुआ था, जब सुमदोरोंग चू में विवाद पैदा हुआ। वहां भी भारतीय व चीनी सैनिक एक-दूसरे के सामने आ गए थे और सैन्य टकराव का खतरा बढ़ गया था। लंबे समय तक गतिरोध बने रहने के बाद आखिरकार दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेना को बैरक में लौटाने पर सहमत हुए। तब इस पर भी बात बनी थी कि दोनों पक्ष टकराव से बचेंगे, क्योंकि इससे हालात बिगड़ जाते हैं। अगर इसकी कुछ हद तक तुलना डोका ला से करें, तो इस बार मुश्किलों का सामना कहीं अधिक परिपक्वता व सकारात्मक नजरिये से किया गया। भारत की विदेश मंत्री ने कहा भी कि यह मसला कूटनीतिक नजरिये से ही सुलझेगा और आखिरकार एक खतरनाक हालात का संतोषजनक समाधान निकाल ही लिया गया। भले ही डोका ला विवाद का हल निकलना भारत की एक कूटनीतिक जीत मान लें, लेकिन मेरा मानना है कि इसे एक ऐसे संतुलित और बेहतर नतीजे के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसने दोनों देशों के हितों को सुरक्षित किया और मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी की संभावनाएं जगाईं।
Xiamen summit
श्यामन सम्मेलन से जुड़ा महत्वपूर्ण मसला वह घोषणापत्र है, जिसमें पहली बार पाकिस्तान की जमीन पर पनाह लेने वाले आतंकी संगठनों के नामों का उल्लेख है। इससे पहले ऐसे किसी दस्तावेज में इन जमातों का सीधा उल्लेख नहीं किया गया था।
- चीन की पहचान आमतौर पर ऐसे मुल्क की रही है, जो पाकिस्तान पर किसी तरह की प्रतिकूल कार्रवाई के पक्ष में नहीं होता। लिहाजा श्यामन घोषणापत्र में पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों के नामों का उल्लेख चीन के रुख में आए महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत है।
- आतंकवाद को शह देने की पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत हमेशा से तमाम वैश्विक मंचों पर आवाज बुलंद करता रहा है और दबाव बनाता रहा है। सीमित ही सही, लेकिन चीन ने भी इस पर रजामंदी दी है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। उम्मीद है कि चीन अब घोषणापत्र के अनुसार काम करेगा।
सवाल यह है कि चीन ने आखिर यह नरमी क्यों दिखाई है? इसका थाह लेना आसान नहीं है। मुमकिन है कि भारत की निरंतर वकालत ने उसे बाध्य किया हो। संभव है कि मेजबान देश होने की वजह से वह एकमात्र विरोधी स्वर नहीं बनना चाहता हो, और वह भी तब, जब अमेरिका जैसे देशों ने पाकिस्तान का खैरख्वाह बनने पर उसे बेपरदा किया है। वजह चाहे जो भी हो, ब्रिक्स सम्मेलन से संतुष्ट होने की भारत के पास पर्याप्त वजहें हैं। भारत ने इस संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसे मजबूत बनाया है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इसने अपने कुछ खास पड़ोसियों के पूर्वाग्रहों को तोड़ा है।