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दिल्ली के बाद अब पुडुचेरी में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच टकराव विवादों में है। विवाद भी इतना गहरा कि पुडुचेरी विधानसभा में उपराज्यपाल के खिलाफ सरकार प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। Allegation against Lieutenant Governor
Ø राज्य सरकार उन पर विकास कार्यों में बाधा डालने के गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग कर रही है।
Ø पुडुचेरी के मुख्यमंत्री का मानना है कि उपराज्यपाल अपने अधिकार से बाहर जाकर काम कर रही हैं।
Ø वे सरकारी जानकारियां ट्विटर पर शेयर करती हैं। पुलिस जवानों के साथ उनका व्यवहार भी अनुचित है।
राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच टकराव के ये मामले पहली बार सामने नहीं आ रहे। पहले भी राज्यपालों और उपराज्यपालों पर राजनीति करने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। केंद्र की शह पर राज्यपालों द्वारा राज्य सरकारों को अस्थिर करने के कई उदाहरण भी सामने आ चुके हैं।
केंद्र में किसी भी दल का शासन क्यों न रहा हो, राज्यपालों पर अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने के आरोप लगते ही रहे हैं। अनेक मामलों में देश की शीर्ष अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है। राज्य में प्रशासनिक व राजनीतिक निर्णय लेने का अधिकार वहां की चुनी हुई सरकार का होता है। दिल्ली व पुडुचेरी केंद्र शासित राज्य हैं लिहाजा यहां उपराज्यपालों का सरकारों के साथ टकराव अन्य राज्यों की तुलना में अधिक देखने को मिलता है।
पुडुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अपने सेवाकाल में भी वे अनेक विवादों में रह चुकी हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे राजनीति में आईं पर चल नहीं पाईं। साल भर पहले उन्हें पुडुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया लेकिन वहां भी राज्य सरकार के साथ उनका टकराव शुरुआत से ही जारी है।
राज्य सरकार इससे पहले भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है। बेदी को चाहिए कि वे संविधान के दायरे में रहकर कार्य करें। उनकी छवि ऐसी ही रही है जिससे लगता है कि वे बिना टकराव के कार्य कर ही नहीं सकतीं। सरकार चलाना जनता के चुने प्रतिनिधियों का काम है।
राज्यपाल सरकार पर निगाह तो रख सकते हैं पर उसके हर फैसले पर अंगुली उठाने से उन्हें बचना चाहिए। राज्यपाल केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है ऐसे में केंद्र सरकार को भी किरण बेदी से बात कर ऐसा रास्ता निकालना चाहिए ताकि विवाद सुलझ सके।