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इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने अपने एक अंतरिम फैसले में कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है. यह फैसला बुनियादी रूप से तार्किक लगता है. साथ ही यह उन मानवीय मूल्यों का भी सम्मान करने वाला है जिन्हें राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए|
Ø 11 में से सभी जज इस पर एकराय थे कि यह मामला आईसीजे के अधिकारक्षेत्र में आता है क्योंकि यह जाधव को राजनयिक सहायता का अधिकार देने से जुड़ा है.
What was the matter:
कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी. हेग स्थित आईसीजे ने आदेश दिया है कि इस सजा की तामील पर फिलहाल रोक लगा दी जाए और पाकिस्तान सरकार उसे यह सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी भी दे. अदालत को अभी इस मामले में आखिरी फैसला सुनाना है.
आईसीजे के इस आदेश से पाकिस्तान में काफी निराशा और असमंजस का माहौल है. आपसी आरोप-प्रत्यारोप भी लग रहे हैं. यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि दोष पाकिस्तानी सरकार पर मढ़ा जाएगा और सेना ऐसा होने देगी. हालांकि जाधव के मामले की सुनवाई के किसी चरण में पाकिस्तान सरकार की भूमिका नहीं रही. इस मामले को पाकिस्तानी सेना ने शुरुआत में ही अपने हाथ में ले लिया था ताकि वह अपनी राष्ट्रवादी छवि चमका सके.
India’s response to Pakistan
भारत ने अपने नागरिक कुलभूषण जाधव को अपने उच्चायोग तक पहुंच देने के लिए पाकिस्तान से 16 बार लिखित अनुरोध किया था. लेकिन पाकिस्तान ने यह ठुकरा दिया. जाधव को अपनी मर्जी का कोई वकील भी नहीं दिया गया. उनके खिलाफ लगाए गए आरोप सार्वजनिक भी नहीं किए गए और न ही कई अनुरोधों के बावजूद भारत को इनके बारे में सूचित किया गया. पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव भारतीय जासूस हैं. अगर यह आरोप सच भी है तो यह भी उतना ही सच है कि जासूसों और आतंकियों के भी कुछ मानवाधिकार होते हैं.
देखा जाए तो पाकिस्तान ने एक भारतीय नागरिक पर यह सुनवाई दुनिया को दिखाने के लिए की थी. कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी जिन परिस्थितियों में हुई वे संदिग्ध हैं (हालांकि पाकिस्तान भारत के तर्कों का विरोध करता है. उसका कहना है कि पूर्व नौसैनिक अधिकारी जाधव एक भारतीय जासूस हैं) और आईसीजे ने भी यह बात मानी.
Will Pakistan abide:
पर क्या पाकिस्तान इस आदेश को मानेगा? यह एक ऐसा देश है जहां कई मामलों में सरकार की भी नहीं चलती और जो नैतिकता के मामले में भी ढीला है. इसलिए हो सकता है कि यह इस आदेश से राहत पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास जाए और फिर से आईसीजे के क्षेत्राधिकार पर सवाल उठाए. यह भी उतना ही संभव है कि वहां चीन भी उसका समर्थन करे.
अगर ऐसा होता है तो आईसीजे के फैसले का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पास अपने आदेश की तामील करवाने का कोई जरिया नहीं है, हालांकि उसने कहा है कि पाकिस्तान पर उसके आदेश का पालन करने की कानूनी जवाबदेही है. सबसे बुरा यह हो सकता है और जो बहुत दूर की संभावना भी नहीं है कि कानूनी प्रक्रियाओं की परवाह न करते हुए सेना अपने कैदी को सीधे-सीधे फांसी पर चढ़ा दे और बाद में कहे कि उसका कोई दोष नहीं है