क्यों परमाणु तकनीक और ईंधन के मामले में अब भारत को विदेशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए

#The_EconomicTimes का Editorial

सन्दर्भ - भारत में दुनिया का करीब एक चौथाई थोरियम भंडार मौजूद है जो परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में उसके आत्मनिर्भर होने की कुंजी है.

परमाणु बिजली उत्पादन के मोर्चे पर भारत में काफी काम हो रहा है. लेकिन अब समय आ चुका है जब इस दिशा में भी स्वदेशी तकनीक और संसाधनों को बढ़ावा दिया जाए. पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस यात्रा पर थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट की यूनिट पांच और छह के निर्माण के लिए समझौता हो गया है. इनमें से प्रत्येक यूनिट से 1000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा. इनकी कुल लागत 50 हजार करोड़ रुपये के लगभग आएगी और रूस इसमें से आधी रकम कर्ज के रूप में उपलब्ध कराएगा. समझौते के मुताबिक परमाणु ईंधन की आपूर्ति भी रूस की जिम्मेदारी है.

इसमें कोई बुराई नहीं है कि भारत घरेलू स्तर पर परमाणु बिजली उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए विदेशी विशेषज्ञता का फायदा उठाए. लेकिन इसके साथ यह भी समझना होगा कि स्वदेशी तकनीक और ईंधन देश के लिए काफी किफायती साबित हो सकते हैं. ऐसी ही और भी वजहें हैं जिनके लिए हमें थोरियम आधारित न्यूक्लियर प्लांट विकसित और स्थापित करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने चाहिए. यहां ध्यान देने वाली बात है कि इन न्यूक्लियर प्लांट्स में अपेक्षाकृत कम परमाणु कचरा पैदा होता है. वहीं दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि भारत में दुनिया का तकरीबन एक चौथाई थोरियम भंडार मौजूद है.

इस रेडियोएक्टिव तत्व के साथ सबसे बुनियादी समस्या यह है कि इसका नाभिकीय विखंडन अपने आप नहीं हो सकता. यानी कि यह अपने आप से तैयार परमाणु ईंधन नहीं होता. इसमें विखंडन की प्रक्रिया शुरू करने और इसे यूरेनियम-233 में तब्दील करने के लिए शुरुआती स्तर पर एक दूसरे रेडियोएक्टिव पदार्थ प्लूटोनियम की जरूरत है.

2008 के भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते के बाद भारत को यूरेनियम आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन यह काफी महंगा ईंधन है. इस समय भारत की परमाणु बिजली क्षमता 6700 मेगावॉट की है और इसके लिए हर साल कई हजार टन यूरेनियम आयात करना पड़ता है. भारत आने वाले दिनों में 700 मेगावॉट उत्पादन के 10 और न्यूक्लियर प्लांट बनाने जा रहा है. इनके लिए और यूरेनियम की जरूरत पड़ेगी. इसी अनुपात में इनके रखरखाव की लागत भी काफी ज्यादा होगी.

बेशक हम इस समय सौर ऊर्जा से सस्ती बिजली बना रहे हैं लेकिन हमें फिर भी परमाणु ऊर्जा की जरूरत होगी है. और इसीलिए अब जरूरत है कि हम देसी ईंधन (थोरियम) और देसी तकनीक का विकास करें. इस दिशा में भारत सरकार एडवान्स्ड हेवी वॉटर रिएक्टर की परियोजना काफी पहले शुरू कर चुकी है. इस तरह के रिएक्टर में ईंधन के रूप में 80 प्रतिशत थोरियम और सिर्फ 20 प्रतिशत यूरेनियम का इस्तेमाल होता है. अब बस जरूरत है कि इस तरह के रिएक्टरों के निर्माण और स्थापना पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाए.

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