#Business_Standard
In news:
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने वाले वर्षों में देश की रोजगार संबंधी जरूरतों पर आधारित व्यापक अध्ययन पेश किया। अध्ययन में कहा गया है कि रोजगार में कमी का स्तर आम समझ की तुलना में ज्यादा है।
Ø हर वर्ष 100-120 लाख युवा देश की श्रम शक्ति का हिस्सा बन रहे हैं लेकिन साथ ही लाखों अन्य युवा कृषि क्षेत्र को तेजी से त्याग रहे हैं क्योंकि वह क्षेत्र अब उनके लिए मुनाफे का नहीं रह गया है।
Ø रिपोर्ट में कहा गया है कि हर वर्ष 170 से 200 लाख रोजगार की आवश्यकता है। वर्ष 2012 तक हमारे यहां रोजगार निर्माण जिस गति से हुआ, उसकी तुलना में यह बहुत ज्यादा है।
Ø सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि कपड़ा, चमड़ा, धातु, वाहन, रत्न एवं आभूषण, परिवहन, सूचना प्रौद्योगिकी और हथकरघा आदि क्षेत्र में वर्ष 2015 में केवल 1.35 लाख रोजगार तैयार हुए। जाहिर है सरकार रोजगार के मोर्चे पर मात खा रही है।
हाल ही में सामने आई जानकारी के मुताबिक स्किल इंडिया मिशन अब यह लक्ष्य तय नहीं करेगा कि उसने कितने युवाओं को कौशल संपन्न बनाया। उसने वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को कौशल प्रदान करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तैयार किया था लेकिन उसके पूरा होने की कोई संभावना वैसे भी नहीं थी। देश के अकुशल श्रमिकों को कौशल संपन्न बनाना उनको मूल्य शृंखला में ऊपर लाने की दृष्टि से एक अहम कदम था। ऐसा करने से वे संगठित क्षेत्र का रोजगार पाने लायक बनते। 1.25 अरब की आबादी वाले देश को काम के जरिये रोजगार मुहैया करा पाना लगभग असंभव है। इसीलिए सरकार ने 8 करोड़ लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास किया।
मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट रिफाइनैंस एजेंसी) योजना का के तहत छोटे कारोबारियों को अपना उद्यम शुरू करने के लिए या कृषि क्षेत्र के जोखिम का प्रबंधन करने के लिए 10 लाख रुपये तक का ऋण मुहैया कराया जाता है। सरकार ने वर्ष 2016-17 में 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने का लक्ष्य तय किया था जिसे वह हासिल करने में कामयाब रही। हाल ही में समाप्त हुए वित्त वर्ष में करीब 4 करोड़ मुद्रा ऋण बांटे गए। इनकी कुल तादाद 8 करोड़ हो चुकी है। इनमें से कुछ ऋण ऐसे लोगों के हैं जो बार-बार कर्ज लेते हैं या पुराने कर्ज में इजाफा करते हैं। यह भी हो सकता है कि बैंकों से लिए जाने वाले सूक्ष्म ऋण को मुद्रा ऋण में बदल दिया गया हो। लब्बोलुआब यह कि इस योजना के तहत अतिरिक्त ऋण की राशि किसी भी तरह स्पष्ट नहीं है।
Is self-employment solution?
लेकिन एक बात यह भी है कि स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं में भी इतना अधिक इजाफा नहीं किया जा सकता है कि वे देश के जननांकीय बदलाव की जरूरतों का पूरा ध्यान रख सकें। व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का कोई विकल्प यूं भी नहीं है। ऐसे में विनिर्माण क्षेत्र अहम होकर सामने आता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मेक इन इंडिया की बात की तो उनकी सोच एकदम सही था लेकिन वह योजना भी गति खो चुकी है। एक ओर जहां सरकार को स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहिए वहीं उसे यह भी समझना होगा कि ऐसे छोटे और सूक्ष्म उद्यमों वाली अर्थव्यवस्था 1.7 से दो करोड़ तक लोगों को हर साल न तो स्थिरतापूर्वक समाहित कर सकती है और न ही उनको समृद्ध कर सकती है। अर्थव्यवस्था को पूरा ध्यान उन ढांचागत सुधारों पर केंद्रित करना चाहिए जो निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति प्रदान करें।
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भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने वाले वर्षों में देश की रोजगार संबंधी जरूरतों पर आधारित व्यापक अध्ययन पेश किया। अध्ययन में कहा गया है कि रोजगार में कमी का स्तर आम समझ की तुलना में ज्यादा है।
Ø हर वर्ष 100-120 लाख युवा देश की श्रम शक्ति का हिस्सा बन रहे हैं लेकिन साथ ही लाखों अन्य युवा कृषि क्षेत्र को तेजी से त्याग रहे हैं क्योंकि वह क्षेत्र अब उनके लिए मुनाफे का नहीं रह गया है।
Ø रिपोर्ट में कहा गया है कि हर वर्ष 170 से 200 लाख रोजगार की आवश्यकता है। वर्ष 2012 तक हमारे यहां रोजगार निर्माण जिस गति से हुआ, उसकी तुलना में यह बहुत ज्यादा है।
Ø सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि कपड़ा, चमड़ा, धातु, वाहन, रत्न एवं आभूषण, परिवहन, सूचना प्रौद्योगिकी और हथकरघा आदि क्षेत्र में वर्ष 2015 में केवल 1.35 लाख रोजगार तैयार हुए। जाहिर है सरकार रोजगार के मोर्चे पर मात खा रही है।
हाल ही में सामने आई जानकारी के मुताबिक स्किल इंडिया मिशन अब यह लक्ष्य तय नहीं करेगा कि उसने कितने युवाओं को कौशल संपन्न बनाया। उसने वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को कौशल प्रदान करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तैयार किया था लेकिन उसके पूरा होने की कोई संभावना वैसे भी नहीं थी। देश के अकुशल श्रमिकों को कौशल संपन्न बनाना उनको मूल्य शृंखला में ऊपर लाने की दृष्टि से एक अहम कदम था। ऐसा करने से वे संगठित क्षेत्र का रोजगार पाने लायक बनते। 1.25 अरब की आबादी वाले देश को काम के जरिये रोजगार मुहैया करा पाना लगभग असंभव है। इसीलिए सरकार ने 8 करोड़ लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास किया।
मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट रिफाइनैंस एजेंसी) योजना का के तहत छोटे कारोबारियों को अपना उद्यम शुरू करने के लिए या कृषि क्षेत्र के जोखिम का प्रबंधन करने के लिए 10 लाख रुपये तक का ऋण मुहैया कराया जाता है। सरकार ने वर्ष 2016-17 में 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने का लक्ष्य तय किया था जिसे वह हासिल करने में कामयाब रही। हाल ही में समाप्त हुए वित्त वर्ष में करीब 4 करोड़ मुद्रा ऋण बांटे गए। इनकी कुल तादाद 8 करोड़ हो चुकी है। इनमें से कुछ ऋण ऐसे लोगों के हैं जो बार-बार कर्ज लेते हैं या पुराने कर्ज में इजाफा करते हैं। यह भी हो सकता है कि बैंकों से लिए जाने वाले सूक्ष्म ऋण को मुद्रा ऋण में बदल दिया गया हो। लब्बोलुआब यह कि इस योजना के तहत अतिरिक्त ऋण की राशि किसी भी तरह स्पष्ट नहीं है।
Is self-employment solution?
लेकिन एक बात यह भी है कि स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं में भी इतना अधिक इजाफा नहीं किया जा सकता है कि वे देश के जननांकीय बदलाव की जरूरतों का पूरा ध्यान रख सकें। व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का कोई विकल्प यूं भी नहीं है। ऐसे में विनिर्माण क्षेत्र अहम होकर सामने आता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मेक इन इंडिया की बात की तो उनकी सोच एकदम सही था लेकिन वह योजना भी गति खो चुकी है। एक ओर जहां सरकार को स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहिए वहीं उसे यह भी समझना होगा कि ऐसे छोटे और सूक्ष्म उद्यमों वाली अर्थव्यवस्था 1.7 से दो करोड़ तक लोगों को हर साल न तो स्थिरतापूर्वक समाहित कर सकती है और न ही उनको समृद्ध कर सकती है। अर्थव्यवस्था को पूरा ध्यान उन ढांचागत सुधारों पर केंद्रित करना चाहिए जो निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति प्रदान करें।