भारत में कॉलेजियम प्रणाली का विकसित

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न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए हाल ही में सरकार की ओर से लाए गए 99 वें संशोधन के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक ठहराते हुए नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को जारी रखने की बात कही। जिसके बाद केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुक्ति को लेकर लगातार तकरार जैसी स्थिति देखने को मिल रही है। दरअसल न्यायधीशों की नियुक्ति और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर तकरार नई बात नहीं है।

How this system developed:

1. संविधान में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए जो प्रावधान हैं, उसके मुताबिक राष्ट्रपति मुख्य न्यायधीश और वरिष्ठ न्यायधीशों की 'परामर्श' के आधार पर न्यायधीशों की नियुक्ति करेगा। 1986 में प्रथम न्यायधीश मामले में इस 'परामर्श' शब्द की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे सहमति के बजाए सिर्फ विचार ज़ाहिर करना बताया।
2. 1991 में दूसरे न्यायधीश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को पलटते हुए परामर्श को सहमति बताते हुए, सिफारिश को मानने के लिए बाध्यकारी बताया। लेकिन ये सिफारिश मुख्य न्यायधीश दो वरिष्ठतम न्यायधीशों की सलाह पर करेंगे। 
3. 1994 में तीसरे न्यायधीश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसका विस्तार करते हुए कहा कि नियुक्तियों की सिफारिश मुख्य न्यायधीश और 4 वरिष्ठतम न्यायधीश मिलकर करेंगे। इनमें से किसी भी 2 न्यायधीशों के असहमत होने पर सिफारिश नहीं की जाएगी। यहीं से कोलेजियम प्रणाली की शुरुआत हुई। जिसके तहत---

Who are part of Collegium

1. मुख्य न्यायधीश के अतिरिक्त 4 वरिष्ठतम न्यायधीश मिलकर जजों की नियुक्ति के बारे में राष्ट्रपति (यानी कैबिनेट) को सिफारिश करेंगे।
2. इस सिफारिश को दोबारा विचार करने के लिए सरकार एक बार वापस सुप्रीम कोर्ट को भेज सकती है।
3. लेकिन बिना विचार किए सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट की ओर से दोबारा भेजने पर ये बाध्यकारी होगा।

हालांकि हाल के दिनों में कोलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता और न्यायधीशों की नियुक्ति के मसले पर सवाल उठे हैं, जिसे लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में तकरार भी बढ़ी है। जिस वजह से नियुक्ति में देरी होती है। जरूरी है इस मसले का जल्द से जल्द हल निकालकर न्यायधीशों की नियुक्ति की रफ्तार बढ़ाई जाए, क्योंकी लंबित मामले की संख्या करीब 4 करोड़ की है।

साभार : सुमित कुमार झा 

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