माणिक सरकार के भाषण का प्रसारण रोकने के मामले में केंद्र पर उंगलियां

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  • दूरदर्शन और आकाशवाणी (All India Radio) द्वारा त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के स्वतंत्रता दिवस भाषण को प्रसारित न करने की घटना ने इस राष्ट्रीय पर्व के मौके को खासा विवादित बना दिया है.
  • एक स्थानीय अधिकारी ने सबसे इस भाषण पर आपत्ति जताई थी. इसके बाद मामला दिल्ली में प्रसार भारती के मुख्यालय तक पहुंचा और फिर तय हुआ कि जब तक भाषण को नया रूप नहीं दिया जाता तब तक इसे प्रसारित नहीं किया जा सकता.

Issue of debate:

इस मामले में बतौर सरकारी प्रसारणकर्ता दूरदर्शन-आकाशवाणी ने एक चुने हुए मुख्यमंत्री के भाषण पर अपनी सेंसरशिप की ताकत लागू की है. इससे प्रसार भारती के अधिकार क्षेत्र, सरकार के तहत उसकी स्वायत्तl और मीडिया के तेजी से बदलते दौर में उसकी प्रासंगिकता से जुड़े कई सवाल खड़े हो गए हैं.

How far decision of Prasar Bharati was correct

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भाषणों को लेकर प्रसार भारती की अपनी एक आचार संहिता है. इसके तहत ‘मित्रवत देशों की आलोचना’ से लेकर ‘भद्दे या किसी की मानहानि करने वाले शब्द’ या ‘देश की संप्रभुता को प्रभावित करने वाली बातें’ जैसी सामग्री भाषण में शामिल होने पर इसका प्रसारण न करने का नियम है. लेकिन स्वतंत्रता दिवस के दिन, ऐसे अस्पष्ट नियमों की आड़ में किसी चुने हुए मुख्यमंत्री के अपने लोगों से बात करने की स्वतंत्रता बाधित करना निश्चितरूप से अस्वीकार्य है.

  • माणिक सरकार का यह भाषण कई जगह प्रकाशित हुआ है. इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा यही कहा जा सकता है कि यह राजनीति से प्रेरित है. किसी पार्टी या व्यक्ति का नाम लिए बिना इसमें सरकार ने कहा है कि देश में धर्मनिरपेक्षता खतरे में है.
  • त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने इसमें एक जगह यह भी कहा है कि समाज को बांटने के लिए साजिशें रची जा रही हैं और जो स्वाधीनता आंदोलन के आदर्श और लक्ष्य के खिलाफ हैं. इन बातों को सामने रखकर देखें तो माणिक सरकार का भाषण इस दिन दिए गए किसी दूसरे मुख्यमंत्री के भाषण जितना ही राजनीतिक या अराजनीतिक कहा जाएगा.

Need reform of Prasar Bharati:

प्रसार भारती की स्थापना को दो दशक हो गए हैं. इस बीच कई समितियों की रिपोर्ट और सिफारिशें आ चुकी हैं, फिर भी इसके कामकाजी ढांचे का पुनर्गठन नहीं हो सका है. वहीं दूसरी तरफ यह संस्था न तो वर्तमान मीडिया की जरूरतों के हिसाब से खुद को ढाल पाई है और न ही इसने निष्पक्षता को लेकर कोई खास उदाहरण पेश किए हैं.

  • केंद्र सरकारों ने भी प्रसार भारती को ज्यादा स्वतंत्रता देने में हमेशा हिचक दिखाई है. यही वजह है कि एक विपक्षी मुख्यमंत्री के भाषण का प्रसारण न होने के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
  • दरअसल अपने तीन साल के कार्यकाल में एनडीए सरकार ने राजनीतिक विरोधियों और दूसरी तरह की असहमतियों को लेकर कई दफे असहिष्णु रवैया दिखाया है. केंद्र सरकार का यह रवैया उन जगहों पर भी दिखा है जो राजनीति से परे होनी चाहिए.
  • एनडीए सरकार ‘बहुमत की सत्ता’ के विचार को उन संस्थानों पर भी लागू कर रही है जो संविधान के नियम-कायदों से चलने चाहिए, न कि संख्याबल के आधार पर. इसलिए यह मानने में ज्यादा दिक्कत नहीं है कि यह केंद्र सरकार का निर्देश था जिसके चलते माणिक सरकार का भाषण दूरदर्शन और आकाशवाणी पर प्रसारित नहीं हुआ. और अगर ऐसा नहीं था केंद्र सरकार को खुलकर यह बात नकारनी चाहिए

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