#Editorial_Dianik Tribune
भारत ने पहली बार स्वदेशी स्थूलकाय रॉकेट के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारी संचार उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता हासिल कर ली। ये क्षमता दुनिया के गिनेचुने देशों के पास ही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां हम डिजिटल भारत की दिशा में तेज शक्ति वाली इंटरनेट सेवा हासिल कर पायेंगे, वहीं भारी उपग्रह प्रक्षेपण के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हमारी दखल बढ़ेगी। उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि अब भारत अंतरिक्ष में मानव मिशन शुरू करने की स्थिति में आ गया है।
जीएसएलवी मार्क-3डी की यह कामयाबी मंगलयान व चंद्रयान मिशन से कम नहीं आंकी जा सकती। हालांकि इस मिशन को पूरा करने में डेढ़ दशक का समय लगा, मगर सफल प्रक्षेपण ने सारे गिले-शिकवे दूर कर दिये। दो सौ हाथियों के बराबर वजनी और करीब 13 मंजिला इमारत के बराबर ऊंचा क्रायोजेनिक इंजन भारतीय पुरुषार्थ व मेधा का प्रतीक है। कुछ दशक पूर्व जब अमेरिकी दबाव में रूस ने यह तकनीक नहीं दी तो भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने यह स्वदेशी क्षमता हासिल कर ली। अब भारत को कोशिश करनी चाहिए कि दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में अमेरिका व चीन के वर्चस्व को सस्ती व विश्वसनीय सेवा से तोड़ा जाये।
इसरो की इस आकाश चूमती सफलता ने कई निष्कर्ष दिये और कई सवालों को जन्म दिया। पहला निष्कर्ष यही है कि :
Ø यदि काम करने का माहौल व आजादी मिले तो भारतीय प्रतिभाएं शिखर की सफलता हासिल कर सकती हैं।
Ø कहने की जरूरत नहीं कि तमाम भारतीय प्रतिभाएं भारत के कामकाजी माहौल से निराश होकर विदेशों में रिकॉर्डतोड़ सफलताएं हासिल करती रही हैं।
Ø कई नोबेल पुरस्कार दूसरे राष्ट्रों की झोली में भी डाले हैं। सवाल यह भी है कि भारत के दूसरे अनुसंधान संस्थान ऐसी कामयाबी क्यों हासिल नहीं कर पा रहे हैं। खासकर विमानन और हथियारों के अनुसंधान व निर्माण के क्षेत्र में? क्यों हम आज दुनिया के सबसे बड़े हथियारों के खरीददार बने हैं? क्यों हम उत्पादक नहीं बने?
Ø ये मौका देश के अनुसंधान व उत्पादन के क्षेत्र की खामियों का मंथन करने का मौका मुहैया कराता है।
अब वक्त आ गया है कि हम परमाणु ऊर्जा एवं आधुनिक सैन्य उपकरणों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करें। जीसैट-19 व जीएसएलवी मार्क-3डी की सफलता से सबक सीखने की जरूरत है। इस सफलता ने भारत के मानव मिशन अभियान की राह खोल दी है। यह रॉकेट अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने में सक्षम है। यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के कार्यक्रम के लिये इसरो ने भारत सरकार से पंद्रह हजार करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की है। आशा है सरकार भी इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के प्रति उत्साह दिखाएगी