प्रवासी योगदान बढ़ाने को कौशल विकास पर है ध्यान

#Business_Standard Editoria

Migration of skilled Indians: Is it Brain Drain or Brian Gain?

Ø  भारत के संदर्भ में पारिभाषिक शब्द 'ब्रेन ड्रेन' (प्रतिभा पलायन) का गलत प्रयोग होता है। जो भारतीय विदेशों में अपने लिए अवसर तलाश करते हैं वे हमारे लिए एक बड़ी आर्थिक ताकत हैं।

Ø  भविष्य के लिए एक बड़ा अवसर भी हैं।

Ø   तकरीबन 1.6 करोड़ भारतीय विदेशों में रहते हैं। भारत इस मामले में शीर्ष पर है। मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआई) के मुताबिक भारतीय प्रवासी जिन देशों में रहते और काम करते हैं वहां वे 430 से 490 अरब डॉलर का योगदान जीडीपी में करते हैं।

Ø  वे अन्य देशों के प्रवासियों की तुलना में काफी धन स्वदेश भी भेजते हैं। वर्ष 2016 में 65 अरब डॉलर की राशि स्वदेश आई जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के 3 फीसदी के बराबर है।

Ø  यह पूरी राशि देश के तेल आयात बिल से अधिक है। आगामी दशक में भारत इस राशि को दोगुना करके 130 अरब डॉलर तक पहुंचा सकता है।

Ø   

Ø  भारत आज न केवल दुनिया का सबसे बड़ा विदेशों से धन पाने वाला देश है बल्कि इस मामले में वह सबसे तेज विकसित होते देशों में से भी एक है।

Ø  वर्ष 1991 से विदेशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा देश भेजे जाने वाले धन में 20 गुना का इजाफा हुआ है। जबकि वैश्विक स्तर पर यह इसके आधे से भी कम दर से बढ़ा है। यहां तक कि बीते दशक के दौरान देश के पुन:धनप्रेषण में 2.3 गुने की दर से बढ़ोतरी हुई जबकि वैश्विक वृद्घि दर 1.8 गुना रही। हालांकि वैश्विक वृद्घि में आई स्थिरता, बढ़ते राष्ट्रवाद और सीमा के आरपार वित्तीय प्रवाह की निगरानी की वजह से भारत और विश्व दोनों की धनप्रेषण दर में स्थिरता आई है। 

 But is this complete picture of Indian Diaspora? (क्या यह भारतीय प्रवासियों की पूर्ण तस्वीर है ?)

इन झटकों के बावजूद सच यही है कि विकसित देशों में प्रवासी श्रमिकों पर निर्भरता बहुत अधिक है। वर्ष 2000 से 2014 तक प्रवासियों ने उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, ओशेनिया और खाड़ी सहयोग परिषद देशों के श्रमिकों में 40 से 80 फीसदी तक का योगदान किया। बीते 25 साल में भारतीय प्रवासियों की तादाद दोगुनी से ज्यादा हो गई है। उत्तरी अमेरिका और खाड़ी देशों में तो 70 फीसदी से अधिक भारतीय प्रवासी काम करते हैं। वहां उनकी तादाद इस अवधि में चार गुना बढ़ी है। 

Ø  तमाम प्रमाण बताते हैं कि लोगों के सीमापार आवागमन ने वैश्विक उत्पादन में इजाफा किया है। एमजीआई का अनुमान है कि वर्ष 2015 में वैश्विक जीडीपी में प्रवासियों का योगदान 67 अरब डॉलर यानी 9.4 फीसदी था।

Ø  अगर वे अपने मूल देश में रहते तो यह राशि 30 अरब डॉलर कम होती। इस नवाचार से उन देशों को भी फायदा मिलता है जहां वे जाते हैं।

Ø   वे अपने साथ अपने देश की उद्यमिता, सांस्कृतिक योगदान आदि लेकर जाते हैं। इसके बावजूद दुनिया के अलग-अलग देशों से आए प्रवासियों को स्थानीय कामगारों की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक कम वेतन मिलता है। उनके बेरोजगार होने की आशंका भी ज्यादा होती है। अच्छी खबर यह है कि भारतीय प्रवासियों का प्रदर्शन प्राय: बेहतर रहा है। पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की बेरोजगारी स्थानीय कामगारों से बस एक या दो फीसदी ही कम है जबकि अन्य विकासशील देशों के प्रवासियों में यह 10 फीसदी तक ज्यादा है।

 Demand of Skilled labour ??

आने वाले दशकों में विकसित देशों में जनसंख्या वृद्घि दर कम होगी। ऐसे में प्रवासियों की जरूरत बढ़ेगी। ऐसे में आर्थिक वजहों से चीन, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका को कुशल कर्मियों की आवश्यकता होगी। ठीक वैसे ही जैसे ऑस्ट्रेलिया और कनाडा वर्षों से करते आ रहे हैं। यहां तक कि बढ़ती राष्ट्रवादी धारणाओं के दौर में भी ऐसा होगा। जाहिर है भारत को कुशल कर्मियों पर ध्यान देना चाहिए ताकि विदेशों में भारतीय प्रतिभाओं की मांंग बढ़ती रहे। 

सरकार का इस और कदम

इस वर्ष के आरंभ में प्रधानमंत्री ने प्रवासी कौशल विकास योजना आरंभ करने की बात कही थी ताकि विदेशों में रोजगार तलाश कर रहे देश के युवाओं को अधिक कुशल बनाया जा सके। इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों की मांग का ध्यान रखा जाएगा ताकि प्रशिक्षण के दौरान इस बात का ध्यान रखा जा सके। इसके बाद प्रमाणित प्रशिक्षुओं को वहां भेजा जाएगा। फिलीपींस ने ऐसी ही नीति अपनाकर दुनिया भर में नर्सों की कमी को पहचाना और दूर किया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में फिलीपींस में 29 अरब डॉलर की राशि बाहर से आई जबकि वैश्विक स्तर पर काफी मंदी बनी रही। 

Ø  देश में लक्षित प्रशिक्षण और विदेशों में उनके प्रभावी ढंग से उनकी नियुक्तियों को अंजाम देने से इन प्रवासियों को कमाने की अधिक ताकत मिलेगी और वे ज्यादा धन देश में वापस भेज पाएंगे।

इसके सामाजिक लाभ भी हैं।

Ø  विदेशों में काम करने के बाद ये कुशल कामगार अच्छे कारोबारी व्यवहार के ज्ञान के साथ देश में आते हैं। उनके पास बढिय़ा वैश्विक संपर्क होते हैं और वे अधिक फंड और सहयोग आकर्षित कर सकते हैं। इसका सटीक उदाहरण है प्रवासियों द्वारा सिलिकन वैली में प्राप्त अनुभव का बेंगलूरु के आईटी उद्योग में इस्तेमाल। देश की नई नीति विदेशी निवेश के आकर्षक केंद्र के रूप में हमारी छवि को मजबूत कर रही है। इस दौरान अनिवासी भारतीयों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। 

भारत ने  विदेशों में कार्यरत भारतीयों से खास अपील की है कि वे देश के आर्थिक विकास में योगदान दें। इसके लिए वे स्वच्छ भारत मिशन में सहयोग कर सकते हैं और साथ ही घरेलू कारोबारों में निवेश भी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग एक संयुक्त शोध सुविधा की शुरुआत करने जा रहा है जो अनिवासी भारतीय वैज्ञानिकों और तकनीकविदों को शोध कार्य में शामिल होने की सुविधा देगी। अगले 10 वर्ष की अवधि में विदेशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले धन की मात्रा दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को एक ठोस नीति अपनानी पड़ेगी जिसमें सरकार और कारोबारी अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर काम करें। इसके अलावा कौशल विकास और शिक्षा का दायरा भी बढ़ाना होगा। देश के श्रमिकों को वैश्विक तैयारी से लैस करना आने वाले दिनों में देश में आने वाले धन में अल्पावधि में और अधिक इजाफा कर सकता है। वहीं इससे जो मानव संसाधन तैयार होगा वह लंबी अवधि में देश के लिए लाभदायक साबित होगा। 

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