"ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर होने का भारत पर असर"

- अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से बाहर होता है तो यूरोपियन यूनियन से कारोबारी रिश्ते रखने वाले देशों पर बुरा असर पड़ेगा. भारत के लिए तो यूरोपियन यूनियन सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है. 50 करोड़ आबादी वाले यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था 16 खरब डॉलर है जो पूरी दुनिया की जीडीपी के एक चौथाई के बराबर है. सरकार के आंकड़ें के मुताबिक 2015-16 में ब्रिटेन के साथ व्यापार 94 हजार 300 करोड़ रुपये रहा जिसमें 59 हजार 100 करोड़ रुपये निर्यात और 34 हजार 700 करोड़ रुपये का आयात हुआ

- ब्रिटेन में काम कर रही 800 भारतीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है. खास तौर पर भारतीय आईटी सेक्टर के 6 से 18 फीसदी कमाई ब्रिटेन से ही होती है. भारतीय कंपनियों के लिए यूरोप में घुसने का रास्ता ब्रिटेन से शुरु होता है. ऐसे में ब्रिटेन के यूरोप से अलग होने पर यूरोप के देशों से नए करार करने होंगे. कंपनिय़ों का खर्च बढ़ेगा. और अलग अलग देशों के अलग अलग नियम-कानून से जूझना होगा.

- ब्रिटेन के यूरोप से अलग होने पर करेंसी पर भी असर पड़ेगा. यूरो-पाउंड के झगड़े में दुनिया भर में डॉलर की मांग बढ़ने से डॉलर महंगा होगा. डॉलर महंगा होने से विदेश से खरीदा जानेवाला सोना और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स भी महंगे हो सकते हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत घटेगी. ऐसा होने से भारत को कच्चे तेल के लिए ज्यादा पैसे देने होंगे. यानि पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ेगी. अगर सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमत में बढ़ोतरी को रोकना चाहती है तो फिर उसे अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी में थोड़ी छूट देनी होगी.

 

- एक्साइज ड्यूटी की छूट में पैसे खर्च किए तो राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है. ये रोकने के लिए आय के नए स्रोत खोजने होंगे. ब्रिटेन के यूरोप से अलग होने पर दुनिय़ा भर के शेयर बाजारों में अनिश्चितता का माहौल रहेगा. इसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ सकता है. हालांकि अगर आईटी समेत भारतीय गुड्स निर्यात करनेवाली कंपनियों के लिए अच्छी खबर ये है कि रुपया सस्ता होने से उन्हें ज्यादा विदेशी मुद्रा मिलेगी.

- अगर ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन से बाहर निकल जाता है तो आईटी सेक्टर पर असर देखने को मिल सकता है. ब्रेक्सिट से करेंसी में उतार-चढ़ाव से दिक्कतें बढ़ेंगी और ज्यादातर आईटी कंपनियों पर असर दिखेगा. बता दें कि एचसीएल टेक की 33 फीसदी आय यूरोप से आती है. टीसीएस की कुल आय में यूरोप का योगदान 14 फीसदी का है, तो विप्रो की आय में 12 फीसदी का योगदान है. टेक महिंद्रा की आय में भी 12 फीसदी का योगदान है, तो इंफोसिस की आय में 6.6 फीसदी का योगदान है.

- दरअसल ब्रेक्सिट ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का चुनावी वादा था, ऐसे में अब ये जनमत संग्रह हो रहा है. हालांकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं. आखिर ब्रेक्सिट की नौबत क्यों आई है, इस पर बताना चाहेंगे कि यूरोप के कानूनों से ब्रिटेन को बिजनेस में रुकावटें पैदा हो रही हैं. ब्रिटेन से यूरोप को ज्यादा फायदा है, लेकिन यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन को कम फायदा है. ब्रेक्सिट होने से ब्रिटेन का यूरोप से आने वाले लोगों पर नियंत्रण होगा. यही नहीं ब्रिटेन में प्रवासी नागरिकों के अपने घर पैसे भेजने पर आंशिक रोक लगेगी. साथ ही ये भी एक कारण है कि यूरोप के पूर्ण एकीकरण में ब्रिटेन शामिल होना नहीं चाहता है.

 

- ब्रेक्सिट का असर ऑटो सेक्टर पर भी देखने को मिलेगा. ब्रेक्सिट होने पर ट्रेड की शर्तें कड़ी हो सकती हैं और इसका जेएलआर पर निगेटिव असर संभव है, इससे टाटा मोटर्स दबाव में आ सकता है. जेएलआर की कुल बिक्री का 80 फीसदी हिस्सा यूरोप से आता है. वहीं भारत फोर्ज की आय का 25 फीसदी हिस्सा यूरोप से आता है. यूरोप में मदरसन सुमी की कई सब्सिडियरी हैं और मदरसन सुमी की 80 फीसदी आय सब्सिडियरी से ही आती है.

- अगर ब्रिटेन के लोगों ने यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के पक्ष में वोटिंग की, तो दुनियाभर के शेयर और कमोडिटी बाजारों मे गिरावट आएगी. ग्लोबल मार्केट में 10 फीसदी तक गिरावट का अनुमान है. ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने पर डॉलर में मजबूती मुमकिन है और इससे रुपया टूटेगा. भारत के कुल एक्सपोर्ट का 15 फीसदी हिस्सा ब्रिटेन जाता है और भारत में कुल एफडीआई का 8 फीसदी ब्रिटेन से आता है. ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने पर भारत में कारोबार पर असर पड़ने की आशंका नहीं है, लेकिन आगे चलकर भारत को ब्रिटेन के साथ अलग से व्यापारिक समझौते करने होंगे.

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