अफ्रीका में भारत की तेल कूटनीति

- ऐसे समय जब चीन की अर्थव्यवस्था की सुस्ती के और गहराने के संकेत मिलने लगे हैं, भारत ने अफ्रीकी देशों में पेट्रोलियम ब्लाकों को हासिल करने के लिए अपनी कूटनीति और तेज कर दी है।
- पिछले वर्ष अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ ऐतिहासिक सम्मेलन करने के बाद अगले हफ्ते नई दिल्ली में भारत अफ्रीका हाइड्रोकार्बन कांफ्रेंस का आयोजन होने जा रहा है।

- अफ्रीका के तेल ब्लाकों में अभी तक अरबों डॉलर निवेश कर चुकी भारतीय कंपनियों को इस कांफ्रेस में कई अवसर मिलने के आसार हैं।

- भारत अफ्रीका पेट्रोलियम क्षेत्र में एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं। अफ्रीका से आने वाले कच्चे तेल की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है जबकि हमारे यहां उनको निर्यात किये जाने वाले पेट्रोलियम उत्पादों की मात्रा बढ़ रही है। 
- पेट्रोलियम कारोबार होने की वजह से दोनों के बीच द्विपक्षीय कारोबार वर्ष 2004 के 8.2 अरब डॉलर के मुकाबले वर्ष 2014 में 75 अरब डॉलर का हो गया है।

- भारत में रिफाइन पेट्रोलियम उत्पादों का 17 फीसद अफ्रीका को जाता है। वर्ष 2020 तक इसे बढ़ा कर 20 फीसद करने का लक्ष्य है। इस कांफ्रेंस में 17 अहम अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। अभी तक 10 देशों के मंत्रियों ने इसमें शिरकत करने की हामी भरी है।

पेट्रोलियम मंत्रालय ने बहुत सोच समझ कर इस कांफ्रेंस का आयोजन किया है। नाइजीरिया, युगांडा समेत आधे दर्जन देशों में तेल व गैस ब्लाकों की नीलामी का दौर चालू वर्ष के दौरान शुरु होने के आसार हैं। यह भारतीय तेल कंपनियों खास तौर पर सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनियों को वहां निवेश करने का बढि़या अवसर मिलेगा। वैसे अभी तक भारतीय कंपनियों को चीन की तेल कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पद्र्धा मिलती थी और आम तौर पर भारतीय कंपनियां उनकी पैसे और कूटनीति के आगे पिछड़ जाती थी। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं।

कच्चे तेल की कीमत कम होने की वजह और चीन की अर्थव्यवस्था कमजोर होने से ज्यादातर वैश्विक कंपनियां मुकाबले में नहीं रहेंगी।

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